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यादग़ार लम्हेंः जिनकी आवाज़, संगीत और धुन के बिना 1987 में आयी रामायण का ज़िक्र अधूरा है, वो हैं महान संगीतकार रविन्द्र जैन


रामायण का ज़िक्र आते ही रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण की याद ताज़ा हो जाती है…ये दूरदर्शन का वो सुनहरा दौर था जब घर घर रामायण आंखों से नहीं बल्कि दिल से देखी जाती थी….। उन दिनों पूरे गांव या मोहल्ले में एक ही घर में टीवी हुआ करता था….आलम ये था कि आसपास के लोग रामायण देखने के लिए उसी एक घर में इकट्ठे हो जाया करते थे और टीवी के सामने रामायण शुरू होने से पहले ही हाथ जोड़कर बैठ जाया करते थे….उस रामायण में क्या नहीं था…..भक्ति रस घोलते गीत, चौपाई….रामायण के किरदारों द्वारा पेश की गई बेहतरीन अदायगी…इमोशन्स…लेकिन इन सबका आधार बनाता रामायण का वो इंट्रो सॉन्ग..जो भक्तिमयी आवाज़ के सम्राट रविन्द्र जैन की सुरीली और ऊंची आवाज़ के साथ होता था…उनकी आवाज़ में सुरीलापन, भक्ति रस, स्नेह, गंभीरता और गूंज ऐसी कि मानों जैसे बादलों को चीरती हुई सीधा श्री राम तक जा पहुंचती होगी….
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Thanks & Regards , Manusmriti lakhotra