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‘अगर आपको हिंदी बोलने में शर्म आती है तो आप मेरा त्याग कर सकते हैं’ ? “मैं मातृभाषा हिंदी बोल रही हूं” !

इस लेख की हेडिंग आपको कुछ अचंभित ज़रूर कर सकती है, लेकिन ये सच हैं, यदि आप मानवीय प्रतीकात्मक रूप में हिंदी भाषा को मां समझें, तो शायद मां हिंदी अपने उन बच्चों से कुछ ऐसे ही सवाल पूछेगी जिन्होंने उसे त्याग दिया है!

“मेरे बच्चो मैं आपकी मातृ भाषा हिंदी बोल रही हूं, ‘यदि आपको मुझमें बोलने में शर्म आती हो तो मेरे बच्चों आप मेरा त्याग कर दें, मैं आपसे कुछ न कहूंगी, लेकिन कुछ सवाल हैं मेरे क्या आप उनके उत्तर देंगे?

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अगर आपने मेरा त्याग कर ही दिया है तो फिर मैं आप के लिए मातृ भाषा कैसे ? क्या मैं अब सिर्फ नाम की मातृ भाषा बनकर रह गई हूं! पहले आपने धीरे-धीरे अपनी ज़ुबान से मेरा त्याग कर दिया है, क्या फिर मेरे प्यारे देश ‘भारत’ से भी मेरा त्याग कर देंगे?  क्या फिर मेरा भी वही हाल होगा जो आपने संस्कृत के साथ किया ? याद कीजिए जब आपका जन्म हुआ था तो पहला अक्षर आपने ‘मां’ ही बोला था, जब आपका नामकरण हुआ था तब पंडित नें हिंदी और संस्कृत के श्लोंकों में ही आपकी पूजा की थी, कितने ही मंत्रोच्चारण किए थे, आपको ढेरों आशीर्वाद दिये थे और हिंदी में ही आपका नाम रखा गया था और वे भी ज़रा याद कर लें जब आपके घर में किसी अपने का दाह संस्कार हुआ था तो भी उनकी पवित्र आत्मा की मुक्ति के लिए ईश्वर को हिंदी में ही याद किया था, उनके दाह-संस्कार के समय जो मंत्रोच्चारण हुए थे वे भी संस्कृत के श्लोकों में ही हुए थे। तो क्या अब मैं ऐसा समझूं कि आने वाले समय में पूजा, यज्ञ, हवन, दाह-संस्कार भी आप अंग्रेज़ी में ही किया करेंगे ? संस्कृत भाषा जिसने आपको कितने ही ग्रंथ, वेद, पुराण इत्यादि दिए उसे तो आप काफी हद तक खो ही चुके हैं, अब मैं भी खत्म होने की कगार पर खड़ी हूं, मुझमें बात करने से आज आप असभ्य कहलाने लगे हैं, फिर मैं आपकी मातृ भाषा कैसे”?

शायद मानवीय रूप में हमारी मातृ भाषा हिंदी की पुकार कुछ ऐसी ही होगी लेकिन सही मायनों में हम हिंदी भाषा को खोते जा रहें हैं। हिंदी चैनल्स में काम करने के बाद मुझे एक-दो कॉरपोरेट हाऊसिज़ में भी काम करने का मौका मिला जहां का माहौल एक दम अलग दिखा। वहां हिंदी बोलने वाले को जैसे असभ्य समझा जाता था। कईयों को हिंदी बोलने वालों का उपहास उड़ाते भी देखा या कुछ ऐसे शब्द कि “ये हमारे लेवल या स्टैंडर्ड का नहीं”। जबकि वो शख्स हर लिहाज़ में औरों से ज्यादा सुयोग्य, सभ्य व संवेदनशील थे। याद रखें कि स्नेह, प्यार व विश्वास जैसी भावनाओं को हम सिर्फ अपनी ही भाषा में महसूस करते हैं अन्य में नहीं।

दोस्तों, आज विश्व हिंदी दिवस है। जिसका उद्देश्य विश्व भर में हिंदी के प्रचार-प्रसार व अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। आप जानते ही होंगे कि आज के दिन विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों में भी अलग-अलग विषयों पर हिंदी के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विश्व हिंदी दिवस को मनाने की शुरुआत के बारे में भी एक बार आपको याद दिलाना चाहूंगी कि हिंदी दिवस को मनाने की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्‍टर मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को की थी। तभी से हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस (Vishv Hindi Divas) मनाया जाता है, वैसे विश्व हिंदी दिवस के अलावा हर साल 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’  मनाया जाता है क्योंकि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया था तभी से 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

लेकिन अफसोस हिंदी की जगह मुख्य धारा में अंग्रज़ी का बोलबाला है। हिंदी दिवस पर, प्रतियोगिताओं में, ब्लॉगिंग में, सोशल साइट्स पर हिंदी को प्रोत्साहन तो दिया जाता है लेकिन अगर मुख्य धारा में लाने की बात कि जाए तो ये एक दम असंभव सा लगता है क्योंकि यहां हर क्षेत्र में बचपन से लेकर नौकरी पाने तक अंग्रेज़ी में ही जद्दोजहद करनी पड़ती है, न जानें हम चीन या जापान की तरह कब सोच पाएंगे क्योंकि वहां हरेक क्षेत्र में वे अपनी ही भाषा में काम करते हैं। मुझे तो अपने बारे में ऐसा लगता है कि हिंदी के बिना मेरे अहसास ही मर जायेंगे, मैं कभी कविता ही नहीं लिख पाऊंगी, मेरी भावनाएं कभी बयान ही नहीं कर पाऊंगी, मुझे हिंदी के लिए अपनी मां जैसी भावनाएं नज़र आती हैं।

सन् 1991 में हमारे देश में ऐसी औद्धोगिक क्रांति आई कि युवाओं को रोज़गार के नए-नए अवसर मिलने लगे। ये माना कि विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाने में ये एक बड़ी क्रांति थी। इसके बाद 1992 में SEBI के बाद देश में व्यवसाय और भी अधिक अंग्रेज़ी में होना शुरु हो गया और धीरे-धीरे कितनी ही विदेशी कंपनियां हमारे देश में अपने पैर पसारती गईं। आज हमारे देश में लाखों युवा डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर (साहित्य या भाषा के अलावा), एमबीए, फार्मासिस्ट, साइंटिस्ट इत्यादि हैं, ये भी हमारे लिए सम्मान की बात है, लेकिन इस लेवल या पोजिशन को पाने के लिए उनकी स्कूलिंग से लेकर हरेक डिग्री अंग्रेज़ी में होनी चाहिए तभी आगे जाकर वो किसी बड़ी कंपनी में इंटरव्यू क्लीयर करने के योग्य होते हैं। वे भी क्या करें युवाओं के आगे भी घर-परिवार और अपने भविष्य की ज़िम्मेदारियां उन्हें उसी दौड़ में भागने को मजबूर कर देती हैं जहां कई बार न चाहकर भी उन्हें उस रेस का हिस्सा बनना पड़ता है।

वाह रे अंग्रेज़ी, आज भारत में हज़ारों विदेशी कंपनियां हैं जिनमें हमारे देश के युवा अच्छे से अच्छे पैकेज पर सम्मान के साथ नौकरी कर रहें हैं। अपने परिवार की हरेक ज़रूरत पूरी कर रहे हैं, अपने सपनों को साकार होता देख रहें हैं, ये भी हमारे लिए गर्व की बात हैं। भारत का हरेक बेटा या बेटी सक्षम हो रहे हैं, अच्छा है, लेकिन हिंदी को सम्मान न दिलाने की गलती युवाओं से ज्यादा हमारे पूर्वज़ों से हुई, अंग्रेजों ने भारत पर सौ साल राज किया इन सौ सालों में अंग्रज़ी में वो इतना काम कर गए कि उनकी ताकत हमारी मजबूरी बनती गई और हमें भी नौकरी व सम्मान पाने के लिए उनकी भाषा सीखनी पड़ी। आज जितना तो बदलाव आ चुका है ऐसे में ये कहां नहीं जा सकता कि अब अंग्रेज़ी के बिना सोचा भी जा सकता है, लेकिन कम से कम इतना तो ज़रूर करें कि अगर आपको अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी या अच्छा व्यवसाय करने के लिए अंग्रेजी पढ़ना, बोलना व लिखना अनिवार्य है, तो चाहे आप अंग्रेज़ी, जर्मन या फ्रेंच कोई भी भाषा सीखें। बेशक, जो भी आपसे जिस भाषा में बात करे उसी की भाषा में उन्हें जवाब दें व आपना काम करके दिखाएं, लेकिन अपनी भाषा को बोलने में शर्म तो न महसूस करें। हिंदी में बात करने वाले का उपहास तो न उड़ाएं। ऐसा नहीं है कि हिंदी माध्यम में पढ़ने या हिंदी बोलने वाला आपसे कम दक्ष, कम सक्षम या कम कार्यकुशल है। किसी दूसरे की भाषा में या दूसरे देश में जाकर उपलब्धि पाना तो आसान है, बात तो तब बने जब अपनी ही भाषा और अपने ही देश में कोई उपलब्धि हासिल करके दिखाएं ? आपसे अनुरोध है कि हिंदी भाषा से प्यार करें, उसे अपनी ज़ुबान में अपने दिल में ज़िंदा रखें, अदब से सबके सामने गर्व के साथ बोलें और गर्व करें कि हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी हैं।

मनुस्मृति लखोत्रा