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Way to Spirituality: सुख और दुख मनुष्य के मानस पुत्रों की भांति हैं, जिनका सम्बन्ध मनुष्य की भावनात्मक स्थिति से हैं ! जानिए कैसे?

सुख और दुख को देखने का सबका अपना-अपना नज़रिया होता है। कहते हैं कि जो कोई भी पैदा हुआ है वो अपना भाग्य साथ लेकर आया है जिसके साथ सुख-दुख भी जुड़ा हुआ है। दरअसल सुख और दुख का न ही तो कोई अपना अस्तित्व है और न ही कोई आधार। ये सब हमारी ज़िंदगी में कृत्रिम रूप से आये हुए हैं, या यो कह लीजिए ये हमारी अनुभूति, कल्पना शक्ति की उपज होते हैं। हम अपने सामने आयी किसी भी परिस्थिति को किस ढंग से लेते हैं, ये उस पर भी निर्भर करता है, हमारी सोच, समझ व कल्पना शक्ति यदि चाहे तो उसे बड़ा दुख बना सकती है और यदि चाहे तो साधारण सी घटना मानकर या सकारात्मकता के साथ जोड़कर उससे निपट सकती है। आप सुख-दुख को इंसान के मानस पुत्रों की तरह भी जान सकते हैं..क्योंकि किन्हीं विशेष परिस्थितियों में इन दो तरह की भावनाओं का जन्म हमारे मन की स्थिति के अनुसार होता है।

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एक जगह मैनें पढ़ा था कि इंसान की ज़िंदगी में पांच तरह के सुख होते हैं जैसे धन का सुख, तन का सुख, मन का सुख, बुद्धि का सुख एवं अध्यात्म का सुख। आइए समझते हैं वो कैसे?

अब मान लीजिए आपने कोई गहना खरीदा और आपको बेहद खुशी मिली… तो आपको मिला धन का सुख। आपने अपनी पसंद की कोई मिठाई खाई तो आपको मिला तन का सुख, बच्चों को खिलाई तो मन का सुख, आप परीक्षा में अच्छे अंक लेकर पास हुए तो बुद्धि का सुख, आध्यात्मिक पहलू से जीवन को समझना अध्यात्म सुख कहा जाता है।

इसी तरह पांच तरह के दुख भी माने गए हैं जैसे आपका पर्स किसी ने मार लिया या आपकी पॉकेट से सारे पैसे गिर गए ये हुआ धन का दुख, आप लंबे समय से बीमार हैं या आपका कोई अंग खराब हो गया है तो ये है तन का दुख, और एक दुख होता है अध्यात्म का दुख, जिसे आम लोग शायद ही समझ पाते हों। ये दुख 100 में से कुछ लोगों को ही हो पाता है, वो ये है कि अपने आप को न जान पाने का दुख। इस धरती पर अपने होने और आने का मकसद न मिल पाने का दुख, इश्वरीय सत्ता को न समझ पाने का दुख…. इन पहलूओं को हम अध्यात्म दुख कह सकते हैं।

लेकिन अब दूसरी तरफ आपके सुख किसी के दुख का कारण भी बन सकते हैं और आपके दुख किसी की खुशी का कारण भी…. जैसे शहर में डेंगू, मलेरिया या फिर वायरल फैल गया, इससे शहर में एक दहशत का माहौल बना, कई लोग इसकी चपेट में आ गए उनके घरों में दुख का माहौल बना लेकिन इनका दुख कितने ही घरों के लिए सुख का कारण बना जैसे कैमिस्ट शॉप, फल बेचने वाले, हॉस्पिटल्स, लैब वाले आदि….और जिन घरों में डेंगू जानलेवा हो गया उनकी वजह से हो सकता है… कफन और अंतिम संस्कार का सामान बेचने वालों को धन सुख मिला, क्योंकि आखिर वो भी सुबह गल्ले पर बैठने से पहले भगवान से सामान बिक्री के लिए प्रार्थना करके ही बैठते होंगे…. बात में गहराई कितनी है… इसलिए ठीक ही कहा जाता है कि किसी भी बात के हमेशा दो पहलू होते हैं, उसे एक पहलू से आंकना सही नहीं है।

तो वहीं आपका भावनात्मक होना सुख और दुख से सबसे ज्यादा ताल्लूक रखता है, क्योंकि आप जितने भावनात्मक होंगे उतने ही स्तर में आपको दुख ज्यादा दुखी करेंगे और सुख ज्यादा खुशी देंगे। मन तो समुद्र की तरह चंचल होता है। उसमें लहरों की तरह अच्छे और बुरे भाव आते-जाते रहते हैं। यदि आप भावनात्मक रूप से बैलेंस्ड हैं तो आप ज्यादा खुशी से खुश नहीं होंगे और ज्यादा दुख से कभी विचलित नहीं होंगे।

इसके विपरीत राग द्वेष से भरे हुए और संकीर्ण भावनाएं रखने वाले, सिर्फ अपना फायदा, लाभ चाहने वाले लोगों को हर बात पर सिर्फ दुख ही नज़र आता है। अगर अच्छे जीवन की कामना करते हैं तो इन सबसे ऊपर उठकर जीने में ही भलाई है…. देखिए संसार में सुख-दुख के साथ और भी कितना कुछ जुड़ा हुआ है, जैसे जहां अन्याय है वहां न्याय भी है, जहां अंधेरा है वहां प्रकाश भी है, जन्म है तो मृत्यु भी है, मीठा है तो कड़वा भी है, बुराई है तो अच्छी भी है, प्यार है तो तकरार भी है…जहां अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं का होना ज़रूरी है…इस तरह ये सभी जीवन के रस हैं जिसका आनंद अगर लेना है तो अपनी भावनाओं को बैलेंस्ड कीजिए। सबके सुख में सुखी रहना और दूसरे के दुख में दुख को समझना, ऐसा करने से आप दूसरों के प्रति अच्छा सोचने लगेंगे और जब सबके हित में अच्छा सोचेंगे तो आपके अपने दुख कम हो जायेंगे…आपके पास जो कुछ है उसमें संतुष्टि ढूंढने लगेंगे।

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इस श्लोक के साथ मैं अपनी बात को फिलहाल के लिए विराम दूंगी।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

अर्थ – “सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।”

यदि ऐसी चाह आपके मन में होने लगे तो समझ लीजिएगा कि आपका ह्दय परिवर्तन हो रहा है और आप अपने अंदर दिन-ब-दिन स्थायी सुख, शान्ति व संतोष को पायेंगे।

संपादक

मनुस्मृति लखोत्रा                                                                                                                                            Image courtesy: Pixabay