जब कभी हमारी चलती-फिरती या दौड़ती-भागती ज़िंदगी में अचानक ही विराम आ जाता है तब हम सोचते हैं कि अब हम अपने कुछ अधूरे काम और कुछ अधूरे सपनों को पूरा करेंगे…लेकिन हमारे साथ होता वही है जो नियति को मंज़ूर होता है….ज़िंदगी में कैसा भी और किसी भी कारण से आया विराम हो, निश्चित ही वो विराम होता है, इसे यदि सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो असल में ये विराम हमें अपनी त्रुटियों से मुख़ातिब करा रहा होता है, और हमें एक नयी दिशा की ओर अग्रसर कर रहा होता है…या फिर यूं कह लीजिए की ईश्वर की ओर से एक और नयी ज़िम्मेदारी के लिए आपकी तैयारी हो रही होती है।

मेरा तो मानना है कि कई बार ज़िंदगी में विराम आना भी ज़रूरी है तब हम अपने आप के बारे में सोच पाते हैं और अपने मन की सुनते हैं…वरना हमें क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं, इस बारे में हम सोच ही नहीं पाते…बस भागते रहते हैं…अपनी ज़िंदगी की उड़ान को और अधिक ऊंचा भरने के ख्वाब सजाते-सजाते कहीं खो जाते हैं। देखते ही देखते हमें पता ही नहीं चलता कि इतनी जल्दी हमनें अपनी उम्र का सुनहरा पड़ाव गुज़ार दिया जहां अभी तो हमारे सपनों को पंख लगने थे…फिर हमें समझ में आता है कि हमारे सपने, सपने ही रह गए। तब हमारी ज़िंदगी के सुनहरी पन्नों के इतिहास में ‘सपनों’ के नाम से एक पन्ना और दर्ज हो जाता है।
वास्तव में सपने हैं क्या ?…देखा जाए तो बहुत कुछ हैं और न देखा जाए तो कुछ भी नहीं…लेकिन इन सपनों से भी बढ़कर शायद कुछ सवाल मेरे, आपके या हम सबके ज़हन में कभी न कभी ज़रूर आते होंगे….कि क्या हम इस दुनिया में सिर्फ कमाने, खाने और सो जाने के लिए ही आए हैं !!! क्या मरते दम तक हमें सिर्फ भागना ही है ? इंसान का जन्म किस उद्देश्य के लिए हुआ है और क्यों हुआ है ?..है ना सोचने लायक प्रश्न ?…जैसे हमें गहरी निद्रा से एकदम झकझोर देते हों !!!….करोड़ों वर्षों से हम इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोज रहें हैं लेकिन आज तक हमें इसका सटीक उत्तर नहीं मिला….हां, बहुत सी विचारधाराएं जरूर मिली….जिन्हें सुनकर कम से कम हम अपने मन को ढाढस तो बंधा लेते हैं…ऐसे प्रश्न कई बार मन में निराशा भी भर देते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि हमें अपने आप से हमेशा ऐसे प्रश्न पूछते रहना चाहिए, जिससे हमें अपने क्षणभंगुर जीवन का आभास होता रहेगा और हम अपने जीवन में कुछ भी गलत करने से पहले एक बार सोचेंगे तो ज़रूर कि किसी का गलत करने से क्या आपको पर्मानेंट सुख मिलने वाला है ?…क्या आप अमर हो जायेंगे ?…क्या आपको कभी मृत्यु नहीं आएगी ?….तो फिर छोड़ दीजिए उन राहों को जहां आपको कुछ गलत करना पड़े या किसी का बुरा करना पड़े…कुछ नहीं पड़ा इन सब में,….और कई बार आपको ऐसा भी लगता होगा कि हमारी ज़िंदगी में बहुत सी चीज़ें या बातें जिसके हमारे जीवन में कोई मायने ही नहीं थे या जिसे सोचने से कोई फायदा ही नहीं था, उन्हें हम बेकार में तवज्जो देते रहे, जबकि उनके बिना हम खुशी से अपनी ज़िंदगी गुज़ार सकते थे। हम अपना कितना कीमती समय दूसरों को कोसने, उनके गुनाहों को याद करने, उन्हें सजा देने, अपने आप को दुखी करने या फिर अपने आपको कोसने में गुज़ार देते हैं।
मत कीजिए ऐसा…इन सब प्रश्नों का अपने मन से त्याग कर दीजिए….देखना आपकी कितनी ही परेशानियां ठीक हो जाएंगी…कितनों के लिए आपके मन में भरी नफरत खत्म हो जाएगी, अपने कितने ही गुनाहगारों को आप माफ कर देंगे। जिससे आधे दुख तो आपके ऐसे ही खत्म हो जाएंगे। अपने मन को अच्छे मार्ग की ओर लगाएं….फिर देखना आपकी ज़िंदगी में एक ऐसा वक्त भी आएगा जब आप अपने गुनहगारों को माफ कर देंगे….यक़ीन मानिए आपके प्रश्नों के उत्तर आपको कोई नहीं देने वाला है। उत्तर आपको खुद ही खोजने होंगे….अपने हित के लिए अच्छे लोग, अच्छे दोस्त, अच्छी किताबें, अच्छी बातें, अच्छी सलाहें, अच्छे रास्ते आपको खुद ही खोजने होंगे….कोई आपको सही, सीधा और सच्चा रास्ता दिखा ही नहीं सकता जब तक कि आप नहीं देखना चाहेंगे…इन्हीं शब्दों के साथ अभी आपसे विदा लेती हूं…..और हो सके तो श्रीमद्भागवत गीता पढ़ें…आपके सारे प्रश्नों के हल आपको मिल जाएंगे…।
धन्यवाद, आपकी शुभचिन्तक, आपकी मनुस्मृति लखोत्रा