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Way to Spirituality: हज़ारों वर्ष पहले वेदों में सौरमंडल के रहस्यों के बारे में बताया जा चुका था ! जिन्हें विज्ञान आज भी खोज रहा हैं ! जानिए

अध्यात्म डैस्कः वेद ज्ञान का अद्भुत भंडार है जिसमें पूरे ब्रह्मांड के रहस्य समाए हुए हैं। वेदों में यदि सभी विद्याओं के रहस्य बताये हुए हैं तो उन्हें सुरक्षित रखने के दिव्य उपाय भी हैं, लेकिन उन्हें पढ़ने और समझने के लिए उतनी ही दिव्य दृष्टि का होना ज़रूरी है।

वेदों के प्राचीन व महान भाष्यकार एवं गणितज्ञ महर्षि सायणाचार्य ने कहा हैं कि “वेद वे प्राचीन ग्रन्थ हैं जिनमें इच्छित पदार्थों की प्राप्ति और अनिष्टकारी संभावनाओं से सुरक्षित रहने के दिव्य उपाय बताये गए हैं लेकिन इन वेदों के दिव्य चत्वों को जानने के लिए वेदरूपी नेत्रों की आवश्यकता होती है”।

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कहते हैं कि आरम्भ में केवल एक ही वेद यानि ऋग्वेद था लेकिन बाद में श्रीकृष्ण द्वैपायन महामुनि व्याज जी ने वेद को चार भागों में विभाजित कर दियाः ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद।

ब्रह्मांड के अद्भुत रहस्यों को जानने के लिए वैज्ञानिक भी सदा ही आतुर रहे हैं 19वीं शताब्दी में प्रकाश की गति की गणना जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने की थी लेकिन 14वीं शताब्दी में महर्षि सायण ने ऋग्वेद के आधार पर प्रकाश की गति की गणना कर डाली थी।

      ‘तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि  सूर्य ।

       विश्वमा भासि रोचनम्  ।।  ।।ऋृग्वेद 1.50.4।।

अर्थात हे सूर्य ! तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।

इसी पर भाष्य करते हुए महर्षि सायण ने लिखा है-

 ‘तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते-द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण   नमोऽस्तुते ।।’  ।। सायण ऋृग्वेद भाष्य  1.50.4 ।।  

  अर्थात् आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है।

विज्ञान से भी कई सदियों पहले चार वेदों ने इस बात की पुष्टि कर दी थी कि सूर्य उर्जा का एक विशाल स्त्रोत है। सूर्य सौर मंडल को ऊर्जा देता है। सूर्य के चारों ओर गैस के भंडार हैं और सौर मंडल का केंद्र भी सूर्य ही है जिसके चारों ओर सभी ग्रह परिक्रमा करते हैं।

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दरअसल, वेदों में ऋग्वेद(1.112.1), यजुर्वेद(7.42) और अथर्ववेद(13.2.35) में एक श्लोक है ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’ जो कि क्रमशः सूर्य को ऊर्जा मानने की पुष्टि करता है।

ब्रह्मांड में अनेकों सूर्य होने की बात का प्रमाण ऋग्वेद में (9.114.3) इस मंत्र द्वारा मिलती है।

यह मंत्र है, ‘सप्त दिशो नानासूर्या:। देवा आदित्या ये सप्त।’

यानी सूर्य अनेक हैं और यहां सात सूर्य से तात्पर्य सात सौरमंडल से है लेकिन विज्ञान ने अभी तक एक ही सौर मंडल को खोजा है।

करोड़ों वर्ष पहले हमारे वेदों में यह लिखा जा चुका था कि सूर्य के चारों ओर विशाल गैस के भंडार है जबकि आज विज्ञान इस बात को मान रहा है। यह बात ऋग्वेद(1.164.43) में मंत्र, ‘शकमयं धूमम् आराद् अपश्यम्, विषुवता पर एनावरेण।’ में की गई है।

जिसका तात्पर्य यह है कि सूर्य के चारों और दूर-दूर तक शक्तिशाली गैस फैली हुई हैं। यहां गैस के लिए धूम शब्द का प्रयोग किया गया है।

सूर्य प्रदूषण नाशक भी है इस बात का उल्लेख अथर्ववेद (3.7) में मिलता है।

इसे मंत्र, ‘उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् अदृष्टान् च, सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’ से उल्लेखित किया गया है।

यानी इसका अर्थ है सूर्य का प्रकाश दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है।

सूर्य चंद्रमा को प्रकाश देता है। यह बात सदियों पहले हमें इन्हीं वेदों से मिलती है। यजुर्वेद(18.40) में मंत्र है,

‘सुषुम्णः सूर्य रश्मिः चंद्रमा गरन्धर्व, अस्यैको रश्मिः चंद्रमसं प्रति दीप्तयते।’ निरुक्त( 2.6) ‘आदित्यतोअस्य दीप्तिर्भवति।’ यानी सूर्य की सुषुम्ण नामक किरणें चंद्रमा को प्रकाश देती हैं।

चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है। यही बात को यास्क ने निरुक्त में कही है जो कि ऊपर दिए मंत्र में वर्णित है।

इसी तरह सामवेद में उल्लेखित है कि सूर्य संसार का धारक और पालक है। इसे मंत्र, सामवेद (1845) ‘धर्ता दिवो भुवनस्य विश्पति:’ में बताया गया है।

हैरानी की बात है जब विज्ञान नहीं था तब वेदों में ब्रह्मांड के बारे में कई रहस्य मंत्रों व श्लोकों के द्वारा बताए गए हैं जिसकी खोज आज विज्ञान कर रहा है यानिकी कई हज़ार वर्षों पहले हमारे महापूरुषों ने इसकी खोज कर दी थी।

संपादक- मनुस्मृति लखोत्रा

                                                                                                                                                                       Image courtesy- Pixabay