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Religion & Faith: हरी चुनरी ओढ़े आती है हरियाली तीज, सावन की मीठी फूहार लाती है हरियाली तीज, जानिए हरियाली तीज इतनी खास क्यों ?

सावन का मौसम हो…प्रकृति अपने पूरे शबाब पर हो..और कुदरत अपना सारा हरा रंग धरती पर उडेल दे…..ऐसे में हरियाली तीज के त्यौहार का आना सोने पर सुहागा सा लगता है, तब ऐसा लगता है कि जैसे सावन में प्रकृति हरी चुनरी ओढ़कर…सोलह श्रृंगार करके, छमछम करती बरसात संग…..सुहागिनों के लिए हरियाली तीज के रूप में तोहफा लाती है……तो फिर सुहागिनें इस दिन का इंतज़ार क्यों न करें ? सोलह श्रृंगार क्यों न करे ?

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Manusmriti Lakhotra, Editor : https://theworldofspiritual.com

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार सावन में हरियाली तीज, सोलह श्रृंगार और मेंहदी का खास महत्व बताया गया है क्योंकि सावन में हरे रंग को प्रकृति के साथ जोड़कर देखा जाता है, साथ ही हरा रंग खुशहाली, सुहाग, तरक्की, दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन जो भी सुहागिन स्त्री सोलह श्रृंगार करती हैं, अपने हाथों में मेंहदी लगाती है उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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हाथों में मेहंदी लगाने से लेकर मेहंदी रचने तक के पीछे भी खास महत्व है। क्योंकि हरियाली का प्रतीक मेहंदी जीवन में समृद्धि और नयापन लेकर आती है। मान्यता है कि हाथों में मेहंदी लगाना पति के प्रेम और खुशहाली का प्रतिनिधित्व करता है और हाथों में मेहंदी रचने के बाद जो रंग देती है वह पति के प्रति स्त्री के प्रेम को प्रदर्शित करती हैं।

श्रृंगार करने और झूला झूलने का महत्‍व भी जान लीजिए
हरियाली तीज के दिन सुहागिनों का 16 श्रृंगार करने का खास महत्‍व है जो ये ना कर सकें उन्हें तीन महत्‍वपूर्ण श्रृंगार- मेहंदी, चूड़ी और साड़ी पहनकर पूजन करना चाहिए और साथ ही झूला झूलने और लोक गीत गाने का भी विधान है। ऐसी मान्यता है कि जिस तरह जून में आग बरसाती गर्मी के बाद सावन का महीना बारिश की फुहार, खुशनुमा मौसम, हरियाली, सकारात्मकता और नयापन लेकर आता है ठीक वैसे ही हरियाली तीज के मौके पर महिलाएं घरेलू कामकाज और जीवन में चल रही परेशानियों से दूर होकर अपने मनोरंजन और प्रकृति का आनंद लेने के लिए झूला झूलती हैं और अपनी परेशानियों को भूल जाती हैं।

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हरियाली तीज मनाने के पीछे क्या है पौराणिक कथा ?

हरियाली तीज सावन के महीने का महत्वपूर्ण पर्व है। ये त्योहार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। कई स्थानों में इसे कज्जली तीज भी कहा जाता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार ये माना जाता है कि हरियाली तीज का व्रत सर्वप्रथम राजा हिमालय की पुत्री पार्वती ने रखा था। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर हरियाली तीज के दिन ही भगवान शिव ने पार्वती जी को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया जिसके फलस्वरुप उन्हें शंकर जी स्वामी के रुप में प्राप्त हुए। इसलिए हरियाली तीज पर कुंवारी लड़कियां व्रत रखती हैं और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं और सुहागनें इस दिन उपवास रखकर माता पार्वती और शिव जी से सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी कन्या पूरे श्रद्धा भाव से व्रत रखती है उसके विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।