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धर्म एवं आस्था : यज्ञ क्या है, यज्ञ या हवन होने से अच्छा महसूस क्यों होता है ? जानिए आध्यात्मिक व वैज्ञानिक कारण !

धर्म एवं आस्था डेस्कः यज्ञ का अर्थ है- आहुति, त्याग, बलिदान, सर्वश्रेष्ठ कर्म या चढ़ावा, वैसे यज्ञ शब्द संस्कृत का है। यज्ञ भी एक प्रकार की उपासना पद्धति है। अग्नि में घी डालकर मंत्र पढ़ लेना ही यज्ञ नहीं होता। अपने पसंदीदा खाद्य पदार्थों, मूल्यवान सुगंधित व पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि व वायु के माध्यम से संसार व जनकल्याण के लिए वितरित किया जाता है। वायु शोधन से सबको आरोग्यवर्धक सांस लेने का अवसर मिलता है। हवन हुए पदार्थ वायुभूत होकर प्राणिमात्र को प्राप्त होते हैं और उनके स्वास्थ्यवर्धन, रोग निवारण में सहायक होते हैं। यज्ञ काल में उच्चारित वेद मंत्रों की शब्द ध्वनि आकाश में व्याप्त होकर लोगों के अंतःकरण को सात्विक एवं शुद्ध बनाती है। आजकल यज्ञ को अग्निहोत्र, हवन, देवयज्ञ या अध्वर भी कहने का चलन हो गया है।

अग्निहोत्र- जिसका अर्थ हैं- अग्नि में आहुति किये जाने वाले द्रव्यों की आहुतियां दी जाती हैं। इसमें चार प्रकार के द्रव्य पदार्थ डाले जाते हैं-

सुगन्धित-केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावित्री आदि

पुष्टिकारक पदार्थ- घृत, दूध, फल, कंद, मखाने, अन्न, चावल, जौं, गेहूं, उड़द आदि

मिष्ठान पदार्थ- शक्कर, शहद, छुहारा, किशमिश, दाख आदि

रोगनाशक पदार्थ- गिलोय, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, मुलहठी, सोंठ, तुलसी आदि औषधियां व वनस्पतियां जो की स्वास्थ्यवर्धक होती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो अग्निहोत्र के दौरान ये सभी पदार्थ अग्नि में विलीन हो जाते हैं अतः इनके सूक्ष्म कण हवा व वायुमण्डल में फैलकर वातावरण को स्वच्छ करते हैं। इनकी सुगन्धि से रोगवर्धक कीटाणुओं का नाश होता है। दुर्गन्धनाशक होता है व वर्षाजल को भी शुद्ध करता है। रोगजनक कृमि पर्वतों, वनों, औषधियों, पशुओं और जल में रहने वाले व हमारे शरीर में अन्न व जल के साथ जाते हैं उन सबका नाश होता है। कहा जाता है कि पर्यावरण को शुद्ध करने का एकमात्र उपाय यज्ञ है। यज्ञ के दौरान मंत्रों के उच्चारण से घर व वातावरण में सकारात्मकता आती है। मन शांत होता है। नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।

हिंदू धर्म में वेदो एवं ग्रंथों अनुसार यज्ञ एक ऐसी उपासना पद्धि है जो मूर्तिपूजा के बिल्कुल विपरीत है, यज्ञ परोपकार की सर्वोत्तम विधि है, जैसे हवन सामग्री में जो भी आहुति दी जाती है उसकी सुगंधि वायु द्वारा कितने ही प्राणियों तक पहुंचती है। वे उसकी सुगंध से आनंद महसूस करते हैं और यज्ञ करने वाला तो सत्कर्म करने का सुख प्राप्त करता ही है। सुगंधि प्राप्त करने वाले व्यक्ति याज्ञिक को नहीं जानते और न ही यज्ञ करने वाला उन्हें जानते हैं फिर भी परोपकार हो रहा है।

महर्षि दयानंद यज्ञ की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, सब लोग जानते हैं कि दुर्गंधयुक्त वायु और जल से रोग, रोग से प्राणियों को दुख और सुगंधित वायु तथा जल से आरोग्य और रोग नष्ट होने से सुख प्राप्त होता है, वैसे दुर्गंध का भी। इतने से समझ लो कि अग्नि में डाला हुआ पदार्थ सूक्ष्म होकर फैल कर वायु के साथ दूर देश में जाकर दुर्गंध की निवृत्ति करता है। अग्निहोत्र से वायु, वृष्टि, जल की शुद्धि होकर औषद्धियां शुद्ध होती हैं। शुद्ध वायु का श्वास स्पर्श, खान-पान से आरोग्य, बुद्धि, बल पराक्रम बढ़ता है। इसे देवयज्ञ भी कहते हैं क्योंकि यह वायु आदि पदार्थों को दिव्य कर देता है।

इसलिए अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मुल्यवान सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित किया जाता है जिससे निष्काम भाव से कर्म व परोपकार होना माना जाता है।