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Way to Spirituality: अंतःशुद्धि का महापर्व नवरात्र, जानिए कैसे ?

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Editor : Manusmriti Lakhotra at theworldofspiritual.com

आइए अंतःशुद्धि की इन नौ रात्रियों के शक्ति पर्व को मनाएं। फिर से अपने भीतर की ऊर्जा को जगाएं। प्रकृति के होकर प्रकृति को अपने भीतर महसूस करें। नव पल्लवों, चारों और अपना रूप बिखराती हरियाली और वनस्पतियों की खुशबू को महसूस करें। वास्तव में, आश्विन और चैत्र माह में गर्मी व सर्दी ऋतुओं का मिलन होता है ऐसे में नवरात्रि का आना वातावरण व प्रकृति में एक उत्सव का माहौल पैदा कर देता है। इस समय प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है, वातावरण में एक नई सी आभा देखने को मिलती है मानो ऐसा लगता है जैसे कोई नवयौवना नींद से जागी हो और अपने प्रिय से मिलन के लिए सज-संवर रही हो… अपना हार-श्रृंगार कर रही हो। पतझड़ के बाद प्रकृति में नईं पत्तियों व हरियाली से नवीन जीवन की शुरुआत होती है। ऐसे में संपूर्ण सृष्टि में जागृत नई ऊर्जा का उपयोग हम नवरात्रि में व्रत, जप, तप के ज़रिए करते हैं। जिससे हमारी ओर से किए गए पंचकर्म, संयम-नियम हमारे अंतःकरण का शुद्धिकरण कर देते हैं।

नवरात्र के समय प्रकृति में एक विशिष्ट ऊर्जा होती है, यानि प्रकृति व ब्राह्मांड में विचरती शक्तियां जागृत अवस्था में होती है, जिनको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। आयुर्वेद इस अवसर को अंतःशोधन के लिए विशेष उपयोगी मानता है क्योंकि एक तरफ तो चैत्र माह में वसंत होता है जहां प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है तो वहीं वनस्पतियां नवीन पल्लव रूपी नया लिबास धारण करती हैं जिससे सारे वातावरण में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं। आयुर्वेद में माना गया है कि इन दिनों व्रत, तप, पंचकर्म आदि करने से शरीर और मन की शुद्धि होती है, पाचन प्रणाली ठीक होती है। असल में व्रत रखने के पीछे प्रयोजन ही यही है ताकि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केंद्रित कर सकें। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखा जाए तो जब कोई भी व्यक्ति व्रत-उपवास शुद्ध भावना के साथ रखता है तब उसका मन भी सकारात्मक होता है। जिसका प्रभाव हमारे मन व इंद्रियों पर पड़ता है। जिससे हम अपने भीतर एक नई ऊर्जा को महसूस करते हैं।  

इन दिनों प्रकृति में नई ऊर्जा का संचार हमारे मन के साथ-साथ जीवन को भी प्रभावित करता है जिसे यदि हमने ग्रहण कर लिया तो फिर जीवन में किसी अन्य वस्तु की कामना ही नहीं रहती। दुर्गा उपासना और दुर्गा पूजन की नौ रात्रियां मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है जिसका दूसरा मुख्य प्रयोजन अपने भीतर की शक्ति को जगाना है क्योंकि मनुष्य और प्रकृति का तालमेल जब होता है तब हमारे भीतर दैवीय गुणों का संचार होता है। इसलिए कोविड 19 जैसी महामारी से घबराएं नहीं बल्कि नवरात्रि में आत्म सयंम, सात्विक भोजन, व्रत, तप व ध्यान करके अपने भीतर सकारात्मकता व ऊर्जा को जगाएं। इस महामारी को भगाने के लिए सभी नियमों का पालन करें। ये वो दिन हैं जब ब्राहमांड में दैवीय शक्तियां भी अपनी ऊर्जाओं का विकास कर रही होती हैं ऐसे में आओं प्रकृति मां से एकजुट होकर गुहार लगाएं कि हे आदिशक्ति, देवी दुर्गे सारा संसार कोरोना जैसी महामारी से मर रहा है, तुम ही मां प्रकृति हो, जगजननी हो, मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों, नदी-पहाड़, समुद्र आदि तुम्हारी ही सन्तान हैं तो फिर तुम अपनी सन्तान को कोरोना जैसी महामारी से कैसे मरते हुए देख सकती हो। हे दुर्गे जागो, जैसे तुमने महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ जैसे भयंकर राक्षसों का वध किया था और देवताओं और ऋषि, मुनियों को बाचाया था ठीक वैसे ही कोरोना रूपी राक्षस का सर्वनाश करो और अपनी संतान को बचाओ……।

जय माता दी…

धन्यवाद, संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा