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Way to Spirituality: आइए अपने अंदर के जिज्ञासू को जगाकर अपने सत्यस्वरूप का साक्षात्कार करें।

File- अध्यात्म डेस्क- आज के वक्त में अपने आप को जानना, समझना ही एक सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि अगर हमने अपने आप को जान लिया तो सारे झंझट ही खत्म हो जाएंगे। जिसके लिए जिज्ञासा का होना ज़रूरी है। अगर जिज्ञासा होगी तभी आत्म-बोध होगा। क्योंकि अगर जिज्ञासा न होती तो सृष्टि के उदृगम का रहस्य कोई भी वैज्ञानिक जानने की कोशिश ही नहीं करता और न ही बड़े-बड़े आविष्कार कर पाता जिसके फलस्वरूप गणित, भौतिक विज्ञान, रासायन विज्ञान, औषधि विज्ञान आदि की रचना हुई।

इसी जिज्ञासा के कारण कितने ही महापुरुष सृष्टि के रहस्यों को जानने के लिए युगों-युगों तक तपस्या में लीन रहे और इसी जिज्ञासा के कारण वेद, पुराण व शास्त्रों का जन्म हुआ। आख़िर कुछ तो रहस्य है जिसकी ओर हम सब खिचे चले जाते हैं।

ऐसा माना जाता है कि ईश्वर के रहस्य को जानने के इच्छुक वो लोग ज़्यादा होते हैं जो बिना किसी लालच के दूसरों के लिए कुछ अच्छा करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं व जिन्हें दूसरों की मदद करके एक अद्भुत शांति की  प्राप्ति होती है। उस शांति और गर्व को महसूस करने का एक अलग ही आनंद है, जिसे हर कोई महसूस नहीं कर पाता।

यदि आपने भी अपना, उजला और वास्तविक रूप जानना है तो उसे जानने की प्रबल जिज्ञासा पैदा करनी होगी, जिससे आप अपने आंतरिक स्वरूप का ज्ञान पा सकेंगे, अदभुत शांति महसूस कर सकेंगे।

ईश्वर के रूप, रंग, आकार को जानने, मानने व समझने की सबकी अपनी अलग-अलग सोच हैं। कुछ साकार ईश्वर में विश्वास करते हैं तो कुछ निराकार, लेकिन उसे साक्षात महसूस किया जा सकता है, जैसे जब कभी आप अपने आप को अकेला व असहाय महसूस कर रहे हों, आगे कोई रास्ता न दिखाई दे रहा हो, आपकी जेब एकदम खाली हो। ऐसे में अचानक से किसी अनजान व्यक्ति से आपकी मुलाकात हो जाए। उसके ज़रिए आपका मार्ग-दर्शन हो जाए और आपके काम अचानक से बनते चले जाएं। फिर एक दिन वो मार्गदर्शक एक वक्त के बाद अपने आप ही आपकी ज़िंदगी से ग़ायब हो जाए तो समझ लीजिए वे ख़ुद ईश्वर ही थे जिन्होनें अपने भेजे हुए अनुयायी के द्वारा आपकी मदद की लेकिन आप पहचान नहीं पाए। तभी तो कहते हैं हरेक जीवात्मा में परमात्मा का वास होता है, ज़रूरत है तो सिर्फ उसे पहचानने की। जो व्यक्ति आपकी बिना किसी स्वार्थ से तन, मन, धन से मदद करता है उसका दर्जा भगवान के समान ही हो जाता है।

कई बार ऐसा भी होता है जब कभी हमारे साथ कुछ बुरा हो जाता है तो हम अपनी तकदीर और ईश्वर को कोसने लग जाते हैं। जो कि एकदम ग़लत है। क्या कभी ये सोचा है जब हम खुद ही सही समय पर सही डिसीज़न नहीं ले रहे होते तब हमारे मां-बाप या कोई अपना हमें सही सलाह दे रहा होता है या अपने मन की आवाज़ को हम नहीं सुन रहे होते उन्हें नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ जाते हैं। ज़रा एक बार फिर से उस पल को याद कीजिए कहीं वो आपके ईष्ट का पैगाम ही तो नहीं था!! जो उस वक्त स्वयं हमें सही राह दिखाने भी आए थे लेकिन हमनें उनकी एक न मानी ?

एक बात हमें अवश्य याद रखनी चाहिए कि हमें जब और जहां कहीं भी सतोगुण के दर्शन होते हैं या सतगुणी लोगों की संगती में रहते हैं तो हमारी अंतरआत्मा हमें वैसा ही बनने के लिए प्रेरित करती है। वास्तविकता यह है कि प्रेरणा हमें वास्तव में कहीं बाहर से नहीं मिलती बल्कि वह हमारे अंदर ही होती है जो बाहरी प्रेरणा से आत्मबल पाकर स्फुरित हो उठती है। तभी तो कहते हैं कि ईश्वर हमारे भीतर ही है।

आइए अपने अंदर के जिज्ञासू को जगाकर अपने सत्यस्वरूप का साक्षात्कार करें। सौंदर्यानुभूति और सतकर्मों की राह चलकर पाप, घृणा, द्वेष, लोभ, मोह, क्रोध को त्याग दें। हम सब उस परमपिता परमात्मा और सर्वशक्तिमान तत्व के अतिसूक्ष्म कण या कहें अनुयायी हैं जिसे पृथ्वी पर किसी न किसी मकसद से भेजा गया है जिसका वास्तविक रूप परामात्मा ही है।