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Religion & Faith: भगवान शिव का दिव्य स्वरूप इतना विचित्र क्यों ? इसके पीछे क्या है रहस्य ?

धर्म एवं आस्था डैस्कः  जटाधारी भगवान शिव का दिव्य स्वरूप जितना आकर्षक व मनमोहक है उतना ही विचित्र भी, उनके ऐसे दिव्य स्वरूप के पीछे छुपे हैं कई रहस्य। क्या आप जानते हैं उनके सिर पर जटाएं, चंद्र, गले में मुंडमाला आदि से साथ जुड़े हैं गूढ़ रहस्य जिसे जानकर आप हो जाएंगे हैरान, आइए जानते हैं।

– शिव त्रिनेत्रधारी हैं। उनके त्रिनेत्र 1) सत्व, रज एवं तम 2) भूत, वर्तमान एवं भविष्य 3) स्वर्ग, मृत्यु एवं पाताल का प्रतीक है यानि तीन गुणों, तीन कालों एवं तीनों लोकों का प्रतीक हैं।

– उनके सिर पर जटाएं जो कि अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।

– उनके सिर पर शोभाएमान चंद्र मन का प्रतीक है, और शिव मन को जीत चुके हैं। जैसे चांद निर्मल, कोमल एवं उज्ज्वल है वैसे ही शिव भोले का मन शांत निर्मल एवं उज्ज्वल है।

– शिव के गले में मुंडमाला हैं, जिसका अर्थ ये है कि शिव ने मृत्यु को भी अपने बस में किया हुआ है।

– सिव के गले में सर्पहार है, जिसका अर्थ है सर्प जैसा हिंसक, ज़हरीला, संहारक व तमोगुणी जीव भी उनके वश में है।

– शिव का शस्त्र त्रिशूल है, जो कि उनके हाथ में सदैव रहता है। त्रिशूल भौतिक, दैविक एवं आध्यात्मिक तीनों तापों को नष्ट करता है।

– शिव के डमरू का नाद ब्रह्म का रूप है, शिव जब तांडव करते हैं तो डमरू बजाते हैं।

– शिव अपने शरीर पर बाघ की खाल धारण करते हैं। बाघ हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। जिसका अर्थ ये माना जाता है कि शिव ने हिंसा और अहम का अंत कर उसे अपने नीचे दबा रखा है।

– शिव अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं, इसलिए शिवलिंग पर भस्म से तिलक किया जाता है जिसका अर्थ ये है कि ये संसार नश्वर है अंत में सब भस्म ही बन जाता है।

– शिव का वाहन बैल है और बैल धर्म का प्रतीक है जिसपर शिव सवारी करते हैं। जो यह बताता है कि शिव की ही कृपा से इस संसार में धर्म, न्याय, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव की महिमा अपरंपार है, सारी सृष्टि उन्हीं में समाई हुई है और उन्होंने काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार को अपने बस में किया हुआ है।