दान किसे कहते हैं ? ज़ाहिर सी बात है निःस्वार्थ देने के भाव को या फिर अर्पण करने की निष्काम भावना को दान देना कहते हैं, सनातन धर्म में दान को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। प्राचीन काल में हमारे मनीषियों ने दान को धर्म के साथ जोड़कर दान को धर्म-कर्तव्य घोषित किया था। सनातन धर्म में चार प्रकार के दान बताए गए हैं- पहला है अन्नदान, दूसरा है औषध दान, तीसरा है विद्या दान और चौथा है अभयदान। इन सभी दान में से विद्या दान को सर्वश्रेष्ठ दान की संज्ञा दी गई है, लेकिन केवल वही दान सार्थक है जो निष्काम भाव से किया जाए, यदि दान करने के बाद सबके आगे गा दिया जाए तो वह सार्थक नहीं होता। इसलिए दान यदि अनमने मन से दिया जाए, ज़बरदस्ती दिया जाए, दिखावा करके दिया जाए, मुंह फेर कर दिया जाए, गुस्से में दिया जाए, देने के बाद पश्चाताप किया जाए, अपमान करके देना, विलंब से देना दान देने के बाद सुनाना आदि क्रियाएं दान को दूषित कर देती हैं, और ऐसा दान सार्थक नहीं हो पाता । सिर्फ सनातन धर्म में ही नहीं संसार के सभी धर्मों में दान देने की महिमा के बारे में बताया गया है।
ज़रूरतमंदों को दान देने से मन को सुकून तो मिलता ही है हमारे अंदर सकारात्मकता भी आती है। दान देने के पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है, जब हम किसी व्यक्ति को कोई वस्तु दान देते हैं तो उस वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं रह जाता, वह वस्तु पाने वाले के आधिपत्य में हो जाती है, अतः देने की इस क्रिया से हम कुछ हद तक अपने मोह पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इसलिए ही हमारे घरों में बचपन से ही हमें दान देना सिखाया जाता है, ये शास्त्रों के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि प्रार्थना ईश्वर की ओर आधे रास्ते लेकर जाती है, उपवास हमें ईश्वर के महल के द्वार तक पहुंचा देता है, और दान से हम भीतर तक प्रवेश करते हैं। हमारे सत्कर्मों से दान करना सर्वश्रेष्ठ कर्म है। कहते हैं दान जब करें तब आपके दूसरे हाथ को भी उसके बारे में पता न चले। लेकिन आज के समय में लोग दान कम करते हैं और सुनाते ज्यादा हैं। छोटे से छोटे दान का भी बड़ा दिखावा और गुनगान किया जाता है। संसार में दानशील व्यक्ति सर्वथा पूजनीय होता है व देवताओं की श्रेणी में आता है।
इसके अलावा भूखे को रोटी देना, किसी बीमार को दवा दिलाना या उसका इलाज करवाना, किसी दुखी व्यक्ति को उचित परामर्श देना, उसको अपना समय देना, आवश्यकतानुसार सहयोग देना, विद्या देना आदि जैसी निःस्वार्थ सेवाएं देना भी दान की ही श्रेणी में आती हैं।
धन्यवाद – संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा