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Way to Spirituality: आप जिनकी आराधना करते हैं उन्हें आप भगवान कहकर पुकारते हैं लेकिन क्या आप भगवान शब्द का अर्थ जानते हैं ? इस शब्द में छिपे हैं कई रहस्य ! जानिए

अध्यात्म डैस्कः खोजना मनुष्य की प्रवृति है तो इसी प्रवृति को बरक़रार रखते हुए आज मन किया कि भगवान शब्द कैसे बना, कहां से आया, इसका अर्थ क्या है जाना जाए, तो जो रिसर्च के आधार पर सामग्री उपल्ब्ध हुई सोचा आपके साथ शेयर की जाए।

हम सब अपनी श्रद्धा, विश्वास और आस्था के आधार पर अपना ईष्ट निर्धारित करते हैं। जिनके आगे हम नतमस्तक होते हैं, प्रार्थना करते, मन्नतें मांगते हैं, अपना दुख-सुख व्यक्त करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं, उन्हें हम भगवान, ईश्वर, परमेश्वर या अल्लाह कहकर पुकारते हैं।

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हिंदू धर्म में ईश्वर के स्वरूप को लेकर कई तरह के मतभेद हैं, जैसे ईश्वर साकार है या निराकार, वे सगुण हैं या निर्गुण, लेकिन फिर भी ईश्वर की सत्ता में विश्वास सभी को है।

लेकिन क्या कभी आपने ये जानने की कोशिश की, कि उन्हें इन्हीं नामों से क्यों पुकारा जाता है, ये शब्द क्यों इस्तेमाल किया जाता है ?

हिंदू धर्म की लगभग सभी विचारधाराओं के अनुसार ये माना जाता है कि कोई एक परम शक्ति है, जिसे ईश्वर कहा जाता है। वेद, उपनिषद, पुराण और श्रीमद्भागवत गीता में भी उस परम शक्ति को ब्रह्म कहा गया है।

आइए पहले ब्रह्म शब्द को समझ लें- ब्रह्म शब्द ‘बृह’ धातु से बना है जिसका अर्थ है- बढ़ना, फैलना, व्यास या विस्तृत होना। ब्रह्म को ही परमतत्व कहा गया है और ब्रह्म तत्व से ही सारा विश्व उत्पन्न होता है, इसी में वह जीवित रहता है और अंत में विलीन हो जाता है।

॥ यो भूतं च भव्य च सर्व यश्चाधितिष्ठति। 
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः ॥
अथर्ववेद १०/८/१
भावार्थ: जो भूत, भवि‍ष्‍य और सबमें व्‍यापक है, जो दि‍व्‍यलोक का भी अधि‍ष्‍ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को प्रणाम है।

असल में, भगवान शब्द के बारे में वेदों में तो कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं लेकिन संतो, महापुरुषों द्वारा जो कहा गया है वही आज हम आपके साथ साझा करेंगे।

यदि भगवान शब्द का सन्धि विच्छेद करें तोः भ +  ग + व + आ + न

भ से – भूमि

ग से- गगन

व से – वायू

अ से – अग्नि

न से – नीर

अर्थात भू + गगन + वायु + अग्नि + नीर = भगवान, यानि यह वही पंचतत्व या पंच महाभूत हैं जिससे मनुष्य का शरीर उत्पन्न हुआ है, ये पंचतत्व ही भगवान है।

एक अन्य परिभाषा के अनुसार “भग का अर्थ होता है (दिव्य) गुण और वान का अर्थ होता है धारण करने वाला, इस प्रकार भगवान का अर्थ होता है (दिव्य) गुणों को धारण करने वाला भगवान कहलाता है ‘भगोस्ति अस्मिन् इति भगवानः”

“विष्णु पुराण में ६/५/७४ में बताया गया है

“ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।”

भावार्थ:- सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य – ये भगवान के छह लक्षण या दिव्य गुण होते है।

इस तरह से भगवान शब्द से तात्पर्य हुआ उक्त छह गुणवाला, और अन्य शब्दों में ये 6 गुण जिसमे हमेशा रहते हैं, उन्हें भगवान कहते हैं”

एक अन्य परिभाषा के अनुसार “भगवान शब्द संस्कृत के भगवत शब्द से बना है यानि जिसने पांच इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो और जिसकी पंचतत्वों पर पकड़ हो उसे ही भगवान कहते हैं। भगवान का स्त्रीलिंग भगवती है।  इस शब्द का प्रयोग मां दुर्गा के लिए किया जाता है, जिसका अर्थ माना जाता है “जो पूर्णतः मोक्ष को प्राप्त कर चुका हो व जो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर कहीं भी जन्म लेकर कुछ भी करने की क्षमता रखता हो वह भगवान है”।

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एक आलेख में यह भी वर्णन मिलता है कि “उत्पत्ति, प्रलय, प्राणियों के पूर्व व उत्तर जन्म, विद्या, और अविद्या को एक साथ जानने वाले को भी भगवान कहते हैं”।

यदि परमात्मा शब्द को समझना हो तो इस का अर्थ है- “परम + आत्मा = अर्थात जो सब आत्माओं से श्रेष्ठ हैं वहीं परमात्मा है”। ये शब्द हमारे ऋषियों, महापुरूषों द्वारा प्रदान किया गया शब्द है। पंचतत्व से केवल मनुष्य का शरीर ही नहीं बना है बल्कि इस संसार में प्रत्येक जीव पंचतत्वों से बना है और अंत में इसी पंचतत्वों में विलीन हो जाता है।

अब यदि प्रभू शब्द को समझना हो तो “प्रभू का अर्थ हुआ= पर+ भू = अर्थात भू का अर्थ भूमि और पर का अर्थ है अन्य यानिकी जो पृथ्वी से अन्य है वह ही प्रभू है”।

परब्रह्म का अर्थ जानना हो तो “पर + ब्रह्म =  पर + अन्य और ब्रह्म यानि आत्मा, तो अर्थ हुआ= जो आत्मा से अन्य है, वही परब्रह्म है”।

लेकिन ईश्वर और भगवान में अन्तर माना जाता है। ईश्वर या परमेश्वर संसार की सर्वोच्च सत्ता है जबकि भगवान को ईश्वरतुल्य समझा जाता है। यानि विष्णु और शिव के अवतारों के लिए भगवान शब्द का उच्चारण किया जाता है।

एक परिभाषा ये भी कही जाती है कि “जो भी आत्मा पांचों इंद्रियों और पंचतत्वों की माया से मुक्त हो गई है वह भगवान कही गई है”।

वेदों में भी भगवान शब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता लेकिन इनमें शिव और विष्णु दैवत्व के दो अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व और विभिन्न तरीकों से सृष्टि रचीयता के विचार पर मंथन किया गया हैं

 

संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा

( इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई हैं, जिसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी देना है )                          

                                                                                                                                                                 Image courtesy- Pixabay