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Way to Spirituality: आपकी ज़िंदगी की चाबी किसके हाथ ? जानिए

ज़िंदगी और हमारे बीच एक जीवंत संवाद होना चाहिए जहां निराशा और अवसाद की काली रेखाएं हमें छू तक न सकें…ये माना कि आपकी ज़िंदगी में कई तरह की परेशानियां हैं…परेशानियां किसकी ज़िंदगी में नहीं होती…सबकी ज़िंदगी में होती हैं…फर्क सिर्फ इतना है कई लोग अपनी परेशानियां बता देते हैं और कई बता ही नहीं पातें…और जो बता ही नहीं पाते उनकी परेशानियां दूसरों से ज्यादा खतरनाक और विषैली होती हैं….अंदर ही अंदर विष बनाने का काम करती रहती हैं….और ऐसे में जानलेवा तक हो जाती हैं….। मेरा मानना है कि हमें रोज़ाना अपनी लाइफ में कुछ ऐसा करना चाहिए जो हमें निराशा से आशा की ओर ले जाए। इसका सबसे अच्छा विकल्प आस्था, भक्ति, मेडीटेशन तो है ही लेकिन अपने आप से संवाद भी कई तरह की मुश्किलों से आपको उबार सकता है। वो कैसे आइए जानते हैं।

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Manusmriti Lakhotra, Editor – theworldofspiritual.com

लेकिन इसके लिए सबसे पहले अपने चेहरे पर एक प्यारी सी और मीठी सी मुस्कान लाएं क्योंकि मुस्कान का कोई मोल नहीं हैं, तो हंस दीजिए…हां…ये हुई न बात….अब मुझे लग रहा है आधा तनाव तो आपका गायब ही हो गया होगा…अब ज़रा गौर से नीचे दिए गए प्रश्नों को पढ़ें….लेकिन मुस्कुराहट आपकी ग़ायब नहीं होनी चाहिए….हाहा।

देखिए, जब भी आप तनाव में आएं तो सबसे पहले कुछ प्रश्न अपने दिलो-दिमाग से ज़रूर पूछें, यक़ीन मानिए आपका मन आपके प्रश्नों के उत्तर आपको तुरंत देगा..। जैसे…

  1. ये ज़िंदगी किसकी है ?

उत्तरः आपको अपने भीतर से ही जवाब मिलेगा कि ‘आपकी’।

  • फिर अपने मन से पूछें कि मेरी ज़िंदगी पर किसका अधिकार है ?

उत्तरः फिर आपके भीतर से आवाज़ आएगी कि ‘आपका’

  • फिर अगला प्रश्न अपने दिल पर हाथ रखकर पूछें कि मुझे किसके लिए जीना है अपने लिए के परेशानियों के लिए ?

उत्तरः फिर भीतर से आवाज़ आएगी कि ‘अपने लिए‘।

  • फिर अंतिम प्रश्न आईने के सामने खड़े होकर पूछें कि मेरे अंदर काम कर रहा दिल, दिमाग, मेरी सांसे, मेरी रगों में बह रहा लहू, मेरा चेहरा, मेरी खूबसूरती, मेरे सुंदर बाल, मेरे अच्छे विचार, मेरे शरीर के द्वारा की गई मेहनत, लग्न, पढ़ाई, मेरा अच्छा खान-पान, मेरे अच्छे कपड़े, मेरी पत्नी या पति, मेरे दोस्त, मेरे बच्चे, मेरा समाज में रुतबा, मेरे संस्कार, मेरा कमाया धन-संपत्ति आदि ये सब किसका है, किसने दिया, क्यों दिया, मुझे ये सब क्यों चाहिए, मुझे इनके लिए क्या करना है ?

उत्तरः फिर आपको पता है आपका मन क्या उत्तर देगा ?…अरे पगले, ये सब तो तुझे तेरे पैदा होते ही भगवान की ओर से उपहार के तौर पर मिला था….लेकिन तूने कद्र न की…..तूने भगवान की ओर से मिले उपहारों को तनाव, परेशानी, चिंता, दुख, कष्ट, निंदा, बिमारी, डिप्रेशन, नफरत, अहंकार, क्रोध, बदले की भावना आदि के हवाले कर दिया। भगवान ने तो जब तुम्हें ये सौगातें बख्शी थी एक-दम दुरुस्त और सही सलामत दी थी, लेकिन तूने इनकी कद्र नहीं की। यानि अपनी ही ज़िंदगी की चाबी तूने परेशानी, दुख, तनाव, लालच, क्रोध, अहंकार व दूसरों के हाथों सौंप दी और अब तू रोता है….ये सब दोष तुझ पर इतने हावी हो गए कि तू इनके हाथों कमज़ोर होता गया और भगवान के दिए उपहारों की तू कद्र न कर सका…और धीरे-धीरे भगवान की और से मिले तोहफे तेरे हाथों फिसलते चले गए….अब तू सिर्फ बिमारियों का ढेर बनकर रह गया है। अब भी समय है उठ मोह-माया, चिंता-फिक्र, रिश्ते-नातों से अपना मन हटा कर ईश्वर की ओर से दिए तोहफों को तू किसी अच्छे काम में लगा, अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान दे…देखिए जैसे किसी की ओर से मिला तोहफा हमें कितना प्यारा होता है….तो फिर भगवान की ओर से एक इंसान को मिले बेशकीमती तोहफे हमें कितने संभाल कर रखने चाहिए थे लेकिन हमने उनका क्या किया ? जब किसी बड़ी बिमारी से घिर जाओगे तो अस्पताल आपको ही जाना पड़ेगा, ऑपरेशन या तीव्र वेदना से आपको ही गुज़रना पड़ेगा। तब परिवार के लोग भी आपकी पीड़ा नहीं ले पाएंगे सिर्फ पास खड़े आंसू बहाएंगे। इसलिए अपने शरीर के भीतरी अंगो को स्वस्थ रखना भी उतना ज़रूरी है जितना बाहर से अपना चेहरा संवारना। इसलिए योग, मैडीटेशन, सैर, आस्था, भक्ति, भजन, संतुलित व सात्विक खानपान, नेक विचार ऐसी औषधियां हैं जो शरीररूपी भूमि को उपजाऊ रखने के लिए अति आवश्यक है।  

मैने आपसे इस लेख के ज़रिए जो बातें कही ये सब मेरे अपने विचार हैं, हो सकता है कई मेरे मित्र इनसे सहमत न भी हों, इन सब विचारों को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी समझा जा सकता है लेकिन यदि आपकी भगवान में आस्था है तो भी ये बातें वैचारिक तौर पर भी कहीं न कहीं आपको स्वस्थ रखने और निराशा से दूर रखने का एक छोटा सा प्रयास है। इसे अमल करें और अपने आपको स्वस्थ रखें।

धन्यवाद, आपकी शुभचिन्तक, मनुस्मृति लखोत्रा