अगर हम अपने जीवन के बारे में सोचें कि आखिर ये जीवन है क्या ? क्या ये सिर्फ नाम के पीछे भागना है ? क्या जीवन में कुछ पाना है….या कुछ खोना है….हमारा जीवन जीने का उद्देश्य क्या है ? क्या परमात्मा के पीछे जाना है या फिर अपने सपनों या अपनों के पीछे भागना है ?
तो इसका एक सीधा सा जवाब ये है कि असल में ये जीवन एक शांत नदी की तरह है…जो निरंतर बहती जा रही है….भले ही रास्ते में कई तरह कि रुकावटें भी आती हैं लेकिन फिर भी ये जीवनरूपी नदी रुकेगी नहीं…अपना रास्ता बनाती चली जाएगी और अंत में समंदर में मिल जाएगी….ठीक वैसे ही जीवन है…..और हमारे कर्म एक दर्पण की तरह हैं…आप जैसे हैं…आप जो कर्म करते हैं…ये जीवनरूपी दर्पण वही दिखाता है….यानि आप जो कर्म करते हैं वही कर्म लौटकर आपके सामने आते हैं….इसलिए ये सोचना व्यर्थ है कि इस जीवन ने आपको क्या दिया…बल्कि ये सोचिए इस जीवन को हम कितने आनंद और प्रेम से भर सकते हैं ताकि जीवन भी आपको वही लौटाए….जैसे सुंदर कर्म आपने किए हैं वैसे ही सुंदर कर्म लौटकर आपके आगे आएं…।
धन्यवाद,
संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा
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