जंगल में एक गर्भवती हिरणी प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी…वो बच्चे को जन्म देने के लिए किसी एकांत जगह को ढूंढ रही थी….एकाएक उसे नदी किनारे ऊंची और घनी घास दिखी….उसे वो स्थान बच्चे को जन्म देने के लिए उपयुक्त लगा…वहां पहुंचते ही उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गई…उसी वक्त आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और ज़ोरों से बिजली कड़कने लगी….उसने दायें देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना उसी की ओर साध रहा था…घबराकर बह बाहिनें मुड़ी..तो वहां एक भूखा शेर झपटने को तैयार बैठा था…सामने सूखी घास आग पकड़ चुकी थी…और पीछे मुड़ी तो नदी में जल बहुत था….
हिरणी क्या करती ? वह प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ?….क्या हिरणी जीवित बचेगी ?…..क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ?….क्या शावक जीवित रहेगा ?….
क्या जंगल में आग सब कुछ जला देगी ?…..क्या मादा हिरणी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?…क्या मादा हिरणी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?….आगे से वो आग से घिरी है…पीछे से पानी से …दायें और बायें शिकारी और शेर उसका शिकार करने वाले हैं…..क्या करेगी वो किसी भी तरफ उसके बचने का कोई रास्ता नहीं….?
हिरणी अपने आप को शून्य में छोड़ बच्चे को जन्म देने में लग गयी….कुदरत का करिष्मा देखिए….बिजली चमकी और तीर छोड़ते हुए, शिकारी की आंखें चौंधिया गयी। उसका तीर हिरणी के पास से गुज़रते, शेर की आंख में जा लगा, शेर दहाड़ता हुआ इधर-उधर भागने लगा और शिकारी शेर को घायल जानकर भाग गया….उधर घनघोर बारिश शुरू हो गयी….और जंगल की आग बुझ गयी….हिरणी ने शावक को जन्म दिया…।
प्रेरणा क्या मिली ?
हमारे जीवन में भी कभी-कभी कुछ क्षण ऐसे आते हैं….जब हम चारों तरफ से समस्याओं से घिरे हुए होते हैं…..तब हमें कोई किनारा भी नहीं मिलता….और न ही उस मुश्किल से बाहर निकलने का कोई रास्ता। तब हमें सब कुछ नियति के हाथों में सौंपकर अपने उत्तरादायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। अन्ततः यश, अपयश, हार, जीत, जीवन, मृत्यु का अंतिम निर्णय ईश्वर करता है। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
ये कहानी मैने नहीं लिखी…..कुछ दिन पहले Whatsapp पर मेरी मौसी ने मुझे forward की थी…मुझे बड़ी ही सुंदर और प्रेरणादायक लगी…तो सोचा आप सबके साथ भी शेयर की जाए।
संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा
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