संपूर्ण विश्व का संचालन जिसकी शक्तियों द्वारा हो रहा है वे स्वयं भगवान विष्णु हैं व सृष्टि के पालनहार हैं, वे निर्गुण, निराकार, सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं। भगवान विष्णु की सहचारिणी मां लक्ष्मी हैं। विष्णु की नाभि से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है। जैसा कि नाम से ही स्प्ष्ट है विष्णु का अर्थः- विष्णु यानि विश्व का अणु और दूसरा जो विश्व के कण-कण में व्याप्त है। यदि उनके अवतारों की बात की जाए तो भगवान विष्णु के 24 अवतार हैं लेकिन मुख्य 10 अवतारों को ही मान्यता प्राप्त है। उनका स्वरूप बेहद मनमोहक, मनोहारी व अदभुत है लेकिन उनके आभूषण, हथियारों व स्वरूप का भी उतना ही महत्व है।
आइए जानते हैं भगवान विष्णु का स्वरूप
भगवान विष्णु क्षीर सागर में विराजमान हैं और अपने नीचे वाले बायें हाथ में पद्म यानि कमल, अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में कौमोदकी नाम की गदा,ऊपर वाले बाएँ हाथ में पाञ्चजन्य नामक शंख और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण किए हुए मां लक्ष्मी के साथ निवास करते हैं। उनका सम्पूर्ण स्वरूप ज्ञानात्मक है। पुराणों में उनके द्वारा धारण किये जाने वाले आभूषणों तथा आयुधों को भी प्रतीकात्मक माना गया है। आइये जानें उनकी धारण की हुई हर वस्तु का वास्तविक अर्थ।
जानिए अर्थः
विष्णु जी की प्रिय कौस्तुभ मणि, जगत् के निर्लेप, निर्गुण तथा निर्मल क्षेत्रज्ञ स्वरूप का प्रतीक है। उनका श्रीवत्स, प्रधान या मूल प्रकृति का प्रतीक है। कौमोदकी नाम की गदा बुद्धि का प्रतीक है। पाञ्चजन्य शंख पंचमहाभूतों के उदय का कारण और तामस अहंकार को बताता है। शार्ङ्ग धनुष इन्द्रियों को उत्पन्न करने वाला राजस अहंकार बताता है। सुदर्शन चक्र, सात्विक अहंकार का प्रतीक है। वैजयन्ती माला में पंचतन्मात्रा तथा पंचमहाभूतों का संयोग है और उसमें जड़े मुक्ता, माणिक्य, मरकत, इन्द्रनील और हीरा पांचों रत्न पंच तथ्यों का प्रतीकात्मक स्वरूप हैं। विष्णु जी के बाण ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों के प्रतीक हैं। वहीं खड्ग विद्यामय ज्ञान है जो अज्ञानमय कोश यानि म्यान से आच्छादित रहता है का प्रतीक है। इस प्रकार समस्त सृजनात्मक उपादान तत्त्वों को विष्णु जी अपने शरीर पर धारण किये रहते हैं।
विष्णु मंत्रः
पहला मंत्रः ओम नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
दूसरा मंत्रः- ओम भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ओम भूरिदा त्यसि श्रुतः पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
अर्थात हे लक्ष्मीपते! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसार भर से निराश होकर जो याचक आप से प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं। उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान ! मुझे इस संकट से मुक्त कर दो।