धर्म एवं आस्थाः गुरु गोबिंद सिंह जी सिंखों के दसवें गुरु होने का साथ-साथ एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता, मौलिक चिंतक व संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। गुरु गोबिंद सिंह जी अपने बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी बाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। धर्म व सत्य के मार्ग पर चलना ही उनके जीवन के आदर्शों में शुमार था। धर्म की रक्षा करने के लिए ही उन्होंने अपने समस्त परिवार का बलिदान दे दिया जिसके लिए उन्हें ‘सरबंसदानी’ भी कहा जाता है। उन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की जो कि सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। उन्होंने कई ग्रंथो की रचना की, सबसे पहले उन्होंने पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया जिसके बाद गुरु रूप में सुशोभित किया गया। उनकी अन्य रचनाएं हैः-
जाप साहिबः निरंकार का गुणवाचक नामों का संकलन
अकाल उस्ततः अकाल पुरख की अस्तुति एवं कर्म काण्ड पर भारी चोट
बचित्र नाटकः गुरु गोबिंद सिंह जी की सवाई जीवनी और आत्मिक वंशावली से वर्णित रचना
चण्डी चरित्रः आदि शक्ति की स्तुति। इसमें चंडी को परमेशर की शक्ति के रूप में दर्शाया है। एक रचना मार्कण्डेय पुराण पर आधारित है।
शास्त्र नाम मालाः अस्त्र-शस्त्रों के रूप में गुरमत का वर्णन।
अथ पख्यां चरित्र लिख्यतेः बुद्धियों के चाल चलन के ऊपर विभिन्न कहानियों का संग्रह।
ज़फरनामाः मुगल शासक औरंगज़ेब के नाम पत्र।
खालसा महिमाः खालसा की परिभाषा और खालसा के कृतित्व।
आइए उनकी प्रमुख रचनाओं में से अद्वितीय रचना ‘चण्डी दी वार’ को पढ़ा जाए….
![]() ‘चंडी दी वार’ ੴ स्री वाहिगुरू जी की फ़तह ॥ स्री भगउती जी सहाइ ॥ वार स्री भगउती जी की पातसाही १० ॥ प्रिथम भगौती सिमरि कै गुरु नानक लईं धिआइ ॥ फिर अंगद गुर ते अमरदासु रामदासै होईं सहाइ ॥ अरजन हरिगोबिंद नो सिमरौ स्री हरिराइ ॥ स्री हरि किशन धिआईऐ जिस डिठे सभि दुखि जाइ ॥ तेग बहादर सिमरिऐ घर नउ निधि आवै धाइ ॥ सभ थाईं होइ सहाइ ॥१॥ ੴ पउड़ी ॥ खंडा प्रिथमै साज कै जिन सभ सैसारु उपाइआ ॥ ब्रहमा बिसनु महेस साजि कुदरति दा खेलु रचाइ बणाइआ ॥ सिंधु परबत मेदनी बिनु थम्हा गगनि रहाइआ ॥ सिरजे दानो देवते तिन अंदरि बादु रचाइआ ॥ तै ही दुरगा साजि कै दैता दा नासु कराइआ ॥ तैथों ही बलु राम लै नाल बाणा दहसिरु घाइआ ॥ तैथों ही बलु क्रिसन लै कंसु केसी पकड़ि गिराइआ ॥ बडे बडे मुनि देवते कई जुग तिनी तनु ताइआ ॥ किनी तेरा अंतु न पाइआ ॥२॥ साधू सतजुगु बीतिआ अध सीली त्रेता आइआ ॥ न्ची कलि सरोसरी कलि नारद डउरू वाइआ ॥ अभिमानु उतारन देवतिआं महिखासुर सु्मभ उपाइआ ॥ जीति लए तिनि देवते तिहु लोकी राजु कमाइआ ॥ वडा बीर अखाइ कै सिर उपरि छत्रु फिराइआ ॥ दिता इंद्रु निकाल कै तिनि गिर कैलासु तकाइआ ॥ डरि कै हथो दानवी दिल अंदरि त्रासु वधाइआ ॥ पास दुरगा दे इंद्रु आइआ ॥३॥ पउड़ी ॥ इक दिहाड़े न्हावण आई दुरगसाह ॥ इंद्र बिरथा सुणाई अपणे हाल दी ॥ छीनि लई ठकुराई साते दानवी ॥ लोकी तिही फिराई दोही आपणी ॥ बैठे वाइ वधाई ते अमरावती ॥ दिते देव भजाई सभना राकसां ॥ किने न जितिआ जाई महिखे दैत नूं ॥ तेरी साम तकाई देवी दुरगसाह ॥४॥ दुरगा बैण सुणंदी ह्सी हड़हड़ाइ ॥ ओही सीहु मंगाइआ राकस भखणा ॥ चिंता करहु न काई देवा नूं आखिआ ॥ रोह होई महा माई राकसि मारणे ॥५॥ दोहरा ॥ राकसि आए रोहले खेति भिड़न के चाइ ॥ लशकनि तेगां बरछीआं सूरजु नदरि न पाइ ॥६॥ पउड़ी ॥ दुहां कंधारा मुहि जुड़े ढोल संख नगारे बजे ॥ राकस आए रोहले तरवारी बखतर स्जे ॥ जुटे सउहे जु्ध नूं इक जाति न जाणन भ्जे ॥ खेत अंदरि जोधे ग्जे ॥७॥ पउड़ी ॥ जंग मुसाफा बजिआ रणि घुरे नगारे चावले ॥ झूलणि नेजे बैरका नीसाण लसनि लिसावले ॥ ढोल नगारे पउण दे ऊंघन जाणु जटावले ॥ दुरगा दानो डहे रणि नाद वजन खेतु भीहावले ॥ बीर परोते बरछीएं जणु डाल चमु्टे आवले ॥ इक वढे तेगी तड़फीअन मद पीते लोटनि बावले ॥ इक चुणि चुण झाड़हु कढीअन रेत विचों सुइना डावले ॥ गदा त्रिसूलां बरछीआं तीर वगनि खरे उतावले ॥ जण डसे भुयंगम सावले मरि जावनि बीर रुहावले ॥८॥ पउड़ी ॥ वेखन चंडि प्रचंड नूं रणि घुरे नगारे ॥ धाए राकसि रोहले चउगिरदे भारे ॥ ह्थीं तेगां पकड़ि कै रणि भिड़े करारे ॥ कदे न नठे जुध ते जोधे जुझारे ॥ दिल विच रोह बढाइ कै मारु मारु पुकारे ॥ मारे चंडि प्रचंड नै बीर खेति उतारे ॥ मारे जापनि बिजुली सिर भारि मुनारे ॥९॥ पउड़ी ॥ चोट पई दमामे दलां मुकाबला ॥ देवी दसति नचाई सीहणि सारदी ॥ पेटि मलंदे लाई महिखे दैत नूं ॥ गुरदे आंदा खाई नाले रुकड़े ॥ जेही दिल विच आई कही सुणाइ कै ॥ चोटी जाणु दिखाई तारे धूमकेति ॥१०॥ पउड़ी ॥ चोटां पवनि नगारे अणीआं जु्टीआं ॥ धूहि लईआं तरवारी देवां दानवां ॥ वाहनि वारो वारी सूरे संघरे ॥ वगै रतु झुलारी जिउ गेरू बाबुत्रा ॥ देखन बैठ अटारी नारी राकसां ॥ पाई धूम सवारी दुरगा दानवी ॥११॥ पउड़ी ॥ लख नगारे वजनि आम्हो साहमणे ॥ राकस रणहुं न भजनि रोहे रोहले ॥ सीहां वांगू ग्जन सभे सूरमे ॥ तणि तणि कैबर छडनि दुरगा साम्हणे ॥१२॥ पउड़ी ॥ घुरे नगारे दोहरे रण संगलीआले ॥ धूड़ि लपेटे धूहरे सिरदार जटाले ॥ उखलीआं नासा जिना मूंहि जापन आले ॥ धाए देवी साहमणे बीर मु्छलीआले ॥ सुरपति जेहे लड़ि हटे बीर टले न टाले ॥ ग्जे दुरगा घेरि कै जणु घणीअरु काले ॥१३॥ पउड़ी ॥ चोट पई खरचामी दलां मुकाबला ॥ घेरि लई वरिआमी दुरगा आइ कै ॥ राखस वडे अलामी भज न जाणदे ॥ अंति होए सुरगामी मारे देवता ॥१४॥ पउड़ी ॥ अगणत घुरे नगारे दलां भिड़ंदिआं ॥ पाए महखल भारे देवां दानवां ॥ वाहनि फ्ट करारे राकसि रोहले ॥ जापनि तेगी आरे मिआनो धूहीआं ॥ जोधे वडे मुनारे जापन खेत विच ॥ देवी आप सवारे पबां जवेहणे ॥ कदे न आखनि हारे धावनि साहमणे ॥ दुरगा सभ संघारे राखस खड़ग लै ॥१५॥ पउड़ी ॥ उमल ल्थे जोधे मारू वजिआ ॥ ब्दल जिउ महिखासुर रण विच ग्जिआं ॥ इंद्र जेहा जोधा मैथो भ्जिआ ॥ कउणु विचारी दुरगा जिनि रणु स्जिआ ॥१६॥ पउड़ी ॥ व्जे ढोल नगारे दलां मुकाबला ॥ तीर फिरै रैबारे आम्हो साम्हणे ॥ अगणत बीर संघारे लगदी कैबरी ॥ डि्गे जाण मुनारे मारै बिजु दै ॥ खु्ल्ही वालीं दैंत अहाड़े सभे सूरमे ॥ सु्ते जाणु जटाले भंगां खाइ कै ॥१७॥ पउड़ी ॥ दुहां कंधारां मुहि जुड़े नालि धउसा भारी ॥ कड़कि उठिआ फउज ते वडा अहंकारी ॥ लै कै चलिआ सूरमे नालि वडे हजारी ॥ मिआनो खंडा धूहिआ महिखासुर भारी ॥ उमल ल्थे सूरमे मार मची करारी ॥ चले जापनि रत दे सलले जटधारी ॥१८॥ पउड़ी ॥ स्ट पई जमधाणी दलां मुकाबला ॥ धूहि लई क्रिपाणी दुरगा मिआन ते ॥ चंडी राकसि खाणी वाही दैत नूं ॥ कोपर चूरि चवाणी ल्थी करग लै ॥ पाखर तुरा पलाणी रड़की धरति जाइ ॥ लैदी अघा सिधाणी सिंगां धउल दिआं ॥ कूरम सिर लहिलाणी दुसमन मारि कै ॥ व्ढे गन तिखाणी मूए खेत विच ॥ रण विच घ्ती घाणी लोहू मिझ दी ॥ चारे जुग कहाणी चलगि तेग दी ॥ बिधण खेति विहाणी महिखे दैत नूं ॥१९॥ इती महिखासुर दैत मारे दुरगा आइआ ॥ चउदह लोकां राणी सिंघ नचाइआ ॥ मारे वीर जटाणी दल विचि अगले ॥ मंगन नाही पाणी दली हंकारि कै ॥ जणु करी समाइ पठाणी सुणि कै राग नूं ॥ रतु दे हड़वाणी चले बीर खेत ॥ पीता फुल अयाणी घुमणि सूरमे ॥२०॥ होई अलोप भवानी देवां नूं राज दे ॥ ईसर दी बरदानी होई जितु दिन ॥ सु्मभ निसु्मभ गुमानी जनमे सूरमे ॥ इंद्र दी राजधानी त्की जितणी ॥२१॥ इंद्रपुरी ते धावणा वड जोधी मता पकाइआ ॥ संज पटेला पाखरा भेड़ संदा साजु बणाइआ ॥ जुमे कटक अछूहणी असमानु गरदै छाइआ ॥ रोहि सु्मभ निसु्मभ सिधाइआ ॥२२॥ पउड़ी ॥ सु्मभ निसु्मभ अलाइआ वड जोधी संघर वाए ॥ रोह दिखाली दि्तीआ वरिआमी तुरे नचाए ॥ घुरे दमामे दोहरे जम बाहण जिउ अरड़ाए ॥ देउ दानो लु्झण आए ॥२३॥ पउड़ी ॥ दानो देउ अनागी संघरु रचिआ ॥ फु्ल खिड़े जणु बागीं बाणे जोधिआं ॥ भूतां इलां कागीं गोसत भखिआ ॥ हुमड़ धुमड़ जागी घ्ती सूरिआं ॥२४॥ स्ट पई नगारे दलां मुकाबला ॥ दिते देउ भजाई मिल कै राकसीं ॥ लोकी तिही फिराई दोही आपणी ॥ दुरगा दी साम तकाई देवां डरदिआं ॥ आंदी चंडि चड़ाई उते राकसां ॥२५॥ पउड़ी ॥ आई फेरि भवानी खबरी पाईआं ॥ दैत वडे अभिमानी होए इकठे ॥ लोचन धूम गुमानी राइ बुलाइआ ॥ जग विच वडा दानो आप कहाइआ ॥ चोट पई खरचामी दुरगा लिआवणी ॥२६॥ पउड़ी ॥ कड़क उठी रणि चंडी फउजां देखि कै ॥ धूहि मिआनो खंडा होई साहमणे ॥ सभे बीर संघारे धूमरनैण दे ॥ जणु लै कटे आरे दरखत बाढीआं ॥२७॥ पउड़ी ॥ चोबीं धउंस बजाई दलां मुकाबला ॥ रोहि भवानी आई उते राकसां ॥ खबे दसत नचाई सीहण सार दी ॥ बहुतिआं दे तनि लाई कीती रंगुली ॥ भाईआं मारनि भाई दुरगा जाणि कै ॥ रोहै होइ चलाई राकसि राइ नूं ॥ जम पुर दीआ पठाई लोचन धूम नूं ॥ जापे दि्ती साई मारन सु्मभ दी ॥२८॥ पउड़ी ॥ भंने दैत पुकारे राजे सु्मभ थै ॥ लोचनधूम संघारे सणे सिपाहीआं ॥ चुणि चुणि जोधे मारे अंदर खेत दै ॥ जापनि अमबरि तारे डिगनि सूरमे ॥ गिरे परबत भारे मारे बि्जु दे ॥ दैतां दे दल हारे दहसत खाइ कै ॥ बचे सु मारे मारे रहदे राइ थै ॥२९॥ पउड़ी ॥ रोहै होइ बुलाए राकसि सु्मभ नै ॥ बैठे मता पकाए दुरगा लिआवणी ॥ चंड अर मुंड पठाए बहुता कटकु दै ॥ जापे छ्पर छाए बणीआ केजमा ॥ जेते राइ बुलाए च्ले जु्ध नो ॥ जणु जमि पकड़ि चलाए सभे मारने ॥३०॥ पउड़ी ॥ ढोल नगारे वाए दलां मुकाबला ॥ रोहि रुहेले आए उते राकसां ॥ सभनी तुरे नचाए बरछे पकड़ि कै ॥ बहुते मारि गिराए अंदर खेत दै ॥ तीरी छहबर लाई बु्ठी देवता ॥३१॥ भेरी संख वजाए संघर रचिआ ॥ तणि तणि तीर चलाए दुरगा धनुख लै ॥ जिनी दसत उठाए रहे न जीवदे ॥ चंड अर मुंड खपाए दोनो देवता ॥३२॥ सु्मभ निसु्मभ रिसाए मारे दैत सुणि ॥ जोधे सभ बुलाए आपणे मजलसै ॥ जिनी देउ भजाए इंद्र जेहवे ॥ तेई मारि गिराए पल विच देवते ॥ दसती दसत वजाए उनी चित करि ॥ फिर स्रणवत बीज चलाए बीड़े राइ दे ॥ संज पटैला पाए चिलकत टोपीआं ॥ लु्झण नो अरड़ाए राकस रोहले ॥ कदे न किने हटाए जु्ध मचाइ कै ॥ मिलि तेई दानो आए हुण संघर वेखणा ॥३३॥ पउड़ी ॥ दैती डंड उभारी नेड़ै आइ कै ॥ सिंघ करी असवारी दुरगा सोर सुणि ॥ ख्बै दसत उभारी गदा फिराइ कै ॥ सैना सभ संघारी स्रणवत बीज दी ॥ जणु मद खाइ मदारी घूमन सूरमे ॥ अगणत पाउ पसारी रुले अहाड़ विचि ॥ जापे खेड खिडारी सु्ते फाग नूं ॥३४॥ पउड़ी ॥ स्रणवत बीज हकारे रहिंदे सूरमे ॥ जोधे जेडु मुनारे दिसण खेत विचि ॥ सभनी दसत उभारे तेगां धूहि कै ॥ मारो मारु पुकारे आए साहमणे ॥ संजा ते ठणकारे तेगीं उबरे ॥ घाड़ घड़नि ठठिआरे जाणि बणाइ कै ॥३५॥ स्ट पई जमधाणी दलां मुकाबला ॥ घूमरु बरग सताणी दल विच घतिओ ॥ सणे तुरा पलाणी डि्गण सूरमे ॥ उठि उठि मंगणि पाणी घाइल घूमदे ॥ एवडु मारि विहाणी उपर राकसां ॥ बिजलि जिउ झरलाणी उठी देवता ॥३६॥ पउड़ी ॥ चोबी धउस उभारी दलां मुकाबला ॥ सभो सैना मरी पल विचि दानवी ॥ दुरगा दानो मारे रोह बढाइ कै ॥ सिर विच तेग वगाई स्रणवत बीज दे ॥३७॥ अगणत दानो भारे होए लोहूआ ॥ जोधे जेड मुनारे अंदरि खेत दै ॥ दुरगा नो ललकारे आवण साहमणे ॥ दुरगा सभ संघारे राकस आंवदे ॥ रतू दे परनाले तिन ते भुइं पए ॥ उठे कारणिआरे राकस हड़हड़ाइ ॥३८॥ धगा संगलीआली संघर वाइआ ॥ बरछी बु्मबलिआली सूरे संघरे ॥ भेड़ मचिआ बीराली दुरगा दानवीं ॥ मार मची मुहराली अंदरि खेत दै ॥ जण नट ल्थे छाली ढोल बजाइ कै ॥ लोहू फाथी जाली लोथी जमधड़ी ॥ घण विचि जिउ छंछाली तेगां ह्सीआं ॥ घु्मरिआरि सिआली बणीआं केजमां ॥३९॥ धगा सूल बजाईआं दलां मुकाबला ॥ धूहि मिआनो लईआं जुआनी सूरमी ॥ स्रणवत बीजि वधाईआं अगणत सूरतां ॥ दुरगा सउहें आईआं रोहि बढाइ कै ॥ सभनी आण वगाईआं तेगां धूह कै ॥ दुरगा सभ बचाईआं ढाल स्मभाल कै ॥ देवी आप चलाईआं तकि तकि दानवी ॥ लोहू नालि डुबाईआं तेगां नंगीआं ॥ सारसुती जणु नाईआं मिल कै देवीआं ॥ सभे मार गिराईआं अंदरि खेत दै ॥ ति्दूं फेरि सवाईआं होईआं सूरतां ॥४०॥ पउड़ी ॥ सूरी संघरु रचिआ ढोल संख नगारे वाइ कै ॥ चंडि चितारी कालिका मनि बाहला रोह बढाइ कै ॥ निकली म्था फोड़ि कै जणु फतहि नीसाण बजाइ कै ॥ जागि सु जमी जु्ध नूं जरवाणा जणु मरड़ाइ कै ॥ रणु विचि घेरा घ्तिआ जणु सींह तुरिआ गणिणाइ कै ॥ आप विसूला होइआ तिहुं लोकां ते खुणसाइ कै ॥ रोह सिधाईआं चक्र पाणि करि नंदग खड़ग उठाइ कै ॥ अगै राकस बैठे रोहले तीर तेगी छहबर लाइ कै ॥ पकड़ पछाड़े राकसां दल दैतां अंदर जाइ कै ॥ बहु केसी पकड़ि पछाड़िअनि तिन अंदरि धूम रचाइ कै ॥ बडे बडे चुणि सूरमे गहि कोटी दए चलाइ कै ॥ रणि काली गुसा खाइ कै ॥४१॥ पउड़ी ॥ दुहा कंधारा मुहि जुड़े अणीआरां चोईआं ॥ धूहि किरपाणां ति्खीआं नालि लोहू धोईआं ॥ हूरां स्रणवत बीज नूं घति घेरि खलोईआं ॥ लाड़ा वेखणि लाड़ीआं चउगिरदै होईआं ॥४२॥ चौबी धउसी पाईआं दलां भिड़ंदिआं ॥ दसती धूहि नचाईआं तेगां तिखीआं ॥ सूरिआं दे तनि लाईआं गोसत गिधीआं ॥ विधण राती आईआं मरदां घोड़िआं ॥ जोगणीआं मिलि धाईआं लोहू भखणा ॥ फउजां मार हटाईआं देवां दानवां ॥ भजदी कथा सुणाईआं राजे सु्मभ थै ॥ भूईं न पउणै पाईआं बूंदा रकत दीआं ॥ काली खेत खपाईआं सभै सूरतां ॥ बहुती सिरी विहाईआं घड़ीआं काल कीआं ॥ जाण न जाए माईआं जूझे सूरमे ॥४३॥ सु्मभ सुणी करहाली स्रणवत बीज दी ॥ रण विचि किनै न झाली दुरगा आंवदी ॥ बहुते बीर जटाली उठे आखि कै ॥ चोटा पान तबाली जासन जु्ध नूं ॥ थरि थरि प्रिथमी हाली दलां चड़ंदिआं ॥ नाउ जिवे है हाली सहु दरीआउ विचि ॥ धूड़ि उताहां घाली खुरी तुरंगमां ॥ जाण पुकारू चाली धरती इंद्र थै ॥४४॥ पउड़ी ॥ आहर मिलिआ आहरीआं सैण सूरिआं साजी ॥ चले सउहे दुरगसाह जण काबै हाजी ॥ तीरी तेगी जमधड़ी रणि वंडी भाजी ॥ इक घाइल घूमनि सूरमे जणि मकतबि काजी ॥ इक बीर परोते बरछीऐ जिउ झुकि पउन निवाजी ॥ इक दुरगा सउहे खुनस कै खुनसाइन ताजी ॥ इक धावन दुरगा साम्हणे जिउ भुखिआए पाजी ॥ कदे न ्रजे जुध ते रजि होए राजी ॥४५॥ ब्जे संगलीआले संघरि डोहरे ॥ डहे जु खेत जटाले हाठां जोड़ि कै ॥ नेजे ब्मबलीआले दिसनि ओरड़े ॥ च्ले जाण जटाले नावन गंग नूं ॥४६॥ पउड़ी ॥ दुरगा अते दानवी सूल होईआं कंगां ॥ वाछड़ घ्ती सूरिआं विच खेत खतंगां ॥ धूहि क्रिपाणा तिखीआं बढि लाहनि अंगां ॥ पहिला दलां मिलंदिआं भेड़ु पइआ निहंगां ॥४७॥ पउड़ी ॥ ओरड़ि फउजां आईआं बीर चड़े कंधारी ॥ सड़कि मिआनो कढीआं ति्खीआं तरवारी ॥ कड़कि उठे रण म्चिआ व्डे हंकारी ॥ सिर धड़ बाहां गनले फुल जेहै बाड़ी ॥ जापे कटे बाढीआं रुख चंदन आरी ॥४८॥ दुहां कंधारां मुहि जुड़े जा स्ट पई खरवार कउ ॥ तक तक कैबर दुरगसाह तकि मारे भले जुझार कउ ॥ पैदल मारे हाथीआं संगि रथ गिरे असवार कउ ॥ आहर मिलिआ आहरीआं सैण सूरिआं साजी ॥ गु्से आई कालिका हथि सजे लै तलवार कउ ॥ एदूं पारउ ओत पार हरिनाकसि कई हजार कउ ॥ जिणि इका रही कंधार कउ ॥ सद रहमति तेरे वार कउ ॥४९॥ पउड़ी ॥ दुहां कंधारां मुहि जुड़े स्ट पई जमधाण कउ ॥ तद खिंग निसु्मभ नचाइआ डालि उपरि बरगसताण कउ ॥ फड़ी बिलंद मंगाइउस फुरमाइस करि मुलतान कउ ॥ गु्से आई साहमणे रण अंदरि घ्तण घाण कउ ॥ अगै तेग वगाई दुरगसाह बढि सु्मभन बही पलाण कउ ॥ रड़की जाइ कै धरत कउ बढि पाखर बढि किकाण कउ ॥ बीर पलाणो डिगिआ करि सिजदा सु्मभ सुजाण कउ ॥ साबास सलोणे खाण कउ ॥ सद साबास तेरे ताण कउ ॥ तारीफां पान चबान कउ ॥ सद रहमत कैफां खान कउ ॥ सद रहमत तुरे नचाण कउ ॥५०॥ पउड़ी ॥ दुरगा अतै दानवी गहि संघरि क्थे ॥ ओरड़ उठे सूरमे आइ डाहै म्थे ॥ क्ट तुफंगी कैबरी दल गाहि निक्थे ॥ वेखनि जंग फरेशते असमानो ल्थे ॥५१॥ पउड़ी ॥ दुहां कंधारां मुह जुड़े दल घुरे नगारे ॥ ओरड़ि आए सूरमे सिरदार रणिआरे ॥ लै के तेगां बरछीआं हथिआर उभारे ॥ सोहनि संजा बागड़ा जणु लगे फु्ल अनार कउ ॥ लै के बरछी दुरगसाह बहु दानव मारे ॥ चड़े रथी गज घोड़ई मारि भुइ ते डारे ॥ जाणु हलवाई सीख नाल विंन्ह वड़े उतारे ॥५२॥ पउड़ी ॥ दुहां कंधारां मुहि जुड़े नाल धउसा भारी ॥ लई भगउती दुरगसाहि वरजागणि भारी ॥ लाई राजे सु्मभ नो रतु पीऐ पिआरी ॥ सु्मभ पलाणो डिगिआ उपमा बीचारी ॥ डुबि रतु नालहु निकली बरछी दुधारी ॥ जाणु रजादी उतरी पैनि सूही सारी ॥५३॥ पउड़ी ॥ दुरगा अतै दानवी भेड़ पइआ सबाहीं ॥ ससत्र पजूते दुरगसाह गहि सभनीं बाहीं ॥ सु्मभ निसु्मभ संघारिआ वथ जेहे साहीं ॥ फउजां राकसिआरीआं देखि रोवनि धाहीं ॥ मुहि कड़ूचे घाह दे छडि घोड़े राहीं ॥ भजदे होइ मारीअन मुड़ झाकनि नाहीं ॥५४॥ पउड़ी ॥ सु्मभ निसु्मभ पठाइआ जम दे धाम नो ॥ इंद्र सदि बुलाइआ राज अभिशेखनो ॥ सिर पर छत्र फिराइआ राजे इंद्र दै ॥ चउदह लोकां छाइआ जसु जगमात दा ॥ दुरगा पाठ बणाइआ सभे पउड़ीआं ॥ फेरि न जूनी आइआ जिनि इह गाइआ ॥५५॥ |