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Religion & Faith : बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं पूजन विधि, जानिए

बृहस्पतिवार का व्रत करने और व्रत कथा सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत से धन संपत्ति की प्राप्ति होती है, जिन्हें संतान नहीं है, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। परिवार में सुख-शांति बढ़ती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, उनका जल्दी ही विवाह हो जाता है. ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. बुद्धि और शक्ति का वरदान प्राप्त होता है और दोष दूर होता है. एक वर्ष में 16 गुरुवार व्रत करने चाहिए। 16 गुरुवार व्रत करने से आपको मनोवांछित फल मिलते हैं और व्रत पूरे करके 17वें गुरुवार को उद्द्यापन करना चाहिए।

इस व्रत को शुरू करने का शुभ समय- पूष या पौष के महीने को छोड़कर जो कि दिसम्बर या जनवरी में आता है को छोड़कर आप इस व्रत को किसी भी माह के शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुवार से शुरू कर सकते हैं। शुक्ल पक्ष बहुत ही शुभ समय होता है किसी भी नए कार्य को शुरू करने के लिए।

बृहस्पतिवार व्रत विधि:

व्रत की विधि के लिए आपको बहुत ही कम सामग्री चाहिए होगी जैसे की चने की दाल, गुड़, हल्दी, थोड़े से केले, एक उपला हवन करने के लिए और भगवान विष्णु की फोटो और अगर केले का पेड़ हो तो बहोत ही अच्छा है। बृहस्पतिवार को सुबह-सुबह उठकर स्नान करें. नहाने के बाद ही पीले रंग के वस्त्र पहन लें और पूजा के दौरान भी इन्ही वस्त्रों को पहन कर पूजा करें.
भगवान सूर्य व मां तुलसी और शालिग्राम भगवान को जल चढ़ाएं। भगवान विष्णु के आगे बैठ जायें, और पूजा स्थल व भगवान विष्णु की तस्वीर को साफ करें चावल एवं पीले फूल लेकर 16 गुरुवार व्रत करने का संकल्प करें एवं उन्हें छोटा पीला वस्त्र अर्पण करें और अगर केले के पेड़ के सामने पूजा कर रहें हैं तो भी छोटा पीला कपड़ा चढ़ाइए। एक लोटे में जल रख लीजिये उसमे थोड़ी हल्दी डालकर विष्णु भगवान या केले के पेड़ की जड़ को स्नान कराइए। अब उसी लोटे में गुड़ एवं चने की दाल डाल के रख लीजिये और अगर आप केले के पेड़ की पूजा कर रहें हैं तो उसी पर चढ़ा दीजिये। हल्दी या चन्दन से तिलक करें, पीला चावल जरुर चढ़ाएं, घी का दीपक जलाये, कथा पढ़िए। कथा के बाद उपले पर हवन कीजिए, गाय के उपले को गर्म करके उसपे घी डालिए और जैसे ही अग्नि प्रज्वलित हो जाये उसमे हवन सामग्री के साथ गुड़ एवं चने की भी आहुति देनी होती है, 5 7 या 11 ॐ गुं गुरुवे नमः मन्त्र के साथ, हवन के बाद आरती कर लीजिये और अंत में क्षमा प्रार्थना करिए, पूजा पूरी होने के बाद आपके लोटे में जो पानी है उसे अपने घर के आस पास के केले के पेड़ पर चढ़ा दें। इस दिन आप केले के पेड़ की पूजा करते हैं इसलिए गलती से भी केला न खाएं आप इसे केवल पूजा में चढ़ा सकते हैं एवं प्रसाद में बाट सकते हैं, अगर कोई गाय मिले तो उसे चने की दाल और गुड़ जरुर खिलाएं इससे बहुत पुण्य मिलता है।

इस दिन क्या न करें ?

 बालों में तेल नहीं लगाना चाहिए।

बालों को धोना नहीं चाहिए।

बाल कटवाने नहीं चाहिए।

घर में पोछा नहीं लागेना चाहिए।

कपडे धोबी को नहीं देने चाहिए।

नमक एवं खट्टा नहीं खाना चाहिए।

पीला या मीठा खा सकते हैं। 

चने की दाल की पूड़ी या पराठा एक समय खा सकते हैं।

पुरुष यह व्रत लगातार 16 गुरुवार कर सकते हैं परन्तु महिलाओं या लड़कियों को यह व्रत तभी करना चाहिए जब वो पूजा कर सकती हैं, मुश्किल दिनों में यह व्रत नही करना चाहिए।

उद्द्यापन विधि – उद्द्यापन के एक दिन पहले 5 चीजें लाकर रखें। चने की दाल, गुड़, हल्दी, केले, पपीता और पीला कपड़ा और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा रख दें। फिर गुरुवार को हर व्रत की तरह यथावत पूजा के बाद प्रार्थना करिए कि आपने संकल्प के अनुसार अपने व्रत पूरे कर लिए हैं और भगवान आप पर कृपा बनाये रखें, और आज आप पूजन का उद्यापन करने जा रहे हैं और पूजा में ये सारी सामग्री भगवान विष्णु को चढ़ाकर किसी ब्राह्मण को दान करके उनका आशीर्वाद लीजिये।

इस विधि से व्रत करने से आपके सभी कष्ट दूर होंगे एवं आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।

व्रत कथा:

प्राचीन काल में एक प्रतापी राजा था. वह दानवीर था. वह हर बृहस्पतिवार को व्रत रखता था और गरीबों को दान देता था. लेकिन राजा की रानी को यह बात पसंद नहीं थी. वह न तो व्रत करती थी और ना ही दान करने देती थी.

एक दिन राजा शिकार करने जंगल निकला. रानी अपनी दासी के साथ घर पर ही थीं. उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए. लेकिन रानी ने साधु को भिक्षा देने की बजाय टालती रही. साधु ने दोबारा भिक्षा मांगी. रानी ने फिर काम बताकर कहा कि कुछ देर बाद आना. साधु ने कुछ देर बाद फिर भिक्षा मांगी. इस पर रानी नाराज हो गई और कहा कि मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मुझे इस कष्ट से मुक्ति मिल जाए.

बृहस्पतिदेव ने कहा कि अगर तुम ऐसा ही चाहती हो तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिट्टी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर साधु रुपी बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए.

साधु ने जैसा बताया, रानी वैसा ही करने लगी. तीन गुरुवार बीतते ही रानी राजा की समस्त संपत्ति नष्ट हो गई. यहां तक कि भोजन के भी लाले पड़ गए. घर की ऐसी स्थिति देख राजा दूर देश कमाने चला गया और घर में रानी अकेले रह गई. रानी ने एक दिन अपनी बहन के पास अपनी दासी को भेजा और कहा कि वहां से कुछ मांग ला, जिससे घर का काम चल सके. उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन बृहस्पति व्रत कथा सुन रही थी. रानी की दासी वहां पहुंचकर और रानी की सारी व्यथा सुनाई. लेकिन रानी की बहन ने कोई जवाब नहीं दिया. ऐसा देखकर रानी की दासी वहां रुके बिना ही वापस चली आई.

दासी ने रानी को सारी बात बताई और कहा कि आपकी बहन ने किसी प्रकार की मदद नहीं की. उधन रानी की बहन कथा सुनकर और पूजन समाप्त करके अपनी बहन के घर आई और कहने लगी- बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी. तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली. कहो दासी क्यों गई थी.

रानी ने अपनी सारी व्यथा सुनाई. रानी की बहन ने पूरी बात सुनने के बाद कहा कि देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं. देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो.

पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया. यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई. दासी रानी से कहने लगी- हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें. तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा.

उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें. इससे बृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं. व्रत और पूजन विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई.

सात दिन के बाद जब गुरुवार आया, तो रानी और दासी ने व्रत रखा. घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं. फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया. अब पीला भोजन कहां से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे. उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे. इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए. भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया.

उसके बाद वे सभी गुरुवार को व्रत और पूजन करने लगी. बृहस्पति भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी. तब दासी बोली- देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था, इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब भगवान बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होता है.

रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए, जिससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे. दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी, जिससे पूरे नगर में उसका यश फैलने लगा. एक दिन रानी और दासी आपस में विचार करने लगीं कि न जाने राजा किस दशा में होंगें, उनकी को‌ई खोज खबर भी नहीं है । उन्होंने श्रद्घापूर्वक गुरु (वृहस्पति) भगवान से प्रार्थना की कि राजा जहाँ कहीं भी हो, शीघ्र वापस आ जा‌एं उसी रात्रि को बृहस्पति देव ने राजा को स्वपन में कहा कि हे राजा उठ तेरी रानी तुझको याद करती है अपने देश को लौट जा। राजा प्रात: काल उठा और जंगल से लकड़ी काटने के लिए जंगल की ओर चल पड़ा। जंगल से गुजरते हुए विचार करने लगा कि रानी की गलती से उसे कितने दुःख भोगने पड़े राजपाट छोड़कर जंगल में आकर में आकर रहना पड़ा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचकर गुजारा करना पड़ा। और अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। उसी समय राजा के पास वृहस्पतिदेव साधु के वेष में आकर बोले, हे लकड़हारे । तुम इस सुनसान जंगल में किस चिंता में बैठे हो, मुझे बतला‌ओ । यह सुन राजा के नेत्रों में जल भर आया । साधु की वंदना कर राजा ने अपनी संपूर्ण कहानी सुना दी । महात्मा दयालु होते है । वे राजा से बोले, हे राजा तुम्हारी पत्नी ने वृहस्पतिदेव के प्रति अपराध किया था, जिसके कारण तुम्हारी यह दशा हु‌ई । अब तुम चिन्ता मत करो भगवान तुम्हें पहले से अधिक धन देंगें । देखो, तुम्हारी पत्नी ने वृहस्पतिवार का व्रत प्रारम्भ कर दिया है । अब तुम भी वृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल गुड़ और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले के वृक्ष की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलायें और कथा सुने । उस दिन एक ही समय भोजन करें भोजन पीले खाद्य पदार्थ का करें।। भगवान तुम्हारी सब कामना‌ओं को पूर्ण करेंगें । साधु की बात सुनकर राजा बोला, हे प्रभो । लकड़ी बेचकर तो इतना पैसा भ‌ई नहीं बचता, जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकूं । मैंने रात्रि में अपनी रानी को व्याकुल देखा है । मेरे पास को‌ई साधन नही, जिससे उसका समाचार जान सकूं । फिर मैं कौन सी कहानी कहूं, यह भी मुझको मालूम नहीं है । साधु ने कहा, हे राजा । मन में वृहस्पति भगवान के पूजन-व्रत का निश्चय करो । वे स्वयं तुम्हारे लिये को‌ई राह बना देंगे । वृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियां लेकर शहर में जाना । तुम्हें रोज से दुगुना धन मिलेगा जिससे तुम भलीभांति भोजन कर लोगे तथा वृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आ जायेगा । जो तुमने वृहस्पतिवार की कहानी के बारे में पूछा है, वह इस प्रकार है –

वृहस्पतिदेव की कहानी (story) – प्राचीनकाल में एक बहुत ही निर्धन ब्राहमण था । उसके को‌ई संन्तान न थी । वह नित्य पूजा-पाठ करता, उसकी स्त्री न स्नान करती और न किसी देवता का पूजन करती । इस कारण ब्राहमण देवता बहुत दुखी रहते थे ।

भगवान की कृपा से ब्राहमण के यहां एक कन्या उत्पन्न हु‌ई । कन्या बड़ी होने लगी । प्रातः स्नान करके वह भगवान विष्णु का जप करती । वृहस्पतिवार का व्रत भी करने लगी । पूजा पाठ समाप्त कर पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में डालती जाती । लौटते समय वही जौ स्वर्ण के हो जाते तो उनको बीनकर घर ले आती । एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी कि तभी उसकी मां ने देख लिया और कहा, कि हे बेटी । सोने के जौ को फटकने के लिये सोने का सूप भी तो होना चाहिये ।

दूसरे दिन गुरुवार था । कन्या ने व्रत रखा और वृहस्पतिदेव से सोने का सूप देने की प्रार्थना की । वृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हु‌ई पाठशाला चली ग‌ई । पाठशाला से लौटकर जब वह जौ बीन रही थी तो वृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला । उसे वह घर ले आ‌ई और उससे जौ साफ करने लगी । परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा ।

एक दिन की बात है । कन्य सोने के सूप में जब जौ साफ कर रही थी, उस समय उस नगर का राजकुमार वहां से निकला । कन्या के रुप और कार्य को देखकर वह उस पर मोहित हो गया । राजमहल आकर वह भोजन तथा जल त्यागकर उदास होकर लेट गया ।

राजा को जब राजकुमार द्घारा अन्न-जल त्यागने का समाचार ज्ञात हु‌आ तो अपने मंत्रियों के साथ वह अपने पुत्र के पास गया और कारण पूछा । राजकुमार ने राजा को उस लड़की के घर का पता भी बता दिया । मंत्री उस लड़की के घर गया । मंत्री ने ब्राहमण के समक्ष राजा की ओर से निवेदन किया । कुछ ही दिन बाद ब्राहमण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ सम्पन्न हो गाया ।

कन्या के घर से जाते ही ब्राहमण के घर में पहले की भांति गरीबी का निवास हो गया । एक दिन दुखी होकर ब्राहमण अपनी पुत्री से मिलने गये । बेटी ने पिता की अवस्था को देखा और अपनी माँ का हाल पूछा ब्राहमण ने सभी हाल कह सुनाया । कन्या ने बहुत-सा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया । लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया । ब्राहमण फिर अपनी कन्या के यहां गया और सभी हाल कहातो पुत्री बोली, हे पिताजी । आप माताजी को यहाँ लिवा ला‌ओ । मैं उन्हें वह विधि बता दूंगी, जिससे गरीबी दूर हो जा‌ए । ब्राहमण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर अपनी पुत्री के पास राजमहल पहुंचे तो पुत्री अपनी मां को समझाने लगी, हे मां, तुम प्रातःकाल स्नानादि करके विष्णु भगवन का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जा‌एगी । परन्तु उसकी मां ने उसकी एक भी बात नहीं मानी । वह प्रातःकाल उठकर अपनी पुत्री की बची झूठन को खा लेती थी ।

एक दिन उसकी पुत्री को बहुत गुस्सा आया, उसने अपनी माँ को एक कोठरी में बंद कर दिया । प्रातः उसे स्नानादि कराके पूजा-पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्घि ठीक हो ग‌ई।

इसके बाद वह नियम से पूजा पाठ करने लगी और प्रत्येक वृहस्पतिवार को व्रत करने लगी । इस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद वह स्वर्ग को ग‌ई । वह ब्राहमण भी सुखपूर्वक इस लोक का सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हु‌आ । इस तरह कहानी कहकर साधु बने देवता वहाँ से लोप हो गये ।

धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वृहस्पतिवार का दिन आया । राजा जंगल से लकड़ी काटकर शहर में बेचने गया । उसे उस दिन और दिनों से अधिक धन मिला । राजा ने चना, गुड़ आदि लाकर वृहस्पतिवार का व्रत किया । उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हु‌ए । परन्तु जब अगले गुरुवार का दिन आया तो वह वृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया । इस कारण वृहस्पति भगवान नाराज हो ग‌ए ।

उस दिन उस नगर के राजा ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था तथा अपने समस्त राज्य में घोषणा करवा दी कि सभी मेरे यहां भोजन करने आवें । किसी के घर चूल्हा न जले । इस आज्ञा को जो न मानेगा उसको फांसी दे दी जा‌एगी ।

राजा की आज्ञानुसार राज्य के सभी वासी राजा के भोज में सम्मिलित हु‌ए लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा, इसलिये राजा उसको अपने साथ महल में ले ग‌ए । जब राजा लकड़हारे को भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी, जिस पर उसका हारलटका हु‌आ था । उसे हार खूंटी पर लटका दिखा‌ई नहीं दिया । रानी को निश्चय हो गया कि मेरा हार इस लकड़हारे ने चुरा लिया है । उसी समय सैनिक बुलवाकर उसको जेल में डलवा दिया ।

लकड़हारा जेल में विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्वजन्म के कर्म से मुझे यह दुख प्राप्त हु‌आ है और जंगल में मिले साधु को याद करने लगा । तत्काल वृहस्पतिदेव साधु के रुप में प्रकट हो ग‌ए और कहने लगे, अरे मूर्ख । तूने वृहस्पति देवता की कथा नहीं की, उसी कारण तुझे यह दुख प्राप्त हु‌आ हैं । अब चिन्ता मत कर । वृहस्पतिवार के दिन जेलखाने के दरवाजे पर तुझे चार पैसे पड़े मिलेंगे, उनसे तू वृहस्पतिवार की पूजा करना तो तेर सभी कष्ट दूर हो जायेंगे ।

अगले वृहस्पतिवार उसे जेल के द्घार पर चार पैसे मिले । राजा ने पूजा का सामान मंगवाकर कथा कही और प्रसाद बाँटा । उसी रात्रि में वृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा, हे राजा । तूने जिसे जेल में बंद किया है, उसे कल छोड़ देना । वह निर्दोष है । राजा प्रातःकाल उठा और खूंटी पर हार टंगा देखकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी तथा राजा के योग्य सुन्दर वस्त्र-आभूषण भेंट कर उसे विदा किया ।

गुरुदेव की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया । राजा जब नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा ही आश्चर्य हु‌आ । नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब और कु‌एं तथा बहुत-सी धर्मशाला‌एं, मंदिर आदि बने हु‌ए थे । राजा ने पूछा कि यह किसका बाग और धर्मशाला है । तब नगर के सब लोग कहने लगे कि यह सब रानी और दासी द्घारा बनवाये ग‌ए है । राजा को आश्चर्य हु‌आ और गुस्सा भी आया कि उसकी अनुपस्थिति में रानी के पास धन कहां से आया होगा ।

जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे है तो उसने अपनी दासी से कहा, हे दासी । देख, राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गये थे । वह हमारी ऐसी हालत देखकर लौट न जा‌एं, इसलिये तू दरवाजे पर खड़ी हो जा । रानी की आज्ञानुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो ग‌ई और जब राजा आ‌ए तो उन्हें अपने साथ महल में लिवा ला‌ई । तब राजा ने क्रोध करके अपनी तलवार निकाली और पूछने लगा, बता‌ओ, यह धन तुम्हें कैसे प्राप्त हु‌आ है । तब रानी ने सारी कथा कह सुना‌ई ।

राजा ने निश्चय किया कि मैं रोजाना दिन में तीन बार कहानी कहा करुंगा और रोज व्रत किया करुंगा । अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती तथा दिन में तीन बार कथा कहता ।
एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहां हो आ‌ऊं । इस तरह का निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार हो अपनी बहन के यहां चल दिया । मार्ग में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिये जा रहे है । उन्हें रोककर राजा कहने लगा, अरे भा‌इयो । मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन लो । वे बोले, लो, हमारा तो आदमी मर गया है, इसको अपनी कथा की पड़ी है । परन्तु कुछ आदमी बोले, अच्छा कहो, हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगें । राजा ने दाल निकाली और कथा कहनी शुरु कर दी । जब कथा आधी हु‌ई तो मुर्दा हिलने लगा और जब कथा समाप्त हु‌ई तो राम-राम करके वह मुर्दा खड़ा हो गया।

राजा आगे बढ़ा । उसे चलते-चलते शाम हो ग‌ई । आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला । राजा ने उससे कथा सुनने का आग्रह किया, लेकिन वह नहीं माना ।

राजा आगे चल पड़ा । राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर ग‌ए तथा किसान के पेट में बहुत जो रसे द्रर्द होने लगा ।

उसी समय किसान की मां रोटी लेकर आ‌ई । उसने जब देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा । बेटे ने सभी हाल बता दिया । बुढ़िया दौड़-दौड़ी उस घुड़सवार के पास पहुँची और उससे बोली, मैं तेरी कथा सुनूंगी, तू अपनी कथा मेरे खेत पर ही चलकर कहना । राजा ने लौटकर बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही, जिसके सुनते ही बैल खड़े हो गये तथा किसान के पेट का दर्द भी बन्द हो गया ।

राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया । बहन ने भा‌ई की खूब मेहमानी की । दूसरे रोज प्रातःकाल राजा जागा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे है । राजा ने अपनी बहन से जब पूछा, ऐसा को‌ई मनुष्य है, जिसने भोजन नहीं किया हो । जो मेरी वृहस्पतिवार की कथा सुन ले । बहन बोली, हे भैया यह देश ऐसा ही है यहाँ लोग पहले भोजन करते है, बाद में को‌ई‌अन्य काम करते है । फिर वह एक कुम्हार के घर ग‌ई, जिसका लड़का बीमार था । उसे मालूम हु‌आ कि उसके यहां तीन दिन से किसीने भोजन नहीं किया है । रानी ने अपने भा‌ई की कथा सुनने के लिये कुम्हार से कहा । वह तैयार हो गया । राजा ने जाकर वृहस्पतिवार की कथा कही । जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया । अब तो राजा को प्रशंसा होने लगी । एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा, हे बहन । मैं अब अपने घर जा‌उंगा, तुम भी तैयार हो जा‌ओ । राजा की बहन ने अपनी सास से अपने भा‌ई के साथ जाने की आज्ञा मांगी । सास बोली हां चली जा मगर अपने लड़कों को मत ले जाना, क्योंकि तेरे भा‌ई के को‌ई संतान नहीं होती है । बहन ने अपने भा‌ई से कहा, हे भ‌इया । मैं तो चलूंगी मगर को‌ई बालक नहीं जायेगा । अपनी बहन को भी छोड़कर दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया । राजा ने अपनी रानी से सारी कथा बता‌ई और बिना भोजन किये वह शय्या पर लेट गया । रानी बोली, हे प्रभो । वृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है, वे हमें संतान अवश्य देंगें । उसी रात वृहस्पतिदेव ने राजा को स्वप्न में कहा, हे राजा । उठ, सभी सोच त्याग दे । तेरी रानी गर्भवती है । राजा को यह जानकर बड़ी खुशी हु‌ई । नवें महीन रानी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हु‌आ । तब राजा बोला, हे रानी । स्त्री बिना भोजन के रह सकती है, परन्तु बिना कहे नहीं रह सकती । जब मेरी बहन आये तो तुम उससे कुछ मत कहना । रानी ने हां कर दी । जब राजा की बहन ने यह शुभ समाचार सुना तो वह बहुत खुश हु‌ई तथा बधा‌ई लेकर अपने भा‌ई के यहां आ‌ई । रानी ने तब उसे आने का उलाहना दिया, जब भा‌ई अपने साथ ला रहे थे, तब टाल ग‌ई । उनके साथ न आ‌ई और आज अपने आप ही भागी-भागी बिना बुला‌ए आ ग‌ई । तो राजा की बहन बोली, भा‌ई । मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हारे घर औलाद कैसे होती ।

बृहस्पतिदेव सभी कामना‌एं पूर्ण करते है । जो सदभावनापूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत करता है एवं कथा पढ़ता है अथवा सुनता है और दूसरों को सुनाता है, बृहस्पतिदेव उसकी सभी मनोकामना‌एं पूर्ण करते है, उनकी सदैव रक्षा करते है ।

जो संसार में सदभावना से गुरुदेव का पूजन एवं व्रत सच्चे हृदय से करते है, उनकी सभी मनकामना‌एं वैसे ही पूर्ण होती है, जैसी सच्ची भावना से रानी और राजा ने वृहस्पतिदेव की कथा का गुणगान किया, तो उनकी सभी इच्छा‌एं वृहस्पतिदेव जी ने पूर्ण की । अनजाने में भी वृहस्पतिदेव की उपेक्षा न करें । ऐसा करने से सुख-शांति नष्ट हो जाती है । इसलिये सबको कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिये । हृदय से उनका मनन करते हुये जयकारा बोलना चाहिये ।

॥ इति श्री वृहस्पतिवार व्रत कथा