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धर्म एवं आस्थाः जानिए, महाभारत में घटोत्कच की मृत्यु के पीछे श्री कृष्ण की क्या थी महिमा ?

धर्म एवं आस्थाः महाभारत में घटोत्कच की कर्ण के हाथों मृत्यु होना भी भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में से एक था। पांडव घटोत्कच की मृत्यु पर बहुत ही दुखी थे क्योंकि वह भीम के पुत्र थे लेकिन घटोत्कच की मृत्यु होने पर श्रीकृष्ण बहुत खुश हुए। अपनी खुशी का कारण अर्जुन से बताते हुए श्री कृष्ण ने कहा कि अगर आज कर्ण के हाथों घटोत्कच की मृत्यु नहीं होती तो भविष्य में मुझे ही इसका वध करना पड़ता।

जानिए कैसे  हुई थी घटोत्कच की मृत्यु ?

श्रीकृष्ण के कहने पर घटोत्कच कर्ण से युद्ध करने गया था। उन दोनों के बीच भयानक युद्ध होने लगा। घटोत्कच और कर्ण दोनों ही पराक्रमी योद्धा थे, इसलिए वे एक-दूसरे के प्रहार को काटने लगे। इन दोनों का युद्ध आधी रात तक चलता रहा। जब कर्ण ने देखा की घटोत्कच को किसी भी प्रकार से पराजित कर पाना संभव नहीं है तो उसने अपने दिव्यास्त्र प्रकट किए।
यह देख घटोत्कच ने भी अपनी माया से राक्षसी सेना प्रकट कर दी। कर्ण ने अपने शस्त्रों से उसका भी अंत कर दिया। इधर घटोत्कच कौरवो की सेना का भी संहार करने लगे। यह देख कौरवों ने कर्ण से कहा कि तुम इंद्र की दी हुई शक्ति से अभी इस राक्षस का अंत कर दो, नहीं तो ये आज ही कौरव सेना को समाप्त कर देगा। कर्ण ने ऐसा ही किया और घटोत्कच का वध कर दिया।

घटोत्कच की मृत्यु के पीछे क्या थी श्रीकृष्ण की लीला ?

असल में अर्जुन को बचाने के लिए ही श्रीकृष्ण ने खेला था ये दांव। उनकी इच्छा से ही घटोत्कच का युद्ध कर्ण से हुआ था। श्रीकृष्ण को पता था कि कर्ण के पास इंद्र शक्ति है जिसका प्रयोग अर्जुन को मारने के लिए होना है। वहीं कृष्ण ये भी जानते थे कि घटोत्कच का युद्ध कर्ण से होगा तो कर्ण को कौरवों की सेना और खुद के प्राण बचाने के लिए इंद्र शक्ति का प्रयोग करना पड़ेगा। जिससे कर्ण के पास शक्ति नहीं बचेगी। उसके बाद ऐसा ही हुआ। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा ये भी कहा कि यदि कर्ण घटोत्चक का वध नहीं करता तो एक दिन मुझे ही उसका वध करना पड़ता क्योंकि वह ब्राह्मणों व यज्ञों से शत्रुता रखने वाला राक्षस था। तुम लोगों का प्रिय होने के कारण ही मैंने पहले इसका वध नहीं किया था।