You are currently viewing Ram Navami Special : जब तुलसीदासजी को श्रीजगन्नाथपुरी में हुए थे श्रीराम के दर्शन…!

Ram Navami Special : जब तुलसीदासजी को श्रीजगन्नाथपुरी में हुए थे श्रीराम के दर्शन…!

श्री राम के प्रति स्वामी तुलसीदास की भक्तिभावना को कौन नहीं जानता। तुलसीदासजी का एक किस्सा काफी प्रचलित है जब वो किसी के कहने पर श्री राम के दर्शन पाने के लिए पैदल ही श्री जगन्नाथपुरी चल दिए क्योंकि सुनने में आया था कि जगन्नाथपुरी में श्री राम साक्षात दर्शन देते हैं, बस फिर क्या था तुलसीदास जी महाराज अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए। महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए।

जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा वह निराश हो गये और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते। तुलसीदास जी दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हो गया। इस सोच में रात भी हो गई, वहीं थके-मांदे, भूखे-प्यासे तुलसीदास जी का अंग-अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई, वे ध्यान से सुनने लगे।

अरे बाबा! तुलसीदास कौन है? एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास जी ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं, इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया  होगा। वे उठते हुए बोले, मैं ही हूं तुलसीदास।

बालक ने कहा- लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है। तुलसीदास बोले- भैया कृपा करके इसे वापस ले जाएं। बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, स्वयं महाप्रभु द्वारा भेजा प्रसाद आप अस्वीकार कर रहे हैं। इसका कारण? तुलसीदास बोले- बालक, मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाए कुछ ग्रहण नहीं करता। फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूं, यह मेरे किस काम का? बालक ने मुस्कराते हुए कहा- अरे बाबा, आपके इष्ट ने ही तो भेजा है ।

तुलसीदास बोले, यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता। बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है:

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।

अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि मैं ही तुम्हारा राम हूं। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है। विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना।

तुलसीदास जी ने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया। अगली सुबह मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र स्थान पर श्री रामजी और लक्ष्मणजी के भव्य दर्शन हुए। जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान ‘तुलसी चौरा’ नाम से विख्यात हुआ। वहां पर तुलसीदास जी की पीठ ‘बड़छता मठ’ के रूप में प्रतिष्ठित है।

( इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है जिसका उद्देश्य जानकारी देना है )