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Blog: # SAY GOOD BYE TO PLASTIC: आखिर विश्व में कितने प्रतिशत “प्लास्टिक कचरा” बना हुआ है गले की फांस ! जानिए क्या है नुकसान ?

आइए अब बात करते हैं आखिर विश्व में कितने प्रतिशत प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है और इसके क्या नुकसान हो रहे हैं ? एक वेबसाइट पर छपे लेख के अनुसार दुनिया भर में प्रति मिनट एक मिलियन प्लास्टिक की पीने वाली बोतलों को खरीदा जा रहा है और पूरे विश्व में प्रत्येक वर्ष 500 बिलियन प्लास्टिक के बैग का प्रयोग किया जा रहा है जो कि केवल एक बार उपयोग होने वाले बैग हैं जिन्हें एक बार इस्तेमाल करेक फेंक दिया जाता है। एक अन्य पत्रिका के मुताबिक पूरे विश्व भर में इतना प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा हो चुका है कि जिससे पूरी पृथ्वी को चार बार लेपटा जा सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक “1950 के दशक के आरंभ से 8 अरब करोड़ मीट्रिक टन से भी अधिक प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है जिसमें से 60 प्रतिशत प्लास्टिक या तो भराव क्षेत्रों में या फिर प्रकृतिक पर्यावरण में पहुंच चुका है”।

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लेकिन एक और सबसे बड़ी समस्या ये है कि प्लास्टिक कचरे में से केवल 9 प्रतिशत ही ऐसा प्लास्टिक होता है जिसे दोबारा रि-साइकिल किया गया है, 12 प्रतिशत को जलाया गया है और 79 प्रतिशत अभी भी बाहर पड़ा पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। जो कि बरसात के साथ नदियों में और नदियों से समुद्र में पहुंच रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं प्लास्टिक और प्लास्टिक के कण नदियों में मछलियां व अन्य जानवर खा लेते हैं जो कि हमारे खाने और पीने के पानी में भी पहुंच जाता है।  

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जनसत्ता अखबार में छपे एक लेख के अनुसार “आयात से भी विदेशी कंपनियां भारत में प्लास्टिक भेज रही हैं। यदि मोटेतौर पर अनुमान लगाया जाए तो हर साल एक लाख इक्कीस हज़ार टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा पश्चिम एशिया, यूरोप और अमेरिका समेत 25 से अधिक देशों से लाया जा रहा है। पचपन हज़ार टन प्लास्टिक कचरा तो पाकिस्तान और बांग्लादेश से ही भारत में आ रहा है। पिछले एक वर्ष के दौरान उत्तर प्रदेश में अट्ठाईस हज़ार आठ सौ छियालीस टन, दिल्ली में उन्नीस हज़ार पांच सौ सत्रह टन और महाराष्ट्र में उन्नीस हज़ार तीन सौ पचहत्तर टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा आयात किया जा चुका है”।

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यदि भारत की ही बात की जाए तो प्लास्टिक कचरे का निपटान सरकार की भी सिरदर्दी का कारण बना हुआ है क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार अनुमानतः भारत में प्रतिदिन पच्चीस हज़ार नौ सौ चालीस टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, लेकिन इसमें से 40 प्रतिशत इकट्ठा हो ही नहीं पाता। जो कि भराव घरों में, खुले में पड़ा रहता है या नदियों में बह जाता है। देखा जाए तो प्लास्टिक कचरे का बड़ा भाग यानी छठा हिस्सा भारत के साठ बड़े शहरों से पैदा होता है।

भारत में कई राज्यों में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के फरमान तो जारी किए गए हैं लेकिन फिर भी सरकार की नाक तले धड़ल्ले से प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि भारत सरकार ने देश के खतरनाक अवशिष्टों के प्रबंधन और आयात से जुड़े नियमों (हैज़ारड्स एंड अदर वेस्ट्स ( मैनेजमेंट एंड ट्रांसबॉउंडरी मूवमेंट रूल्स, 2015) को संशोधित करके एक मार्च 2019 को ठोस प्लास्टिक कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन फिर भी कई मामलों में प्लास्टिक कचरे के आयात की छूट अभी भी मिल रही है।

प्लास्टिक कचरे के दुष्परिणाम

प्लास्टिक कचरे से आज पूरा विश्व परेशान है इससे हमारी नदियां, पर्यावरण, और पारिस्थितिकीय तंत्र गंभीर रूप से विषाक्त हो रहा है। प्लास्टिक का कचरा इतना जटिल होता है जो कभी नष्ट नहीं होता जिस वजह से समुद्र में ये कचरा जाने पर प्रत्येक वर्ष 10 लाख से ज्यादा समुद्री जीव अपनी जान गवां देते है। प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ जिसे अगर मिट्टी में दबा भी दिया जाए तो मिट्टी में न घुलने के कारण भूमि में जाकर जल को भूमि में शोषित होने से रोकता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती है। प्लास्टिक को सही तरीके से नष्ट न किए जाने से प्लास्टिक में मौजूद रसायन भूमि में चले जाते हैं और मिट्टी व भूमिगत जल को विषैला कर देते हैं। और यदि प्लास्टिक नालियों या पाइपों में जाम हो जाए तो जल निकास प्रणाली में अवरोध पैदा करते हैं। अलकोहल के रूप में बने कार्बोनेट ऐस्टर नामक रसायन और कैडमियम व जस्ता जैसी विषैली धातुओं का इस्तेमाल खाद्य पदार्थों से मिलकर कैंसर के खतरे को बड़ा देता है। पॉलीऐथिलीन, पॉलीप्रोपीलीन और टेरेफ्थैलेट प्लास्टिक के विभिन्न रूप हैं जो सूक्ष्म कणों के रूप में वायु, जल और भोजन के साथ शरीर में प्रवेश करके प्रतिरोधी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक कैमिकल बीपीए शरीर में विभिन्न स्त्रोतों से प्रवेश करता है। एक अध्ययन में पाया गया कि 6 साल से बड़े 93 प्रतिशत अमेरिकन जनसंख्या प्लास्टिक केमिकल बीपीए को अवशोषित कर लेती है (पहले जान लें कि ये बीपीए प्लास्टिक क्या होता है?  कुछ किस्म के प्लास्टिक साफ और कठोर होती है, जिसे बीपीए बेस्ड प्लास्टिक कहते हैं, इसका इस्तेमाल पानी की बॉटल, खेल के सामान, सीडी और डीवीडी जैसी कई वस्तुओं मे किया जाता है)। अरबों पाउंड प्लास्टिक पृथ्वी के सभी स्त्रोतों में पड़ा हुआ है। जिसे नष्ट होने में 500 से 1000 साल तक का समय लग सकता है। 50 प्रतिशत प्लास्टिक तो हम केवल एक बार में प्रयोग करके ही फेंक देते हैं। लेकिन इसके उत्पादन में पूरे विश्व के 8 प्रतिशत तेल की खपत होती है। प्लास्टिक नॉनबॉयोडिग्रेबल होता है यानीकि ऐसा पदार्थ जो बैक्टीरिया द्वारा ऐसी अवस्था में नहीं पहुंचते जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान न हो।

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प्लास्टिक कचरे की रि-साइकलिंग बेहद ज़रूरी है, प्लास्टिक बैग्स बहुत ही ज़हरीले कैमिकल्स से मिलकर बनते हैं। जिसमें जायलेन, इथिलेन ऑक्साइड और बेंजेन जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल होता है। इन केमिकल्स से कई तरह की बिमारियां और कई तरह के डिसॉडर्स हो जाते हैं। यहां तक कि प्लास्टिक को जलाने या फेंकने से भी ज़हरीले केमिकल्स निकलते हैं। फल, सब्जियां, बच्चों के दूध पीने की बोतलें, दूध के पैकेट, पानी की बोतलें, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, चिप्स, बिस्किट्स व अन्य खाद्य पदार्थ पूरी तरह प्लास्टिक पर निर्भर हैं। कुछ समय के बाद प्लास्टिक की वस्तुओं से बिसफिनोल रिसने लगता है जो कि इन खाने वाली चीज़ों के साथ मिलकर हमारे शरीर में पहुंच जाता है।। ‘अमेरिकी फेडरल प्रशासन’ के अध्ययन के अनुसार बिसफेनोल, जिससे प्लास्टिक बनता है प्रत्येक बच्चे, युवा, वृद्धि के शरीर में पाया जाता है जिसका प्रभाव हमारी कई पीढ़ियों तक पड़ता है।

प्लास्टिक का खतरा पूरे विश्व में परमाणु खतरे से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है। इसे रोकने के लिए सिर्फ सरकार पर ही निर्भर रहना सही नहीं है इससे होने वाले नुकसान के बारे में जन-जागृति फैलाकर हमें काफी समाधान मिल सकते है। प्रत्येक को अपना उत्तरदायित्व निभाना होगा। प्लास्टिक के उत्पादों पर तत्काल प्रभाव से पूर्णता प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।

 हमे अब ज़रूरत है इस मुद्दे पर बात करने की….इसके लिए आप सबका साथ चाहिए इसलिए अगले लेख में हम प्लास्टिक के उपयोग को कम से कम इस्तेमाल करने के लिए कुछ टिप्स आपके सामने पेश करेंगे…,तब तक आप प्लास्टिक कचरे से बचने के लिए अपने भी कुछ विचार हमारे साथ सांझा कर सकते हैं ताकि “# Say Good Bye to Plastic” की  मुहिम को आगे बढ़ाया जाए।

धन्यवाद

संपादक- मनुस्मृति लखोत्रा

To be continued …….

(इस आलेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्त्रोतों से ली गई है जिसका उद्देश्य प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के प्रति जागरुकता फैलाना है ताकि पर्यावरण और जन-जीवन को सुरक्षित रखने में मददगार साबित हो सके)