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Way to Spirituality: जिनकी परख स्वयं ईश्वर करते हैं चुनौतियां भी उन्हीं को ज्यादा मिलती हैं ! तो फिर घबराते क्यों हैं ?

दुख-तकलीफें सबकी ज़िंदगी में आती-जाती रहती हैं, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसकी ज़िंदगी में तकलीफें कभी आयीं ही न हों, हां ये हो सकता है किसी की ज़िदगी में कम तकलीफें होती हैं और किसी की ज़िंदगी में ज्यादा, किसी की ज़िंदगी का पहला पड़ाव अच्छा निकलता है तो किसी की ज़िंदगी आखिरी, क्योंकि ये माना जाता है कि हमारी ज़िंदगी में आने वाले सुख-दुख हमारे अपने कर्मों के अनुसार ही मिलते हैं।

कई बार आपने ये भी देखा होगा कि कुछ लोगों पर कुछ ज्यादा ही जिम्मेदारियां आन पड़ती हैं, परिवार में ही देख लीजिए एक ही मां के अगर तीन या चार बच्चे हैं ये ज़रूरी नहीं कि सबका स्वभाव एक जैसा हो, सभी बच्चे आज्ञाकारी हों, अच्छे हों, ज़िम्मेदारियां उठाने वाले हों। कई बार घर में सिर्फ एक ही बच्चा ऐसा निकलता है जो आज्ञाकारी होता है, परिवार के हर सुख-दुख में सभी जिम्मेदारियां अपने सिर पर उठाता है। ऐसे कई व्यक्ति आपने भी अपने आस-पास देखे होंगे या इस ब्लॉग को पढ़ते समय आपको ऐसा लग रहा हो कि ये आप ही की बात हो रही है…।

वैसे ये भी एक विषय है कि औलाद कितने प्रकार की होती है आपके कौन से कर्मों के अनुसार आपको किस तरह की औलाद मिलेगी या मिली है, इसमें कौन से ग्रह ज़िम्मेदार हो सकते हैं। इस विषय पर हम फिर बात करेंगे फिलहाल हम बात जीवन में आए संघर्षों के बारे में कर रहे हैं,

लेकिन क्या आप जानते हैं कि समय-समय पर भगवान हमारे इग्ज़ाम लेते रहते हैं, और उस एलिजिबिलिटी टेस्ट का नाम है “दुख का इग्जांम”, इसमें अपीयर होने के लिए कहीं से कोई कोचिंग भी नहीं मिलती। सबको अपने-अपने दुख का इग्जांम खुद ही क्लीयर करना पड़ता हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि वो कैसे ?  खैर ऐसा सोचने का ये मेरा नज़रिया है लेकिन अगर ज्योतिष शास्त्र के नज़रिए से भी परख करें तो भी आप समझ सकते हैं, जैसे हमारी कुण्डली के मुताबिक हमारे जीवन में हरेक ग्रह अपनी-अपनी दशा के अनुसार हमारी राशि में आते हैं खासतौर पर शनि की ‘साढ़ेसाती’ किसी की भी कुंडली पर जब आती है तो जातक के कर्मानुसार उसे दंड भी देती है और कर्मों को सुधारने का मौका भी। अगर कुंडली में कोई ग्रह नीच है तो उसके अनुसार हमारा जीवन भी प्रभावित होता है। वहीं अगर जातक अच्छे कर्म करता है तो नीच ग्रह उस राशि पर अपना बुरा प्रभाव नहीं छोड़ते बल्कि अपनी दशा के अंतिम चरण तक पहुंचते हुए वो हमें आशीर्वाद भी देकर जाते हैं यानि राजा से रंक और रंक से राजा वाली स्थिति भी बना कर जा सकते हैं, लेकिन आपकी कुंडली में कमज़ोर ग्रह की दशा के दौरान जो घटनाएं आपके जीवन में घटित होती हैं उसका सामना तो आपको करना ही पड़ेगा। अब हमें देखना ये होता है कि हम अपने बुरे समय में आए उतार-चढ़ाव को किस तरह लेते हैं, वैसे जिस ग्रह की दशा हमारे ऊपर आती है हम उसके प्रभाव को ज्योतिषीय उपायों द्वारा शांत करने की कोशिश कर सकते हैं और दूसरा आपनी आदतों, स्वाभाव, गुणों में बदलाव करके, पूजा-पाठ व दान- दक्षिणा करके उनके प्रभाव को कम करने की कोशिश कर सकते हैं।

अब मैं फिर वहीं पिछली बात को दोहराने जा रही हूं कि हमारी ज़िंदगी में भगवान जो ग्रहों नक्षत्रों के ज़रिए ‘दुख के इग्ज़ाम’ लेते रहते है, उसमें घबराने की ज़रूरत नहीं क्योंकि चुनौतियां उसी को ज्यादा मिलती हैं जिनकी परख स्वयं ईश्वर कर रहे होते हैं। अगर आपको ज्यादा जिम्मेदारीयां मिल रही हैं तो समझें आप ईश्वर के वॉलंटियर हैं। वो अपने दूसरे कमज़ोर बच्चों की सहायता के लिए आपको उनका सहारा बना रहे हैं। जो लोग दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं उनकी आत्मा भी पवित्र होती है।

दूसरी ओर जो लोग देखने में सौभाग्यशाली नज़र आते हैं, जिनके पास सभी ऐशो-आराम के साधन हैं, जो वैभव का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, दिन-रात विलासिता में खोए रहते हैं उन्हें क्या पता दूसरों के लिए कुछ करने का सुख है? करुणा क्या है, आत्मिक शांति क्या है? वहीं अगर ऐसे लोग अपने वैभव, प्रतिभा, सम्पदा व सुविधाओं का प्रयोग पिछड़े हुए, गरीब व दुर्बलों को सुयोग्य बनाने में करें या करते हैं तो इसके बाद जो संतोष, सुख, शांति और धैर्य उन्हें मिल सकता है वो करोड़ों रुपये खर्च करके भी नहीं मिलता।

तो आगे से जब भी आपके ऊपर किसी और की कोई ज़िम्मेदारी, दुख या परेशानी आए तो पीछे न हटें क्योंकि ईश्वर ने उन्हें पूरा करने के लिए आपको ही चुना है और यदि किसी पर कभी कोई मुसीबतों का पहाड़ टूट जाए, सारे रास्ते बंद हो जाएं, परेशानी आए तो समझें कि आपका ‘दुख का इग्जाम’ शुरु हो चुका है, घबराएं नहीं आंखे बंद करके सिर्फ अपने ईष्ट से प्रार्थना करें कि हे ईश्वर मेरा मार्गदर्शन करें, मेरा साथ दें, मैं हर मुश्किल का सामना करने के लिए तैयार हूं और अच्छे कर्म करते हुए अपना ऐसा वक्त काटें देखना इसका परिणाम अच्छा ही मिलेगा।

संपादकः  मनुस्मृति लखोत्रा