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Way to Spirituality: कौन कहता है कि भगवान आपको सुन नहीं रहे हैं? मेरी मानिए एक बार पुकार कर तो देखिए…!

हम कितने ही आराम से कह देते है न कि भगवान मेरी नहीं सुनता…वो तो आंखे बंद करके बैठा है….मेरी मानों तो उन्हें एक बार सच्चे दिल से पुकार कर तो देखिए….वो किसी न किसी रूप में आपके  मन, मस्तिष्क या आपके आसपास होने का अहसास आपको करवा ही देंगे…..यक़ीन मानिए जब आपके सामने उम्मीदों के सभी रास्ते बंद हो जाएं….ऐसा लगने लगे कि किस्मत ने भी आपका साथ छोड़ दिया है….फिर एक बार सच्चे मन से अपने ईष्ट को याद करें वो खुद-ब-खुद दौड़े चले आएंगे…चाहे किसी न किसी फरिश्ते यानि किसी मददगार के रूप में ही सही….और आपके बिना कहे आपकी सारी मुश्किलों के हल निकाल देंगे……मेरे साथ भी कई बार ऐसा हुआ है…कई बार मुश्किलें आयीं….सारे रास्ते बंद हो गए…लगा कि अब आगे क्या?  एक दम शून्य…..सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा….आगे जैसे दुनियां खत्म…..सारे साथ देने वालों ने जैसे मुझ से किनारा ही कर लिया हो….और फिर अचानक एक दिन टीवी देखते हुए कुछ ऐसी प्रेरणादायक घटना देखने को मिली कि मानों ऐसा लगा कि ये तो मेरी ही कहानी है….उस दिन आखीर तक वो कहानी देखते हुए उस समस्या से बाहर निकलने का सोल्यूशन भी मिला….थोड़ी देर बाद मैने जैसे ही पढ़ने के लिए अखबार उठायी बाईचांस उसमें भी ठीक वैसी ही कहानी और घटना का ज़िक्र था जो थोड़ी देर पहले मैं टीवी पर देखकर हटी थी और अंत में फिर से प्रेरणा थी…मैं कुछ हैरान हुई…..फिर थोड़ी देर बाद पुराने किसी मित्र का फोन आया और अचानक ही मेरी समस्या से संबंधित उससे मदद मिल गई…..उस दिन मुझे ऐसा लगा मानों कोई अदृश्य शक्ति जैसे मेरे पास खड़ी है और मुझे अलग-अलग ज़रिए से प्रेरणा देने और मदद करने की कोशिश कर रही है। फिर मैने सोचा अरे कहीं ये मेरे ईष्ट ही तो नहीं ऐसा कर रहे ?…हाहा…कई बार मैं तो ऐसा महसूस करती हूं और शायद आप भी ऐसा महसूस करते होंगे…खैर, ये भी विचारों की एक अलग ही दुनियां है जहां आत्मा और परमात्मा की नज़दीकी आप खुद महसूस कर सकते हैं…जहां आपके और आपके ईष्ट के अलावा और कोई नहीं होता…जहां आप अपने मन से संवाद रचाते हैं और आपको उत्तर भी स्वयं ही मिल जाते हैं…यही तो ईश्वर है….।

लेकिन ज़िंदगी में जो होना है वो तो होकर ही रहेगा…अपने कर्मों के फल भी तो हमें ही भुगतने होते हैं…फिर चाहे वो अच्छे हैं या बुरे…लेकिन ऐसे समय में अपने ईष्ट को हमेशा याद रखें…..वो ऐसे समय में आपको आपकी हर मुश्किल का समाधान देंगे….वैसे हम जब भी अपने ईष्ट को याद करते हैं तो हमेशा अपना सुख ही मांगते हैं…..और जब सुख मिल जाता है तो तब उन्हें याद करना ही भूल जाते हैं…..मुझे ऐसा लगता है कि उनसे सुख मांगने की बजाए दुख मांगना चाहिए…ताकि प्रभू को याद तो करेंगे…..स्वार्थी होकर जीना भी क्या कोई जीना है…..आखिर अंतिम सत्य तो मृत्यू ही है…., फिर ये कैसा तेरा-मेरा….फिर कौन अपना-पराया…फिर क्या कम या ज्यादा….हम सभी एक ट्रेन में सफर कर रहे मुसाफिर की तरह ही तो हैं…जिसका जो-जो स्टेशन आता है वो उतरता जाता है…..सब इसी संसार में आकर मिला…हमने भोगा…यहीं छोड़ा और वापिस चल दिए एक नए सफर की ओर…!!!

 

संपादकः मनुस्मृति लखोत्रा

Image courtesy: Unsplash