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Happiness is Free: ज़िंदगी एक रंगमंच है और हम सब उसके किरदार, जहां रीटेक की कोई गुंजाइश नहीं होती !

कई बार ज़िंदगी में बड़े उतार-चढ़ाव आ जाते हैं, जहां ज़िंदगी एक बार फिर से डगमगा कर फिर उठ खड़ी होती है और हमारा हाथ थामकर फिर से चल देती है। अगर ज़िंदगी में हर काम आसानी से हो जाए तो ज़िंदगी जीने का मज़ा ही क्या है…ज़ोखिम उठाने से ही तो अपनी भी ताकत, हिम्मत और हौसले का हमें अनुमान होता है।

 क्या आपने कभी किसी नाविक को नाव चलाते देखा है ? समंदर में एक छोटी सी नाव कैसे पानी को चीरती हुई आगे निकल जाती है, अचानक से तूफान आने पर क्या नाविक हार मान लेता है ? नहीं वो डटे रहता है, अपने हौसले के सहारे…क्योंकि उसे पता है कि ये वक्त हार मानने का नहीं है बल्कि हौसले से लहरों को पार कर लेने में ही भलाई है, बस ज़िंदगी की भी यही कहानी है…बुरे समय में अपने हौसलों को बुलंद रखना ….क्योंकि ये समय रुकने वाला नहीं है…थोड़े ही पल में बदल जायेगा। अब किसी नाटक या प्ले का उदाहरण ही ले लेते हैं। मंच का पहला नियम ही यही है कि अगर नाटक प्रस्तुति के समय किसी किरदार से कोई गलती हो जाए या अपना डायलॉग भूल जाए तो उसे वहां रुकना नहीं है अपनी कला और अभिनय के बल पर उसे उस कमी को कवर करके चलना होता है क्योंकि देखने वाले को ये नहीं पता कि आप अपना डायलॉग भूल गए हैं या अगला डायलॉग क्या बोलने वाले हैं या नाटक में आगे क्या होने वाला है। बस उस वक्त किरदार को रुकना नहीं है….वो कहते है न की Show must go on….ठीक वैसे ही हमारी ज़िंदगी भी एक रंगमंच की तरह है हमें अपना- अपना किरदार निभाना है…हो सकता है हमसे कई गलतियां भी हो जाएं..लेकिन हमें रुकना नहीं…फिर से उठना है…और गलती से सीख लेकर आगे अच्छा काम करने की कोशिश करनी है।

कई लोगों को आपने ज़िंदगी से हारते देखा होगा, और सुबह अखबार की सुर्खियों में ज़िंदगी और मौत के बीच झूलती एक हार को करीब से निहारा होगा। मुझे लगता है ये वही एक मिनट होता है जब ऐसे लोग अपने दिल की भी आवाज़ नहीं सुनते और हालातों से तंग आकर अपने जीवन को खुद ही खत्म कर लेते हैं… ऐसे में साबित क्या होता है…कुछ नहीं…किसी का कुछ नहीं बिगड़ता….लोग, रिश्तेदार भी कुछ दिन आपको याद करेंगे फिर वैसे का वैसे ही…सब भूल जायेंगे….और ऐसे लोग कायर कहलायेंगे। तभी तो कहते हैं कि ज़िंदगी इतनी आसान नहीं होती, इसे जीने के लिए लगातार प्रयत्नशील व कर्मशील रहना पड़ता है।

ज़िंदगी हार नहीं मानने का ही दूसरा नाम है। जहां हर हाल में आपको आगे ही बढ़ना है, जो बीत गया वो कभी रीटेक नहीं हो पायेगा और हौसला, कहीं से आप खरीद नहीं सकते, न ही कहीं से आपको उधार मिल जायेगा…ये तो संघर्ष की धूप में धीरे-धीरे पकता है। बशर्ते इसे स्नेह, प्यार, आस्था और विश्वास के संयोजन से परिपक्व करना पड़ता है। तभी तो ज़िंदगी में चाहे कितनी ही आंधियां आएं या कितने ही तूफान आएं आप डगमगाएंगे नहीं…बल्कि अपने हौसले से अपने इरादों को जीत कर दिखाएंगे।

संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा