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Way to Spirituality: कैलाश पर्वत के अदभुत रहस्य जिन्हें वैज्ञानिक भी नही सुलझा पाए, जानिए क्या हैं वो रहस्य ?

अध्यात्म डैस्कः हिमालय की गोद में बसा आस्था और विश्वास का प्रतीक अद्वितीय, अजेय व रहस्यमयी कैलाश पर्वत ! जिसे शिव का स्थान भी कहा जाता है। जिस पर भक्तों की अटूट श्रद्धा व विश्वास है। मानो या न मानो लेकिन ये पर्वत और आसपास का वातावरण अदभुत रहस्यों से भरा है। कैलाश पर्वत धरती का केन्द्र यानि एक्सिस माना जाता है जो कि सृष्टि के सभी जीव जन्तुओं को जीवित रखने के लिए वातावरण को बनाए रखता है। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 6638 मीटर है। ये पर्वत दुनियां का सबसे ऊंचा पर्वत भले ही न हो लेकिन इसकी भव्यता इसकी ऊंचाई से नहीं बल्कि इसके आकार में है, जी हां शिवलिंग के आकार का ये पर्वत स्वयं में ही एक मंदिर हैं।

इसी कैलाश पर्वत के पास स्थित है कैलाश मानसरोवर। हमारे पुराणों जैसे शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अध्याय हैं। इन अध्यायों में कैलाश पर्वत की महिमा के बारे में वर्णन किया गया है।

आईए जानते हैं कैलाश पर्वत के कुछ अदभुत रहस्यों के बारे में।

  • कैलाश पर्वत की चोटी दिशा दिखाने वाले कंपस की तरह है इसी वजह से यहां से चार नदियों का उदगम भी हुआ है। जिनके नाम हैं ब्रह्मपुत्र, सिंधू, सतलुज और घाघरा जो पूरे विश्व के चार भागो को दर्शाती हैं। ध्यान से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कैलाश की चारों दिशाओं में जानवरों के मुख बने हुए हैं जिनमें से नदियों का उद्गम होता है। पूर्व में अश्वमुख, पश्चिम में हाथी का मुख, उत्तर में सिंह का मुख और दक्षिण में मोर का मुख नज़र आता है। माना जाता है कि कैलाश पर्वत की चोटी पर इंसान और भगवान का मिलन होता है लेकिन आज तक कोई भी सफलतापूर्वक इसकी चोटी पर नही चढ़ पाया है। जिन पर्वतारोहियों ने इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की उनका कहना है कि वो अक्सर आंधी-तूफानों के कारणवश खो गए थे। ऐसा लगता था जैसे कैलाश पर्वत अपनी जगह बदल रहा है और ह्दय की गति का बढ़ना और अचानक से मन में वापिस लौट जाने जैसे विचार आने लगे थे।

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  • कैलाश पर्वत पर चढ़ना वर्जित है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध संत मिलारेपा ने इस पर्वत पर चढ़ाई कर ली थी, लेकिन वापिस आने के बाद वो ज्यादा कुछ नहीं बोले। इसीलिए ये भी एक रहस्य ही बना हुआ है। कहा जाता है इसके बाद में कैलाश पर्वत ने अपनी स्थिती बदल ली थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट ‘यूएनस्पेशियल’ मैग्ज़ीन के 2004 के जनवरी अंक में छपी थी।

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  • रूस और अमेरिका द्वारा किए गए कई शोध और अध्‍ययन में ये बात सामने आई है कि इस पर्वत शिखर पर ही दुनिया का केंद्र है और इसे एक्सिस मुंडी के नाम से जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि ये दुनियाभर की अनेक इमारतों से जुड़ी हुई है जो स्‍टोनहेंगे जोकि इससे 6666 किमी दूर हैं और उत्तरी ध्रुव भी यहां से 6666 दूर है एवं शिखर से दक्षिणी ध्रुव भी 13332 किमी दूर है। वेदों में कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का अक्ष और विश्‍व वृक्ष कहा गया है एवं इसी बात का जिक्र रामायण में भी किया गया है।
  • यहां रहने वाले धर्मगुरुओं का मानना है कि यहां पुण्य आत्माएं निवास करती हैं व चारों ओर एक आलौकिक शक्ति का प्रवाह है। यहां पर तपस्वीं अपने आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथी द्वारा संपर्क करते हैं।
  • वैज्ञानिकों का दावा है कि इसी स्थान पर हिम-मानव भी पाया जाता है जिसे येति मानव भी कहा जाता है। जो कि बहुत ही विशाल होता है और इंसानों को मारकर खा जाता है।

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  • इस स्थान पर दो रहस्यमयी सरोवर हैं एक मानसरोवर और दूसरा राक्षस ताल। मानसरोवर दुनियां की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है जिसका पानी मीठा है जिसका आकार सूर्य के समान है। दूसरी तरफ राक्षस ताल का पानी खारा है जिसका आकार चन्द्र के समान है। ऐसा माना जाता है कि ये दोनों झीलें सकारात्मकता और नकारात्मकता का प्रतीक हैं।
  • जब सूर्य की पहली किरण कैलाश पर पड़ती है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वास्तिक का चिह्न बना हुआ है।

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  • यहां दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों का कहना है कि यहां निरंतर एरोप्लेन के उड़ने की आवाज़ आती रहती है लेकिन अगर ध्यान से सुनें तो डमरू के बजने और ओम की ध्वनि की आवाज़ सुनाई देती है। लेकिन इस पर वैज्ञानिकों का मानना है कि ये आवाज़ बर्फ के पिघलने की भी हो सकती है। वहां जाने वालों का यह तक कहना है कि कई बार अचानक कैलाश पर्वत के ऊपर सात तरह की लाइटें दिखाई देती हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि हो सकता है कि ऐसा इसलिए हो रहा हो कई बार चुम्बकीय बल आसमान से मिलकर ऐसी रोशनियों का निर्माण करता हो। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी पर्वत के पास कुबेर की नगरी स्थित है और यहीं से भगवान विष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर जा गिरती है जहां से भगवान शिव उन्हें अपनी जटाओं में भरकर धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं, और ये भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक हैं।