धर्म डैस्कः कहा जाता है कि श्रीलंका के घने जंगलों में एक कबीला ऐसा भी है, जिन्हें प्रत्येक 41 वर्षों बाद श्री हनुमानजी मिलने जाते हैं, काफी साल पहले सेतु एशिया नाम के आध्यात्मिक संगठन ने इस बारे में रिसर्च करना शुरु किया जो कि आज भी जारी है। जानकारी के अनुसार इसी संगठन के रिसर्चरर्स का कहना है कि हनुमान जी आज भी श्रीलंका के पिदरु पर्वत के जंगलों में, यहां रहने वाले मातंग कबीले के लोगों से मिलने प्रत्येक 41 वर्षों बाद आते हैं। वे इनके बीच रहते हैं और उन्हें शिक्षाएं प्रदान करते हैं। दरअसल, इस कबीले के लोगों की संख्या काफी कम हैं और इनका रहन-सहन बाकी कबीलों से भी काफी अलग है। इनका अपना ही एक अलग संसार है जहां वो बंदरों और पक्षियों के साथ रहते हैं। इस कबीले के लोगों की भाषा भी बड़े ही अजीब तरीके की है जिन्हें समझने के लिए सेतु संगठन नें उनके जैसे पहनावे और उन्हीं के अंदाज़ में अपने आपको ढालकर उनके साथ संपर्क साधा और फिर उन्हें समझना शुरु किया। जिसके बाद कई तरह की जानकारियां भी हासिल की।

उनके इस अध्ययन द्वारा कुछ ऐसे पहलू सामने आए जो सच में सबको हैरान कर देने वाले थे। इन तथ्यों का पता उनकी विभिन्न गतिविधियों के आधार पर लगाया गया जिससे ये मालूम हुआ कि हनुमान जी ने स्वयं उन्हें वचन दिया था कि वो हर 41 साल बाद उनसे मिलने आएंगे, दरअसल, इस कबीले के लोगों का कहना है कि हनुमान जी का उनके पास आने का सिलसिला रामायण काल से ही है.

इस समुह के मुखिया इन तथ्यों का ब्यौरा अपनी एक पुस्तिका हनु-पुस्तिका में लिखते हैं। जिसमें हरेक बात का ब्यौरा है जिसमें श्री हनुमानजी के आने, रहने, व उनकी पल-पल की गतिविधियों के बारे में लिखा गया है, लेकिन उनकी लिखी लिपि इतनी मुश्किल है कि उसे पढ़ पाना और समझ पाना काफी कठिन और असंभव जैसा ही है। इस समुह के मुखिया को बाबा मातंग कहकर सम्मानित किया जाता है। अब यह पुस्तिका सेतु एशिया संगठन के पास हैं। सेतु के संत पिदुरु पर्वत की तलहटी में स्थित अपने आश्रम में इस पुस्तिका को समझकर उसका आधुनिक भाषाओं में अनुवाद करने में जुटे हुए हैं ताकि हनुमानजी के चिरंजीवी होने के रहस्य के बारे में और उनकी लीलाओं के बारे में और अधिक जाना जाए। इस पुस्तिका की भाषा काफी पेचीदा होने की वजह से अभी कुछ ही अध्यायों का अनुवाद हो पाया है। जिस बारे में वे समय-समय पर अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करते हैं।

उनका कहना है कि 27 मई 2014 का दिन श्री हनुमान द्वारा मातंगो के साथ बिताया आखिरी दिन था और अब हनुमान जी अगली बार 2055 में उनसे मिलने आएंगे…. कहते हैं कि जब श्री हनुमान उनसे मिलने आते हैं तो सारा वातावरण इतना शुद्ध और दिव्य हो जाता है…. कि तब चारों ओर एक अदृश्य दिव्य आभा मंडल बन जाता है।….. इस कबीले में कोई 50 के करीब लोग हैं जो आज भी आधुनिक समाज से बिल्कुल कटे हुए हैं।….. हैरानी की बात ये है कि यह जंगल उसी स्थान के पास हैं जहां कभी अशोक वाटिका हुआ करती थी,…… जहां माता सीता को रावण ने बंदी बनाकर रखा था। इस स्थान को अब सीता एलिया के नाम से जाना जाता है। …..

मातंग कबीले के मुखिया से जब पूछा गया कि हनुमानजी सिर्फ उनके कबीले के लोगों से ही मिलने क्यों आते हैं, तो एक प्रचलित कथा के बारे में उन्होंने बताया कि जब श्री राम अपना शरीर त्यागकर बैकुंठ धाम लौट गए थे तो तब श्री हनुमान अयोध्या छोड़कर राम-नाम का जप करते हुए जंगलों में इधर-उधर भटकने लगे थे. तब वे काफी भ्रमण के बाद अंत में लंका के जंगलों में जा पहुंचे थे। उस वक्त लंका के राजा विभीषण थे उन्हें भी चिरंजिवी होने का वरदान प्राप्त है। श्री हनुमान इन्हीं जंगलों में राम का नाम जपने लगे उस दौरान पिदुरु पर्वत पर रहने वाले मातंग आदिवासियों को उनके वहां आने की खबर मिली, वे हनुमान जी के दर्शन करने उन्हें ढूंढते हुए उनके पास पहुंच गए, व रोजाना उनकी सेवा करने लगे, वहीं से हनुमान जी उनकी भक्ति-भावना और सेवा से इतने प्रसन्न हो गए कि उन्होंने मातंग आदिवासियों को प्रत्येक 41 वर्षों बाद उनसे मिलने का वचन दिया। कहते हैं तभी से मातंग कबीले के लोगों को श्री हनुमान मिलने आते हैं।
Note- (इस आलेख में दी गई जानकारी इंटरनेट के माध्यम से ली गई है जिसका उद्देश्य मात्र सामान्य जानकारी देना है )
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