स्वामी तुलसीदास द्वारा रचित गीतावली के कुछ अंश

आज सुदिन सुभ घरी सुहाई राग आसावरी आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई | रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई || अति पुनीत मधुमास, लगन-ग्रह-बार-जोग-समुदाई | हरषवन्त चर-अचर, भूमिसुर-तनरुह पुलक जनाई…

Continue Readingस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित गीतावली के कुछ अंश

क्योंकि सपना है अभी भी : धर्मवीर भारती

क्योंकि सपना है अभी भी इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल कोहरे डूबी दिशाएं कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी…

Continue Readingक्योंकि सपना है अभी भी : धर्मवीर भारती