गज़लः-
एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं
किसको तलाश करते रहे कुछ पता नहीं
शिद्दत की धूप तेज़ हवाओं के बावजूद
मैं शाख़ से गिरा हूँ नज़र से गिरा नहीं
आख़िर ग़ज़ल का ताजमहल भी है मकबरा
हम ज़िन्दगी थे हमको किसी ने जिया नहीं
जिसकी मुखालफ़त हुई मशहूर हो गया
इन पत्थरों से कोई परिंदा गिरा नहीं
तारीकियों में और चमकती है दिल की धूप
सूरज तमाम रात यहाँ डूबता नहीं
किसने जलाई बस्तियाँ बाज़ार क्यों लुटे
मैं चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नहीं
गज़लः-
रात इक ख़्वाब हमने देखा है
फूल की पंखुड़ी को चूमा है
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उसने लूटा है
हम तो कुछ देर हंस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
कोई मतलब ज़रूर होगा मियाँ
यूँ कोई कब किसी से मिलता है
तुम अगर मिल भी जाओ तो भी हमें
हश्र तक इंतिज़ार करना है
पैसा हाथों का मैल है बाबा
ज़िंदगी चार दिन का मेला है
गज़लः-
हमारे हाथों में इक शक़्ल चाँद जैसी थी
तुम्हें ये कैसे बताएं वो रात कैसी थी
महक रहे थे मिरे होंठ उसकी ख़ुश्बू से
अजीब आग थी बिलकुल गुलाब जैसी थी
उसी में सब थे मिरी माँ बहन बीबी भी
समझ रहा था जिसे मैं वो ऐसी वैसी थी
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गयी
हमारे हाथ में कोई लक़ीर ऐसी थी
गज़लः-
मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो
इक टहनी पर चाँद टिका था
मैं ये समझा तुम बैठे हो
उजले-उजले फूल खिले थे
बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो
मुझ को शाम बता देती है
तुम कैसे कपड़े पहने हो
तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे
बच्चों सी बातें करते हो
गज़लः-
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना!
आईना बात करने पे मजबूर हो गया
दादी से कहना उस की कहानी सुनाइए
जो बादशाह इश्क़ में मज़दूर हो गया
सुब्ह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया
कुछ फल ज़रूर आएँगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन मिरा मुतालबा मंज़ूर हो गया