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यादग़ार लम्हेंः “मेरे महबूब क़यामत होगी, आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी”: आनंद बख्शी

आज हम हिंदी सिनेमा के सफरनामे में एक ऐसे फ़नकार के बारे में कुछ बातें आपके साथ सांझा करेंगे जिन्होंने शब्दों को कुछ ऐसे तराशा जो गीत बनकर सबके दिलों की ज़ुबां बन गए, वे कोई और नहीं बल्कि अपने अल्फाज़ों से प्यार का फसाना देने वाले मशहूर गीतकार आनंद बख़्शी हैं, बेशक वो आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन अपने लिखे बेशकीमती गीतों की जो सौगात हमें दे गए, उनसे वो हमेशा के लिए अमर हो गए।

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तो आइए सुनते हैं उनका लिखा एक खूबसूरत नग़मा जो दिल की गहराईयों तक कुछ इस क़दर जा पहुंचता है….कि दिल कह उठता है…मेरे महबूब क़यामत होगी..आज रुसवा तेरी गलीयों में मोहब्बत होगी…

21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी में पैदा हुए आनंद बख्शी पेशे से फौजी थे लेकिन उस वक्त ये अंदाजा शायद उन्होंने भी नहीं लगाया होगा कि ईश्वर ने उन्हें एक खास हुनर के साथ नवाज़ा है और वो था उनका लिखने का हुनर, और यही शब्दों को तराशने का हुनर कब उन्हें मुंबई ले गया ये शायद उन्हें भी नहीं समझ आया होगा कि किस्मत उन्हें कहां लेकर जा रही है और फिर वहीं से शुरु हुआ उनका फिल्मी सफर। उनके बारे में कहा जाता है कि वे वैसे तो वो गायक बनना चाहते थे लेकिन वे गीतकार के रूप में हिंदी सिनेमा पर छा गए। उन्होंने अपने गीतों में अपने चाहने वालों के जज़्बातों को सरल ज़बान में बयां किया तो फिर क्या था देखते ही देखते वो एक के बाद एक सूपरहिट गीत हिंदी सिनेमा को देते रहे। आज भी उनके बेशकीमती गीतों का सरमाया लोगों की ज़बान पर है। तो आइए सुनते हैं उनका लिखा एक नायाब गीत ….ये समां..समां है ये प्यार का…

https://www.youtube.com/watch?v=qn9GDeIHioE

गीतकार आनंद बख्शी ने 1958 से लेकर 2002 के दरम्यान करीब 3500 गाने लेखे। साल 1965 में फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट थी। फिल्म के सभी गाने ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना, ‘ये समां.. समां है ये प्यार का’, ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल’ सुपरहिट रहे, इसके बाद एक के बाद एक सूपरहिट गीतों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया…जिनमें से मेरे महबूब क़यामत होगी….झिलमिल सितारों का आंगन होगा…..सावन का महीना पवन करे सोर….मैं शायर तो नहीं, मगर ऐ हसीन….बागों में बहार है….कोरा कागज़ था ये मन मेरा….झूठ बोले का काटे…चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश….चांद सी महबूबा हो मेरी….तुझे देखा तो ये जाने सनम….उड़ जा काले कावां तेरे मुंह विच खंड पावां….इश्क बिना क्या जीना यारो….हमको हमीं से चुरा लो…जैसे कामयाब बेशकीमती गीत शामिल हैं।

आइए पेश है एक और बेहतरीन गीत…चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैने सोचा था….

https://www.youtube.com/watch?v=r783tZf-SPI

आनंद बख्शी का मुंबई आने और हिंदी सिनेमा में छा जाने तक का सफर भी बड़ा दिलचस्प है जिसके पीछे कड़ी मेहनत छिपी हुई है। 21 जुलाई 1930 को आनंद बख्शी का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था, लेकिन बंटवारे के वक्त परिवार लखनऊ आ कर बस गया, उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में बतौर कैडेट दो साल काम किया। उसके बाद उन्होंने कभी टेलीफोन ऑपरेटर तो कभी मोटर मैकेनिक भी काम किया।

तूझे देखा तो ये जाना सनम…प्यार होता है दीवाना सनम…

https://www.youtube.com/watch?v=3jUSDLtRd9s&list=RD3jUSDLtRd9s&start_radio=1

इसके बाद वे मुंबई आ गए, यहां आकर उन्हें उस समय के मशहूर कॉमेडियन भगवान दादा ने अपनी फिल्म ‘भला आदमी’ में गीतकार के रूप में काम करने का मौका दिया हालांकि इस फिल्म के जरिये उन्हें पहचान नहीं मिली लेकिन एक गीतकार के रूप में हिंदी सिनेमा में उनका सफर शुरू हुआ। आनंद बख्शी मुंबई में बतौर गायक अपना करियर शुरू करना चाहते थे लेकिन उन्हें पहचान और कामयाबी गीतकार के रूप में मिली। उनके लिखे गीतों ने न सिर्फ फिल्मों को सुपरहिट किया बल्कि कई कलाकारों की किस्मत को भी चमका दिया।

उड़ जा काले कावं तेरे मुंह विच खंड पावां….

https://www.youtube.com/watch?v=LJU3uGYvsvk

फिल्म आराधना में उनके लिखे गानों ने आनंद बख्शी को पहचान दी लेकिन साथ ही इस फिल्म ने राजेश खन्ना और किशोर कुमार को भी बुलंदियों तक पहुंचाया। कहा भी जाता है कि आनंद बख्शी के साथ जिस किसी की भी जुगलबंदी बनी उसकी भी किस्मत चमक गई और राजेश खन्ना के सुपरस्टार बनने के पीछे आनंद बख्शी के गानों की भी बड़ी भूमिका मानी जाती है। न सिर्फ राजेश खन्ना और किशोर कुमार बल्कि कई संगीतकारों की किस्मत भी आनंद बख्शी के साथ हुई जुगलबंदी से पलट गई। आराधना की कामयाबी के बाद ही संगीतकार आर डी बर्मन और आनंद बख्शी की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को कई सुपरहिट फिल्में दीं।

आनंद बख्शी के लिखे गीतों की खूबसूरती उनकी सहजता, सादगी, अपनी बात को कम शब्दों में कह देने का हुनर और सरलता रही।

चलते-चलते पेश हैं आपके लिए एक और खूबसूरत सा गीत जिसे लिखकर गीतकार आनंद बख्शी ने ये साबित कर दिया कि वो किसी भी पीढ़ी, किसी उम्र, किसी भी सदी और दशक के गीतकार थे….जिनके लिखे गीत आज भी हर किसी की ज़ुबां पर सुने जा सकते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=zWPsjhBaRb0&list=RDzWPsjhBaRb0&start_radio=1

 

संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा