शरीर में उपस्थित जैव विद्युत के बारे में जानने से पहले हमें ये जानना होगा कि औरा क्या है ? औरा का अर्थ होता है प्राणों का तेजोवलय, लेटिन भाषा में इसका अर्थ हैं- सदैव बहने वाली हवा, अतः शरीर के चारों ओर फैला हुआ प्रकाश जो कि सदैव गतिशील होता है, इसे व्यक्ति का आभामंडल कहते हैं, जैसे आप बल्ब की रोशनी देखतें हैं, उसके चारों और गोलाकार एक अतिरिक्त प्रकाश भी नज़र आता है, ये बल्ब का औरा होता है। ठीक इसी प्रकार हमारे भौतिक शरीर यानि स्थूल शरीर के चारों ओर एक रोशनी होती है इसे औरा कहा जाता है और शरीर के चारों ओर फैले इसी ऊर्जा क्षेत्र को सूक्ष्म शरीर कहा जाता है जो हमारे शरीर को घेरे रहता है। चेहरे के आसपास ये अधिक स्पष्ट और सघन होता है, लेकिन ये ऊर्जा क्षेत्र प्रजनन अंगों में चेहरे से भी अधिक सघन होती है। आज आधुनिक उपकरणों के माध्यम से औरा को देखा भी जा सकता है और मापा भी जा सकता है। कहा जाता है कि औरा यानि कि प्राण शक्ति शरीर में एवं सूक्ष्म नाड़ियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित करती है और शरीर को क्रियाशील रखने के लिए सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान करती है।
आजकल कई ऐसी पद्धतियां भी हैं जिनसे व्यक्ति के शरीर का औरा देखकर बीमारी का इलाज किया जाने लगा है। इसी औरा शक्ति को सूक्ष्म शरीर, प्राण ऊर्जा, जीवन शक्ति व तेजोवलय कहा जाता है। आपने देवी-देवताओं के चित्रों में उनके सिर के पीछे हमेशा एक चंद्र के आकार का गोला देखा होगा असल में ये उनका आभामण्डल होता है। इसी तरह ऋषियों, महापुरुषों के चेहरे को देखते हुए एक अलग तरह की चमक व दिव्यता दिखाई देती है। उन्हें देखकर उनकी ओर ध्यान आकर्षित होता है। ये उनके औरा के प्रभाव की वजह से होता है। उनके औरा का प्रभाव क्षेत्र 30 से 50 मीटर की दूरी तक होता है।
अब बात करते हैं कि जैव विद्युत क्या है, जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे शरीर में तापमान होता है और कार्य करने की शक्ति भी, जिससे हमारी जीवनचर्या चलती है और हम भारी व कठिन काम भी आसानी से कर पाते है। इन्हीं क्रियाओं को साधने वाली शक्ति को जैव विद्युत कहा जाता है। जैव विद्युत शक्ति की मात्रा जिसके शरीर में जितनी अधिक होगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक तेजस्वी, ओजस्वी होता है।
हमारे शास्त्रों के अनुसार मनुष्य का शरीर पांच तत्वों जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी से मिलकर बना है। इसलिए कोई भी व्यक्ति अपने तेज व प्राण शक्ति में वृद्धि, इनमें से किसी भी तत्व के द्वारा कर सकता है।
- अग्नि तत्व द्वारा- यज्ञ करने या यज्ञ मे सम्मिलित होने से विभिन्न प्रकार की हवन सामग्री से निकले औषधीय धूएं से आप वायु का स्नान करते हैं, अग्नि से आप ताप का स्नान करते हैं, घी से आप ऑक्सीकरण स्नान करते हैं, मंत्रोच्चारण से आप मंत्रों की तरगों से अंतर्मन तक भीग जाते हैं। इसलिए यज्ञ करने से एक तो व्यक्ति का औरा शुद्ध होता है, प्राणशक्ति व विद्युत शक्ति बढ़ती है, मन व विचार शुद्ध होते हैं, आपके आसपास का वातावरण शुद्ध होता है, नकारात्मकता चली जाती है।
- वायु तत्व द्वारा- पहाड़ों की शुद्ध हवा में वक्त बिताने से एक तरह से आप वायु स्नान कर रहे होते हैं जिससे आपका तेज बढ़ता है व औरा शुद्ध होता है।
- आकाश तत्व द्वारा- आकाश को निहारने से और खुले आकाश में वक्त बिताने से भी आपका तेजोवलय चार्ज होता है।
- जल तत्व द्वारा- साफ व शुद्ध जल से स्नान करने से औरा शुद्ध होता है, गंगा जल एक तो पवित्र जल माना गया है और दूसरा इस जल में औषधीय गुण होने की वजह से गंगा जल में स्नान करने से प्राण शक्ति बढ़ती है।
- पृथ्वी तत्व द्वारा- मड स्नान यानि शुद्ध मिट्टी से स्नान करने से भी प्राण शक्ति या औरा बढ़ता है व शुद्ध होता है।
संपादक- मनुस्मृति लखोत्रा
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( ये जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है जिसका उद्देश्य केवल सामान्य जानकारी उपलब्ध कराना है )