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Way to Spirituality: मृगतृष्णा में क्या रखा है, साधना से अपने आप को स्वयं साधिए !

बचपन में आपने बंदर और मदारी वाला खेल तो ज़रूर देखा होगा, याद आया ? कैसे बंदर अपने मालिक मदारी के कहने पर नाच कर दिखाता है, और कैसे मदारी के कहने पर अपनी साथी बंदरिया के साथ एक छोटा सा नाटक करके भी दिखाता है, जिसे देखकर हम कैसे हैरान रह जाते हैं कि ये नन्हा सा जानवर जो कि इतना नटखट है, अपनी शरारतों से कितना उत्पात मचा देता हैं लेकिन मदारी के कहने पर चश्मा पहनकर कैसे नए-नए करतब दिखा रहा है, वैसे ही सर्कस भी आपने कभी न कभी तो देखी होगी। कैसे रस्सी पर चलकर या रस्सी के सहारे हवा में परियों की तरह उड़ती खूबसूरत युवतियां हमारा मनोरंजन करती हैं। हाथी, शेर, भालू जैसे जंगली जानवर भी अपने मास्टर के एक आदेश पर बारी-बारी रिंग में आते हैं और अपने हैरतअंगेज़ करतब पेश करते हैं। जादूगर अपने हाथ के कमाल से कितने ही ट्रिक दिखाकर हमें हैरत में डाल देता है, और हम सोचा करते है कि सिर्फ जादूगर ही करके दिखा सकता है। आज हमें पता है कि ये सिर्फ ट्रिक्स होते हैं जिन्हें बड़ी ही सफाई के साथ हमारी आंखों के सामने करके दिखा दिया जाता है।

अब मैं आती हूं असल बात पर…. कि बंदर और मदारी वाला खेल, रस्सी पर चलने वाला खेल, सर्कस में करतब दिखाते जंगली व आदमखोर जानवर, जादूगर के ट्रिक्स, ये सब क्या हैं ?  असल में ये साधना और अभ्यास हैं। सबसे पहले जानवरों का उदाहरण ले लेते हैं, इन जानवरों ने अपने आप करतब करके नहीं दिखाए हैं उन्हें धीरे-धीरे प्यार, डांट-फटकार और दिशानिर्देश से ऐसा करना सिखाया गया यानि उसमें एक मास्टर और पशु दोनों की साधना लगी, ऐसे ही खेत में हल जोतने वाला बैल या घुड़सवारी के लिए घोड़े को दिया गया प्रशिक्षण भी उसके मालिक और पशु की साधना व अभ्यास से मिलता है। जिसके बाद बंदर, बैल, घोड़ा आदि जानवर अपने मालिक के आदेश समझने लग जाते हैं और नतीजा अपने मालिक के कहे अनुसार काम करने लग जाते हैं। ये भी उनकी साधना थी, ठीक वैसे ही हमारी इंद्रियों का समूह जिसमें मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि भी पशु के समान समझे जा सकते हैं। जब बच्चा पैदा होता है ये सभी इंद्रियां पशु के समान ही होती हैं। लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है मां-बाप उसे अपने संस्कार देते हैं।

मैं यहां क्या कहना चाह रही हूं अब शायद आप मेरी बात को समझ पायेंगे, कि पैदा हुए बच्चे कि इंद्रियां जो कि एक पशु के समान हैं, उसकी आवाज़ को आप शब्द देते हैं यानि बोलना सिखाते हैं, उसे आज्ञाकारी बनाने के लिए अच्छे-बुरे में फर्क समझाते हैं, गुण व अवगुण में फर्क सिखाते हैं, जिसके लिए उसे पढ़ाते हैं, उसकी हर मांग अपनी हैसियत के अनुसार पूरी करने की कोशिश करते हैं। अपनी जमा पूंजी उसकी परवरिश में लगा देते हैं। इस तरह उसकी इंद्रियों को पशुता से मनुष्यता में बदलने आप सबसे बड़े मददगार होते हैं, इससे अच्छा कर पायें तो मनुष्यता से देवेत्व तक बनाने के गुण भी आप ही दे सकते हैं। यानि अपने बच्चे के अंदर दिव्य गुणों को भरना आप पर निर्भर करता है जिसके लिए आप बच्चे के पैदा होने से लेकर युवा होने तक कड़ी साधना करते हैं।

इसे हम कहेंगे साधना और अभ्यास। तो आप बतायें कि अगर आपके अंदर ही सभी ऐसे गुण मौजूद हैं जहां आप साधना करके आश्चर्यचकित परिणाम पा सकते हैं तो फिर मृग-तृष्णा की तरह संस्कार, शांति, साधना, भगवान ढूंढने आप बाहर क्यों भटक रहे हैं ? एक बार अपने आप से पूछकर तो देखें !

मनुस्मृति लखोत्रा