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Way to Spirituality: क्या हमारे शरीर के चक्रों का संबंध ब्रह्मांडीय ऊर्जा से भी है ?

File- वैसे तो हमारे शरीर में कई चक्र पाए जाते हैं लेकिन अध्यात्म की दृष्टि से 7 चक्रों को ही महत्वपूर्ण माना जाता है। नियमित योग व प्राणायाम के अभ्यास से कोई भी व्यक्ति इन चक्रों को जागृत कर सकता है। ये सातों चक्र एक प्रकार से ऊर्जा के ऐसे केन्द्र हैं जिनका सीधा संबंध ब्रह्मांडीय उर्जा से है। असल में मानव शरीर एक प्रकार से सूक्ष्म ब्रह्मांड ही है, जैसे ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा की आकृति सर्पिल आकार की है वैसे ही हमारे अंदर उपस्थित सात चक्र पूरी सौर प्रणाली के एक प्रतिबिंब की तरह हैं। इसीलिए विद्वानों द्वारा ऐसा माना जाता है कि सौर मंडल की तरह ऊर्जा हमारे शरीर में भी मौजूद हैं।

ऐसा भी माना जाता है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है :

पृथ्वी (Earth)

जल (Water)

अग्नि ( Fire)

वायु ( Air)

आकाश (Sky)

यह ब्रह्माण्ड भी इन्ही पांच महाभूतों से बना है। जैसा कि ऊपर इस बारे बताया जा चुका है कि मानव शरीर एक सूक्ष्म ब्रह्माण्ड ही है। ब्रह्मांडीय ऊर्जा का ही नाम ईश्वरीय शक्ति व आकाशीय ऊर्जा आदि भी है।

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण :

यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो हमारे शरीर के सबसे निकट पृथ्वी है। फिर इसके बाद आकाशगंगा और फिर पूरा ब्रह्मांड। जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके शरीर में सबसे ज्यादा प्रभाव पृथ्वी तत्व का ही होता है जैसे शरीर में उपस्थित स्किन मिट्टी का प्रतीक, शरीर में उपस्थित जल तत्व जो हमें पृथ्वी से ही प्राप्त होता है, पृथ्वी में उपस्थित धातू और पदार्थ जैसे सोना, चांदी तांबा, लोहा आदि पदार्थों की मात्रा जितने प्रतिशत पाई जाती है हमारे शरीर में भी उतनी ही मात्रा में सोना, चांदी मैग्निशियम, आयन, फास्फोरस, जिंक आदि पदार्थ रूप में पाए जाते हैं जिनकी कमी या अधिकता हमारे शरीर को प्रभावित कर रोग उत्पन्न करती है। हमारे शरीर में पाए जाने वाले वात, पित्त, कफ ब्रह्मांड के तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश के प्रतीक हैं अगर शरीर में इनका भी बैलेंस बिगड़ जाए तो हम कई रोगों के शिकार हो जाते हैं।

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पृथ्वी पर उपस्थित भौतिक पदार्थ हमें दिखाई देते हैं लेकिन अदृश्य ऊर्जाएं भी पृथ्वी पर ही हैं वे हमें दिखाई नहीं देती, लेकिन फिर भी हमारे शरीर को प्रभावित करती है। ये ऊर्जाएं कोई भी व्यक्ति साधनाओं द्वारा प्राप्त कर सकता है। जब ये ऊर्जाएं हमें प्राप्त हो जाती हैं तो चतुर्थ आयाम के द्वार खुल जाते हैं और व्यक्ति समय से आगे या पीछे कहीं भी जा सकता है। साधक को अपने पूर्वजन्मों को देखने की शक्ति प्राप्त हो जाती है और वह भविष्य की घटनाओं को भी देख सकता है। इस आयाम तक पहुंचने के लिए रास्ता हमारे शरीर से होकर ही गुज़रता है। वो रास्ता है हमारे शरीर में उपस्थित सात चक्र। इन चक्रों के जागृत होने से हमारे शरीर में उपस्थित कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है।

ये सात चक्र हैः-

  • मूलाधार चक्र     –  मूल केन्द्र
  • स्वाधिष्ठान चक्र  –  निचले पेट का केन्द्र
  • मणिपुर चक्र     –  नाभि केन्द्र
  • अनाहत चक्र    –  हृदय केन्द्र
  • विशुद्धि चक्र     – कंठ केन्द्र
  • आज्ञा चक्र        – भोंहों के मध्य केन्द्र
  • बिन्दु चक्र         – चंद्र केन्द्र
  • सहस्त्रार चक्र   – मुकुट केन्द्र

इन चक्रों को जागृत करने अर्थात सप्तम चक्र ब्रह्मरंध्र तक ले जाने से हम ब्रह्माण्ड  और अध्यात्म को समझ सकते हैं।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मानव जीवन को नवग्रह  (नौ ग्रह) सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, शनि, राहु और केतु प्रभावित करते हैं। इन नौ ग्रहों के नौ रत्न हैं जिन्हें नवरत्न के रूप में जाना जाते हैं। राहु केतु छाया ग्रह हैं। सभी रत्न एवं उपरत्न  हमारे सात चक्रों से सम्बंधित हैं। यह रत्न अपने में विभिन्न रंग ,धातु ,खनिज आदि समेटे हुए हैं। रत्नों की जननी है पृथ्वी। जब एक छोटे से रत्न में मानव शरीर के मन और भौतिक शरीर पर विशिष्ट प्रभाव डालने की क्षमता है तो छोटे से रत्न की तुलना में पृथ्वी तो आकाशीय ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है। तो फिर पृथ्वी से प्रभावित हुए बिना हम कैसे रह सकते हैं इसीलिए ही पृथ्वी को जननी कहां जाता है जो अपने शरीर से ही सब मानव, जीव-जंतुओ को पैदा भी करती है और शाक-सब्जी, फल, पेड़-पौधे, वनस्पति आदि उनका भरण-पोषण भी करती है, प्रकृति की अदभुत छटा बिखेर कर हमें स्वर्ग का एहसास भी करवाती है और अंत समय भी हमें अपने में ही समा लेती है।

अतः निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि हमारे शरीर और चक्रों का संबंध ब्रह्मांडीय ऊर्जा से भी है।

संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा