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Happiness is Free: इनकंपैटिबिलिटी के नाम पर आत्महत्या या अवसाद, से बेहतर चुनें नईं ज़िंदगी

इंसान कमज़ोर कब पड़ता है ? मेरा मानना है कि परिस्थितियां अगर आपके अनुकूल नहीं हैं तो भी आप जीने का साहस रखते हैं, जेब में पैसा नहीं है तो भी आप कोई न कोई रास्ता ढूंढ ही लेते हैं, कमर-तोड़ मेहनत करनी पड़ रही है तो की जा सकती है, लेकिन अगर घर का माहौल तनाव भरा है, आपकी आपके पार्टनर के साथ नहीं बनती तब सरवाइव करना बेहद मुश्किल हो जाता है। ये विषय इतना पेचीदा है कि इसके बारे में जितनी बात की जाए परत-दर-परत कई सवाल सामने आएंगे, जहां किसी एक सुनें तो लगता है वो अपनी जगह सही हैं, दूसरे की सुनें तो ऐसा लगता है वो सही है। यहां सवाल है कि आखिर गलती किसकी ?

पहले के समय में तलाक लेना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी, लेकिन आज के समय में तलाक के बढ़ते केसिज़ इस बात की दुहाई देते हैं कि सहन शक्ति कितनी कमज़ोर हो चुकी है हमारी, या फिर एक-दूसरे के विचारों का मेल न खाना भी इसका एक कारण हो सकता है। लेकिन ऐसे वो कौन से हालात हैं कि शादी के छ: महीने पहले या बाद तक एक-दूसरे के साथ बिताए पल इतने खूबसूरत होते हैं, लेकिन बाद में वही रिश्ता तनाव, अवसाद, ज़िद्, हताशा, क्रोध का इतना विकराल रूप ले लेता है कि जिसका अंत एक ज्वारभाटे के रूप में फूटता है। आखिर संवेदनाएं इतनी मर क्यों जाती हैं ? आखिर गुस्से या बदले की भावना अंतिम सीमा तक क्यों पहुंच जाती हैं, जहां कानून की धाराओं का ही गलत इस्तेमाल करके अपनी इगो को शांत किया जाने लगा। जहां एक-दूसरे पर झूठे केस दर्ज कराने, सबके सामने अपमानित करने, यहां तक कि बदला लेने के लिए सूसाइड तक की नोबत आ जाती है।

“Happiness is Free” के ज़रिए हम आपको यही समझाना चाहते हैं, कि बदला, नफरत, सूसाइड ये तीन तरह के नैगेटिव थोट्स सिर्फ क्षणिक भर के ही होते हैं, ये वही मिनट होते हैं जब हमारा गुस्सा अपनी चरम सीमा पर होता है, लेकिन अगर इन्हीं पलों में आप अपने आप को कंट्रोल कर लें तो खुदकुशी, बदला लेना या अपने पार्टनर को मारना-पीटना जैसे हादसों को टाला जा सकता है। जब एक बात आपको समझ आ गई कि आप दोनों में कंपैटिबिलिटी नहीं हैं, आप दोनों के हालात, सोच और विचार एक दूसरे से मिल ही नहीं सकते तो इससे बेहतर होगा कि अलग हो जाएं। आपकी लाइफ सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाती, फिर से अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत की जा सकती है, अगर आप ये सोचते हैं कि आपके सूसाइड कर लेने से किसी को सबक मिलेगा तो यहां आप गलत हैं, उसे सबक नहीं मिलेगा, क्या आप जानते हैं कि मरने के बाद आप उसे देखने आएंगे ? असल में हम जब किसी के साथ इतना अटैच हो जाते हैं तो हमें लगता है कि हमारी दुनियां ही यही है इसके अलावा ज़िंदगी में और रखा ही क्या है, तब उसके खोने के डर से या अपनी अहमियत जताने के लिए हम लोग कई बार आत्महत्या या अपने पार्टनर को मार डालने जैसे कदम उठा लेते हैं। बस वो क्षण ही आपको अपने आप को रोकना है, नैगेटिव भावनाओं को अपने ऊपर हावी होने से रोकना है, वो क्षण बीत जाने के बाद देखना आपको खुद ही ये महसूस होगा कि अरे ये मैं क्या करने जा रहा था या रही थी। बस उस वक्त उठीए और एक नईं ज़िंदगी की ओर देखिए, देखना फिर से वहीं सवेरा होगा।

 

मनुस्मृति लखोत्रा

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