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BLOG: मैं भारत का ताज “हिमालय” हूं, क्या आपके पास मेरे लिए समय है ? मैं अपनी आत्मकथा आपके साथ सांझा करना चाहता हूं !

मैं भारत का ताज हिमालय हूं, मैं अपनी आत्मकथा आपके साथ सांझा करना चाहता हूं। काफी लंबे अर्से से मेरी हालत कुछ ठीक नही, तो सोचा आपके साथ अपना कुछ दर्द सांझा कर लूं, तो शायद कोई मेरी भी सुध लेले…..दरअसल, अब मेरे पहाड़ों का स्वरूप कुछ बदलने लगा है…रोज़ाना घंटों चलती मेरा सीना चीरती बड़ी-बड़ी मशीनें मेरी प्रकृति को रुला रहीं हैं….मेरें शरीर से चमड़े की तरह कितनी ही मिट्टी और पत्थर खरोंचे जा रहे हैं….मेरे बाल रूपी पेड़ व वनस्पति खींच-खींच कर उखाड़ी जा रही है….लेकिन मैं इन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर पा रहा….चुपचाप सहता रहता हूं…..।

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मुझे माफ करना मेरे बच्चो ! पिछले कुछ अर्से से मेरे चारों ओर फैली वादियों व गांवों में गर्मी बढ़ने लग गई है….आप सब मैदानी इलाकों से कुछ क्षण सुकून की तलाश में मेरी गोद का सहारा लेने मेरी बाहों में आते हैं तो मुझे बड़ा ही अच्छा लगता है….मेरी कोशिश भी यही रहती है कि मैं आपका पूरा ख्याल रखूं….आपके आने की खुशी में मौसम खुशनुमा रखूं…..लेकिन अब शायद मैं आपको वो सुकून ज्यादा समय तक नहीं दे पाऊंगा….क्योंकि अब यहां जैव विविधता को नुकसान होना शुरू हो गया है….मेरे ग्लेशियर की बर्फ अब पिघलने लगी है….यहां तक कि शीतकाल में भी बर्फ गिरते ही जल्दी पिघल जाती है….गांवों में पानी के स्त्रोत सूख रहे हैं जिस वजह से खेती में उपज कम हो रही है….हिमालय बाढ़ व भूस्खलन का खतरा भी ज्यादा बढ़ गया है….कई इलाके तो भूकंप के लिए अतिसंवेदनशील हो गए हैं…जिस वजह से मुझे हमेशा आप सब की फिक्र सताती रहती है….कि कहीं मेरे बच्चों यानि कीट-पतंगों, पशु-पंछियों व मनुष्यों को कोई आंच न आए।

यहां कितने ही ऋषि मुनि, योगी जप-तप में लीन हैं…..जब वो ओम का जाप करते हैं न तो मैं और मेरी प्रकृति भी उन्हीं के साथ जप-तप में लीन हो जाते हैं…लेकिन इन दिनों यहां की शांति में हो रही खलल मेरी शांति में बाधा डाल रही है…. आज हालात ऐसे हो गए हैं कि यहां कई गांव खाली हो चुके हैं और नदियों के किनारे बसे कई गांव व शहर अपना अस्तित्व ही खो चुके हैं…पर क्या आप जानते हैं कि मेरी ऐसी दशा का जिम्मेदार कौन है ? माफ करना पर वो आप हैं….पर्यटन के नाम पर मुझ पर कितने ही बांध बनाए जा रहे हैं…पर्यटन को बढ़ावा देने और राजस्व से फायदा उठाने की होड़ में मेरे पहाड़ों, नदियों और वादियों में जगह-जगह कितने ही रेस्टोरेंट, होटल, पांचसितारा होटल, बहुमंजिली इमारतें, शोपिंग कॉम्पलैक्स, शराब के ठेके, बांध व सड़कें बनाई जा रही हैं जिस वजह से मेरे पहाड़ों को अंधाधुंध चीरा जा रहा है….पेड़ काटे जा रहे हैं….और मैं उन्हें बचाने में असमर्थ हूं। मुझे ऐसा लगता है कि मैं भारत का ताज कहा जाने वाला हिमालय कितना कमज़ोर हो गया हूं। मैं अपनी प्रकृति व संपदा को बचाने में असफल हो रहा हूं। प्रकृति के संतुलन में गड़बड़ होने की वजह से अचानक से प्रकृतिक आपदाएं जब आ जाती हैं तो आप सबको उसकी चपेट में आता देख मेरा मन दहल जाता है….।   

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लेकिन जब मैं अपने अतीत की ओर झांककर देखता हूं तो एक सुनहरी सा दृश्य, देश का गौरवशाली व शक्तिशाली इतिहास मुझे याद आ जाता है….मैनें अपनी आंखों से भारत में जन्मी कई सभ्यताओं को बनते और ढहते देखा है…मैंने कई शक्तिशाली साम्राज्यों को उगते और डूबते भी देखा है…मैनें कई विजय व शौर्य गाथाओं को देखा है। मैं श्री राम से लेकर श्रीकृष्ण तक की सभी लीलाओं का साक्षी हूं…मैनें रावण से लेकर कौरवों तक का अंत होते देखा है….मैनें गुरूओं पीरो, फकीरों की इस धरती को सोना उगलते देखा है…..और लुटते भी देखा है….मैनें देश के वीरों को शहीद होते भी देखा है और आज़ादी का जश्न मनाते भी देखा है…., मैने भारत को फिर से युवा होते देखा है।

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मैं हिमालय युगों-युगों से हर उस बात का साक्षी हूं जिसे सुन-सुनकर आप सब अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस करते हैं और मुझे भारत मां का ताज कह कर पुकारते हैं लेकिन आज यहां के स्थानिय निवासियों का शहरों की ओर पलायन मुझे बहुत ही दुख दे रहा है….वो भी क्या करें उनके पास आजिवीका के साधन बहुत कम हैं…आज प्रदूषण व विकास के नाम पर मेरी सभी हिमालयन रेंजिज़ व नदियों के साथ हो रही छेड़छाड़ का ही ये परिणाम है कि जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। आप ये क्यों नहीं समझते यहां की भौगोलिक स्थिति मैदानी इलाकों की तरह नहीं होती तो फिर विकास के नाम पर यहां की जा रही उठापटक उसी तरह क्यों ?  सरकार को चाहिए कि समय रहते यदि मुझे बचाने (यानि हिमालय को बचाने) का प्रयास न किया गया तो इसके परिणाम काफी बुरे भी हो सकते हैं इसलिए केन्द्र व संबंधित राज्यों को जल्द ही मिलकर हिमालय संरक्षण के लिए कई ठोस कदम उठाने होंगे। हिमालयी राज्यों में निवास करने वालें लोगों को रोज़गार देने के नए अवसर प्रदान करने होंगे…पानी, बिजली व रसोई गैस की सुविधाओं व कीमत पर छूट देनी होगी ताकि स्थानिय निवासी यहां से पलायन न करें…हिमालय के गांव सूनें न हों….प्रकृति से छेड़छाड़ न करें….मुझे बचा लें…..मैं आपका हिमालय……..।

संपादक- मनुस्मृति लखोत्रा

Image courtesy: Pixabay