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ब्रह्मांडीय घटनाएं तो देती हैं प्रमाण ! फिर भी वैज्ञानिक आज तक क्यों नहीं प्रमाणित कर पाए श्री राम जन्म के साक्ष्य ?

दिवाली आते ही यकायक हमारे मन-मस्तिष्क में एक बार फिर उस युग, समय और दिन की याद ताज़ा हो जाती हैं जब श्री राम रावण का वध कर और 14 वर्षों का बनवास काटकर माता सीता व लक्ष्मण सहित अयोध्या वापिस लौटे थे। कहते हैं उनके वापिस लौटने की खुशी में अयोध्या नगरी में उत्सव का माहौल था व घर-घर दीपक जलाए गए थे, बस तब से आज तक हम इस खुशी को दीवाली के दिन मनाकर श्री राम को याद व उनकी पूजा अर्चना करते हैं। भगवान राम की ये कथा हिंदू धर्म व संस्कृति में कुछ इस कदर रची बसी है कि आज भी जब कोई बच्चा पैदा होता है, तो सबसे पहले उसकी जिह्वा पर शहद से राम ही लिखा जाता है। हर कोई मां भी अपने बच्चे को मर्यादापुरषोत्तम भगवान राम जैसा ही देखना चाहती है व कोई भी युवती जवां होते होते श्री राम जैसा पति पाने की कामना करती है यही तो है भारतीय संस्कृति की नस-नस में बसी श्री राम के प्रति श्रद्धा व आस्था।

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लेकिन इन सबके अलावा और भी बहुत कुछ है जिसे जान लेने के बाद भगवान राम के प्रति आस्था, विश्वास और श्रद्धा और भी ज्यादा बढ़ जाती है। फिर इसके बाद ऐसा लगता है मानो श्री राम नाम के अलावा कुछ और सोचने की ज़रूरत ही नहीं।

क्योंकि जब हमारे अंदर की जिज्ञासा हमसे ये प्रश्न पूछने लगती है कि क्या भगवान राम सिर्फ एक कल्पना हैं या सच ?

क्या ऐसा कोई विज्ञान है जो उनके होने के साक्षी खोजकर ला दे ?

वेदों के अलावा भी क्या हमारे पास कोई ऐसा वैज्ञानिक प्रमाण है जहां से हमें पता चले कि वो सच में धरती पर आए थे ?

रामायण और भगवान राम अगर वास्तविक हैं तो ये चांद, ये तारे, ये सूरज या उस वक्त के नक्षत्रों व ब्रह्मांडीय घटनाओं ने तो उन्हें धरती पर जन्म लेते, बाल लीलाएं रचाते, जंगल भटकते, रावण का वध करते, अयोध्या वापिस लौटने देखा होगा !

वे सब तो उस वक्त भी थे क्या इन नक्षत्रों के पास ऐसा कोई प्रमाण है ?

क्या उस वक्त के ऋषि, मुनियों ने जो कथाएं लिखी, उस वक्त से चली आ रही कई दंत कथाएं भी होंगी, क्या वैज्ञानिक तौर पर वो नक्षत्रों की भाषा के साथ मैच करती हैं ?

सदियों से इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए कई वैज्ञानिक शोध चलते आ रहे हैं व कई अनुसंधानों ने इस पर शोध करके प्रमाणित भी किया है। चलिए आज कुछ ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए किए गए शोधों पर विचार किया जाए और एक के साथ एक कड़ी को जोड़कर रहस्यों को समझने की कोशिश की जाए !

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श्री राम के जन्म की तिथि को लेकर साक्ष्य व प्रत्यक्ष प्रमाण केवल हमारे वेद और पुराण माने जाते हैं, जिनके अनुसार श्री राम की कथा को हम सब सच मानते हैं। जिनके अनुसार हम महसूस करते हैं कि उस वक्त कैसी भाषा में भगवान राम बात किया करते थे ? वस्त्र व आभूषण किस तरह के धारण किया करते थे? भगवान राम न्याय कैसे किया करते थे ? आपकी हमारी तरह उनकी दिनचर्या कैसी थी ? लेकिन विज्ञान हर बात को तथ्यों के आधार पर ही प्रमाणित करता है।

लेकिन वाल्मीकि रामायण में श्री राम के सम्बन्ध में लिखे इस श्लोक के आधार पर कुछ ऐसा प्रमाण मिलता है।

नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु ।

ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥

अर्थात चैत्र मास की नवमी तिथि में, पुनर्वसु नक्षत्र में, पांच ग्रहों के अपने उच्च स्थान में रहने पर तथा कर्क लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति के स्थित होने पर (श्री राम का जन्म हुआ)। श्री राम का जन्म त्रेता युग के अंत में हुआ था ऐसा स्वामी वाल्मीकि जी ने लिखा हैः-

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हत्वा क्रूरम् दुराधर्षम् देव ऋषीणाम् भयावहम्।

दश वर्ष सहस्त्राणि दश वर्ष शतानि च।।

भाव- देवताओं तथा ऋषियों को भय देने वाले क्रूर एवं दुर्घर्ष राक्षस का नाश करके मैं ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी का पालन करता हुआ मनुष्य लोक में निवास परुंगा। अर्थात श्री राम 11000 वर्षों तक पृथ्वी पर रहे।

इस श्लोक के आधार पर ये भी माना जाता है कि श्री राम ने 11000 वर्षों तक पृथ्वी पर निवास किया।

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लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर अगर हम बात करें तो कुछ साल पहले शायद साल 2015 में ये खबर कई टीवी चैनल्स व अखबारों की सुर्खियां बनी रही थी कि वैज्ञानिक शोध के अनुसार भगवान राम के जन्म का असली समय का पता चल गया है

लेकिन एक वेबसाइट ने इस बारे शोध करते हुए एक ब्लॉग में लिखा है कि

इससे पहले मराठी शोधकर्ता विद्वान डॉ. पद्माकर विष्णु वर्तक ने वाल्मीकीय रामायण में दिए गए प्रमाणों के अनुसार वैदिक राम जन्म के समय को सही माना है। उनके अनुसार वाल्मीकीय रामायण में राम जन्म के वक्त विंध्याचल पर्वत और हिमालय की ऊंचाई का वर्णन किया गया है और श्री राम के जन्म के वक्त का वर्णन करते हुए बताया है कि विंध्याचल पर्वत की ऊंचाई 2467 है और विंध्याचल व हिमालय की ऊंचाई एक समान है। इसलिए उनके अनुसार वाल्मीकीय रामायण में दिए गए राम जन्म के इस प्रमाण के अनुसार उनके जन्म का वक्त सही है, उनके अनुसार जैसे विंध्याचल की ऊंचाई 2467 फीट है व स्थिर है लेकिन हिमालय की ऊंचाई वर्तमान में 29,029 फीट है और निरंतर वर्धनशील है। विशोषज्ञों की मान्यता है कि 100 वर्षों में हिमालय का आकार 3 फीट बढ़ता है अतः दोनों की ऊंचाई में अंतर 26,562 फीट है। यानिकी हिमालय को 26,562 फीट बढ़ने में करीब 8,85400 वर्ष लगे होंगे व आज से करीब 8,85,400 वर्ष पहले हिमालय की ऊंचाई विंध्याचल पर्वत के समान थी। तो इस दृष्टिकोण से डॉ. वर्तक ने ये अनुमान लगाया था

इसके बाद दिल्ली में स्थित एक संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा यानी आई सर्व ने लंबे वैज्ञानिक शोध के बाद चौंकाने वाला दावा किया था कि वेदों और रामायण में विभिन्न आकाशीय और खगोलीय स्थितियों का जिक्र मिलता है, जिसे आधुनिक विज्ञान की मदद से 9 हजार साल ईसा पूर्व से लेकर 7 हजार साल ईसा पूर्व तक प्रमाणिक तरीके से क्रमानुसार सिद्ध किया जा सकता है।

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आई सर्व ने आधुनिक विज्ञान से जुड़ी 9 विधाओं, अंतरिक्ष विज्ञान, जेनेटिक्स, जियोलॉजी, एर्कियोलॉजी और स्पेस इमेजरी पर आधारित रिसर्च के आधार पर इस बात का दावा किया था कि यदि हम वैदिक प्रमाणों के आधार पर बात करें तो श्री राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था।

यहां ये बताना भी दिलचस्प होगा कि वाल्मीकि रामायण में रामकथा से जुड़ी हर बड़ी घटना का जिक्र खगोलीय स्थितियों के साथ किया गया है जिसका फायदा ये हुआ कि खगोलिय घटनाओं के आधार पर आज देश में चैत्र-शुक्लपक्ष की नवमी को भगवान राम के जन्मदिन की तरह मनाया जाता है

शोध संस्था आई सर्व के मुताबिक वाल्मीकि रामायण में जिक्र श्री राम के जन्म के वक्त ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का सॉफ्टवेयर से मिलान करने पर जो दिन मिला, वो दिन था 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व, उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों में एक जैसी है। लिहाजा, रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि श्री राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ।

यहां तक कि आई सर्व के रिसर्चरों ने जब धार्मिक तिथियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चंद्र कैलेंडर की इस तिथि को आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो ये जान कर हैरान रह गए कि सदियों से भारतवर्ष में श्री राम का जन्मदिन बिल्कुल सही तिथि पर मनाया जाता आया है।

लेकिन एक अन्य वेबसाइट में दी गई सूचना के अनुसार इसके बाद कुछ और विशेषज्ञों ने ejplde431 सॉफ्टवेयर द्वारा की गई गणना को चैक किया तो कुछ और ही निकल कर सामने आया कि इस सॉफ्टवेयर की गणना के अनुसार तिथि तो नवमी हो जाती है लेकिन शनि वृष्चिक में ही आता है व चंद्रमा पुष्य के चतुर्थ में, जिससे 10 जनवरी 5114 ईसापूर्व श्री राम के जन्म की तिथि के साथ तालमेल बनता नहीं पाया गया।

आज भी शोध जारी है न जाने विद्वानों का मत श्री राम के जन्म को लेकर कब एक होगा लेकिन वेदों-पुराणों के अनुसार हर वर्ष मनाया जाने वाला श्री राम का जन्म दिवस और तिथि ही सही मानी जा रही है। इस पर यदि आपको कोई अन्य जानकारी है तो हमारे साथ अवश्य शेयर करें।