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Religion & Faith: जब कलयुग में तुलसीदास जी को भगवान राम के दर्शन हुए, जानिए फिर क्या हुआ ?

धर्म एवं आस्था डैस्कः कहते हैं जिनका हाथ स्वयं ईश्वर थाम लेते हैं फिर उन्हें किसी ओर चीज़ की अभिलाषा नहीं रहती। स्वामी तुलसीदास भी प्रभु श्रीराम के एक ऐसे ही भक्त थे जिन्हें कलयुग में स्वयं उनके आराध्य भगवान श्री राम ने दर्शन दिए। तुलसीदास जी प्रभू श्रीराम की भक्ति में ऐसे डूबे कि उन्हें अपने आप की भी सुध न रही। उन्होंने अपने जीवन में अनेकों ग्रंथों की रचना की जिनसे उन्हें प्रसिद्धी प्राप्त हुई, जिनके नाम हैः- श्रीरामचरितमानस, हनुमान चालीसा, संकटमोचन हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, विनयपत्रिका, दोहावली, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, कवितावली आदि।

तुलसीदास जी का जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदास जी के विषय में यह भी मान्यता है कि यह पूर्वजन्म में रामायण के लेखक महाकवि बाल्मिकी थे।

ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी को भगवान राम की भक्ति की प्रेरणा अपनी पत्नी रत्नावली से प्राप्त हुई थी। राम की भक्ति में तुलसीदास ऐसे डूबे की दुनिया जहान की सुध न रही। तुलसी दास भगवान की भक्ति में लीन होकर लोगों को राम कथा सुनाया करते थे। एक बार काशी में रामकथा सुनाते समय इनकी भेंट एक प्रेत से हुई।

प्रेत ने तुलसीदास जी को बतायीं थीं राज़ की बातें

प्रेत ने इन्हें हनुमान जी से मिलने का उपाय बताया। तुलसीदास जी हनुमान जी को ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए और प्रार्थना करने लगे कि राम के दर्शन करवा दें।

हनुमान जी ने तुलसी दास जी को बहलाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब तुलसीदास नहीं माने तो हनुमान जी ने कहा कि राम के दर्शन चित्रकूट में होंगे। तुलसीदास जी ने चित्रकूट के रामघाट पर अपना डेरा जमा लिया।

अपना आराध्य को पहली बार में पहचान नहीं पाये तुलसीदास जी

एक दिन मार्ग में उन्हें दो सुंदर युवक घोड़े पर बैठे नज़र आए, इन्हें देखकर तुलसीदास जी सुध-बुध खो बैठे। जब युवक इनके सामने से चले गए तब हनुमान जी प्रकट हुए और बताया कि यह राम और लक्ष्मण जी थे।

तुलसीदास जी पछताने लगे कि वह अपने प्रभु को पहचान नहीं पाए। तुलसीदास जी को दुःखी देखकर हनुमान जी ने सांत्वना दिया कि कल सुबह आपको फिर राम लक्ष्मण के दर्शन होंगे।

जब श्री राम स्वयं पहुंचे तुलसीदास जी को दर्शन देने

प्रातः काल स्नान ध्यान करने के बाद तुलसी दास जी जब घाट पर लोगों को चंदन लगा रहे थे तभी बालक के रूप में भगवान राम इनके पास आए और कहने लगे कि “बाबा हमें चंदन नहीं दोगे”।

हनुमान जी को लगा कि तुलसीदास जी इस बार भी भूल न कर बैठें इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे ‘चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर। तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥’

तुलसीदास जी बालक बने राम को निहारते-निहारते सुध-बुध खो बैठे और भगवान राम ने स्वयं तुलसीदास ही का हाथ पकड़कर तिलक लगा लिया और खुद तुलसीदास जी के माथे पर तिलक लगाकर अन्तर्धान हो गए।