File:- पूनर्जन्म से संबंधित बातें सदैव वाद-विवाद का विषय रही हैं। कई लोग इसपर विश्वास करते हैं तो कई नहीं ऐसे ही ईसाई, यहुदी और इस्लाम में पूनर्जन्म में विश्वास नहीं किया जाता लेकिन इसके विपरीत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म में यकीन करते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग करके नया शरीर धारण करती है। इसे ही पुनर्जन्म कहा गया है। हालांकि जन्म लेने के बाद बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिन्हें अपने पिछले जन्म के बारे में याद रहता है लेकिन फिर भी कई बार ऐसी घटनाएं आश्चर्य में डाल देती हैं।
इस बारे में वैज्ञानिक तौर पर भी कई वर्षों से शोध किए जा रहे हैं लेकिन दो रिसर्च बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस पर पहला नाम अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन का आता है। इयान स्टीवेन्सन एक मनोचिकित्सक थे जिन्होंने 50 वर्षों के लिए वर्जीनिया स्कूल ऑफ मेडिसिन के लिए काम किया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन पुनर्जन्म शोध में समर्पित किया था। उन्होंने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब “रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी” लिखी, ये किताब पुनर्जन्म से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण किताब मानी जाती है। इस किताब में उन्होंने कुछ सवाल जैसे क्या मृत्यु के बाद जीवन का कोई ठोस प्रमाण है ? क्या पुनर्जन्म वास्तव में होता है व क्या मृत्यु के बाद जीवन है और क्या वह जीवन वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है? इन सभी सवालों के बाद वह अंत में अपना पक्ष रखते हुए कहते है कि मौत का अनुभव, मौत के दृश्य, आत्मिक चेतना, यादें और शारीरिक चोटें एक जीवनकाल से दूसरे तक स्थानांतरित हो सकते हैं।
इयान स्टीवेन्सन ने दुनिया भर के बच्चों के 3,000 मामलों की जांच की जो पिछले जन्मों को याद करते हुए पाए गये 40 वर्षों की लम्बी अवधि में बड़े पैमाने पर इयान ने अनेक देशों की यात्रा की। उनके सूक्ष्म शोध ने कुछ सबूतों को प्रस्तुत किया कि ऐसे बच्चों में कई असामान्य क्षमताएं, बीमारियां, और आनुवंशिक लक्षण पूर्व जन्म के साथ सामान पाए गये।
स्टीवेन्सन समस्त जन्मों को पूर्वजन्म बताते हुए अपना पक्ष रखते है कि आमतौर पर बच्चे दो और चार की उम्र के बीच अपनी यादों के बारे में बात करना शुरू करते हैं जब बच्चा चार और सात साल के बीच होता है तो ऐसे समय में शिशु की यादें धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। हमेशा कुछ अपवाद होते हैं, जैसे कि एक बच्चा अपने पिछले जीवन को याद रखना जारी रखता है लेकिन इसके बारे में विभिन्न कारणों से नहीं बोल रहा है
अधिकांश बच्चे अपनी पिछली पहचान के बारे में बहुत तीव्रता और भावना के साथ बात करते हैं। अक्सर वे खुद के लिए नहीं तय कर सकते हैं कि दुनिया असली है या नकली। वे एक तरह का दोहरा अस्तित्व अनुभव करते हैं, जहां कभी-कभी एक जीवन अधिक महत्वपूर्ण होता है, और कभी-कभी दूसरा जीवन।
इसके बाद अगर व्यवहार से उदाहरण ले तो यदि बच्चे का जन्म भारत जैसे देश में बहुत गरीब और निम्न जाति के परिवार में हुआ है जबकि अपने पिछले जीवन में उच्च जाति का वह सदस्य था, तो यह अपने नए परिवार में असहज महसूस कर सकता है। बच्चा किसी के सामने हाथ पैर जोड़ने से मना कर सकता है और सस्ते कपड़े पहनने से इनकार कर सकता है। स्टीवन्सन इन असामान्य व्यवहारों के कई उदाहरण बताते हैं। 35 मामलों में उन्होंने जांच की, जिन बच्चों की मौत हो गई उनमें एक अप्राकृतिक मौत का विकास हुआ था। उदाहरण के लिए, यदि वे पिछली जिन्दगी में डूब गए तो उन्होंने अक्सर पानी में नदी आदि में जाने के बारे में डर व्यक्त किया। अगर उन्हें गोली मार दी गई थी, तो वे अक्सर बंदूक से डर सकते हैं। यदि वे सड़क दुर्घटना में मर गए तो कभी-कभी कारों, बसों या लॉरी में यात्रा करने का डर पैदा होता था।
यही नहीं स्टीवेन्सन ने अपने अध्यन में पाया कि शुद्ध शाकाहारी बच्चा किसी मांसहारी परिवार में जन्म ले तो वह मांसाहार के प्रति अरुचि पैदा कर अलग-अलग भोजन खाने की इच्छा व्यक्त करता हैं। अगर किसी बच्चे को शराब, तम्बाकू या मादक पदार्थों की लत तो वे इन पदार्थों की आवश्यकता व्यक्त कर सकते हैं और कम उम्र में अभिलाषाएं विकसित कर सकते हैं। अक्सर जो बच्चे अपने पिछले जीवन में विपरीत लिंग के सदस्य थे, वे नए लिंग के समायोजन में कठिनाई दिखाते हैं। लड़कों के रूप में पुनर्जन्म होने वाली पूर्व लड़कियों को लड़कियों के रूप में पोशाक करना या लड़कों की बजाए लड़कियों के साथ खेलना पसंद हो सकता है।
स्टीवेन्सन कहते है कि पुनर्जन्म सिर्फ एक कल्पना मात्र नहीं है, यह सबूतों के छोटे-छोटे टुकड़े जोड़कर एक बड़ा शोध का विषय है। यह अलग-अलग धार्मिक मान्यताओं के मानने न मानने की सिद्धांत नहीं है। यह एक विषय है जो पुनर्जन्म के सम्बन्ध में सभी अवधारणाओं के साथ आत्मा स्थानान्तरण के लौकिक सत्य को स्वीकार करता है। इसी विषय पर एक दूसरा शोध बेंगलोर की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा किया गया है। इन्होंने अपनी एक किताब “श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया” लिखी। इसमें 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख है।
मनुस्मृति लखोत्रा
(इस विषय पर जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है जिसका उद्देश्य सिर्फ सामान्य जानकारी देना है।)
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