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जीत, जश्न व आत्म विजय का दिनः विजयदशमी

देश में व्रत व त्यौहारों का सीज़न आते ही चारो ओर खुशी व धूम नज़र आती है। दुल्हन की तरह सजे  बाज़ारों की रौनक देखते ही बनती है।अपने ईष्ट के दर्शनों के लिए मंदिरों में लगी भक्तो की लंबी कतारें मंदिरों की भी शोभा बढ़ाती हैं। इन दिनों एक के बाद एक त्यौहारों के आने से सब लोग शॉपिंग करने और अपने घरों को सजाने में व्यस्त दिखाई देते हैं। आज कई लोग अष्टमी पूजन करके दशहरे के पूजन की तैयारियों में जुट गए होंगे और कई नवमी को कन्या पूजन करेंगे फिर दशहरे के पूजन की तैयारियां करेंगे लेकिन बच्चों में उत्सुकता ये होगी की हम दशहरे का मेला देखने जाएंगे और मेले में विशाल रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन देखेंगे।

वैसे तो दशहरा पारम्परिक तौर पर रावण पर श्रीराम की विजय के जश्न का दिन है जिसे पूरे हर्ष और उल्लास के साथ देशभर में मनाया जाता है। आश्विन मास में नवरात्र का समापन होते ही अगले दिन यानी दशमी तिथि को मनाये जाने वाले इस पर्व को बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन खासकर खरीददारी करना शुभ माना जाता है जिसमें सोना, चांदी और वाहन की खरीद बहुत ही अच्छी मानी जाती है। ये दिन देखा जाए तो भगवान राम की पूजा का दिन है ताकि जिस तरह इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और शत्रु पर विजय प्राप्त की थी ठीक उसी तरह इस दिन भगवान राम की पूजा करने से शत्रुओं का नाश होता है। बुराई हमसे कोसों दूर चली जाती है। बुराई किसी भी रूप में हो सकती हैं, जैसे क्रोध, असत्य, बैर, इर्ष्या, दुख, द्वेष, आलस्य आदि। इस दिन क्यों न हम अपने आप से भी ये फैसला लें कि हमारे अंदर जो भी बुराई हो उसे अपने अंदर से खत्म करने का प्रण करें, क्योंकि अपने अंदर से किसी भी तरह की आतंरिक बुराई को खत्म करना भी एक तरह से आत्म विजय है।

इस दिन लोग अपने घर में पड़े औजारों व शस्त्रों की भी पूजा करते हैं क्योंकि पूराने समय में इस दिन औजारों और हथियारों की पूजा की जाती थी क्योंकि वे इसे युद्ध में मिली जीत के जश्न के तौर पर देखते थे, और किसानों के लिए भी ये जश्न का दिन है क्योंकि इस दिन मेहनत की जीत के रूप में उनके घर हरियाली आती है। सैनिकों के लिए भी ये दिन जश्न का दिन है क्योंकि युद्ध में दुश्मन पर जीत का प्रतीक है।

 विजयदशमी की कथा-

विजयादशमी के पीछे कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रचलित कथा ये है कि भगवान राम का युद्ध जीतना अर्थात रावण की बुराई का विनाश कर उसके घमंड को तोड़ना। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था। इसलिए भी इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और मां दूर्गा की पूजा भी की जाती है।

माना जाता है कि भगवान श्री राम ने भी मां दूर्गा की पूजा कर शक्ति का आह्वान किया था, भगवान श्री राम की परीक्षा लेते हुए पूजा के लिए रखे गए कमल के फूलों में से एक फूल को देवी ने स्वयं गायब कर दिया। चूंकि श्री राम को कमल के समान नेत्रों वाला कहा जाता था इसलिए उन्होंने अपना एक नेत्र मां को अर्पण करने का निर्णय लिया। ज्यों ही वे अपना नेत्र निकालने लगे देवी प्रसन्न होकर स्वयं उनके समक्ष प्रकट हुई और उन्हें विजयी होने का वरदान दिया।