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Happiness is Free: आपका बचपन किन कमियों के साथ गुज़रा इससे फर्क नहीं पड़ता, अगर आप आज भी उन कमियों से उबरने लायक नहीं हुए इससे फर्क पड़ता है !

हो सकता है आप में से बहुत से ऐसे मित्र हों जिन्हें आज भी लगता है कि उनका बचपन अच्छा नहीं गुज़रा, चाहे वो घर की आर्थिक तंगी के कारण रहा हो या पारिवारिक माहौल अच्छा न होने की वजह से रहा हो, चाहे शिक्षा के मामले में कमी की वजह से रहा हो या फिर आपको ऐसा लगता हो कि बचपन में आपको किसी ने समझा ही नहीं और  न ही बचपन में किसी ने आपके सपनों को पंख लगने दिए, नहीं तो आप आज कुछ और होते, या फिर एक ये भी बड़ा कारण हो सकता है कि घर में मां-बाप का आपस में झगड़ा आपके मानसिक विकास में बाधा रहा हो, हो सकता है उनके आपसी झगडों का सारा गुस्सा आप पर भी उतरता हो, जिस वजह से आप आज तक आहत हों…खैर, वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन अगर आपको आज भी कुछ ऐसी ही बातें अंदर ही अंदर चोट पहुंचाती हैं तो आप अपने साथ सही नहीं कर रहे हैं।

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Manusmriti Lakhotra,
Editor : theworldofspiritual.com

इन्हीं सब बातों की उधेड़-बुन के बीच आज भी जब आप पीछे मुड़कर देखते होंगे तो कहीं न कहीं हो सकता है आप आज भी बेचैन हो जाते होंगे। हां हममें से बहुत से ही क्यों ज्यादातर मित्र चाहे वो महिलाएं हों या पुरूष, ऐसे हैं जो बचपन में हुई पारिवारिक हिंसा का शिकार हुए होते हैं, जिसका असर उनकी परसॉनैलिटी पर तो पड़ता ही है साथ ही अतीत उनका हमेशा पीछा करता रहता है…आज आप अगर 25 या 30 बरस की उम्र के पड़ाव में हैं, या उससे भी अधिक…. और अपने परिवार के साथ अलगाव महसूस कर रहे हैं….आपकी यही भटकन और अलगाव आपको उनसे दूर रहने पर मजबूर कर रही है या आपका आहत हुआ बचपन आपको आज भी सता रहा है….तो बस अब हमने आपके भीतर छुपी दुखती रग को पहचान लिया है और आज हम इसी कड़ी पर बात करेंगे, क्योंकि इस एक कड़ी के साथ बाकी बहुत सी कड़ियां जुड़कर हमें भीतर से कठोर बना रही है, जिससे बचपन से जवानी तक आते-आते हम अकेलापन और तनाव का शिकार हो जाते हैं और अपने ही परिवार से कट जाते हैं, असल में हमें ऐसा नहीं बनना है भई…। हमें अपने आप को अकेलेपन, तनाव और डिप्रेशन की खाई में धसने नहीं देना है, जो हमारे बस में है उन्हें बेहतर से बेहतरीन बनाना है।

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इस बारे में अपना एक छोटा सा एक्सपीरिएंस आपके साथ सांझा करना चाहती हूं।  काफी साल पहले की बात है…तब मेरे ख्याल से साल 2009 था। उस वक्त मुझे चंडीगढ़ में एक अच्छे अखबार के लिए काम करने का मौका मिला, तब बतौर स्टिंगर काम किया करती थी…उन दिनों स्टोरी की कवरेज के लिए मेरा एक अंधविद्यालय में जाना हुआ, वहां जाकर सुनने में आया कि यहां 21-22 साल की दो युवतियां हैं जो कि कमाल का गाती हैं आप एक बार उन्हें सुनिएगा ज़रूर, हो सके तो उनको कवर कीजिएगा..ताकि उनकी प्रतिभा को दुनियां तक पहुंचाया जा सके। मैने कहा अच्छा है, सो मैं उनसे मिलने चल दी, और जब उनके पास पहुंची तो उन दोनों का साधारण सा व्यक्तित्व और सादगी देखकर लगा नहीं था कि उनमें कोई दम-खम भी होगा, वैसे दिखने में वे दोनों बेहद सुंदर थी, कद-काठी करीब 5 फुट 6 इंच, बोलचाल में बेहद शालीन और मधुर, सिर्फ इतना ही नहीं वे दोनों स्नातक की छात्रा भी थीं, सिलाई और कढ़ाई में इतनी पारंगत कि जिससे वो कम से कम अपनी जेब-खर्ची तो निकाल ही लेती थीं। दूसरों से पता चला कि उनके घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं है लेकिन हुनर की वो बहुत धनी थीं…खैर, जब उन दोनों ने गाना सुनाया तो मेरे चेहरे पर हैरान कर देने वाले भाव थे….आज भी मुझे याद है उन्होंने जो गीत सुनाया था वो गीत था “नैनों की मत मानियों रे, नैना ठग लेंगे”…सच में उस दिन उन दोनों बेटियों ने वहां खड़े सभी लोगों के नैना ठग लिए थे। सब की नम आखों में गर्व के भाव थे…..असल में वे दोनों बचपन से ही देख और सुन नहीं सकती थी लेकिन सुर-ताल और हुनर उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था, मानों जैसे साक्षात ईश्वर ने उन्हें खूबसूरती और कला से नवाज़ा हुआ था…।

उस वक्त उन्हें देख और सुन कर मैने उनसे एक प्रश्न किया कि “क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अगर बचपन से आपके साथ सब कुछ ठीक होता तो आज आप अपनी ज़िंदगी में कहीं आगे बढ़ सकती थी ?…..उनका एक ही जवाब मेरे मन में उठ रहे कितनें ही प्रश्नों के उत्तर दे गया और मैं उनका सकारात्मक दृष्टिकोण देखकर छली की छली रह गयी… जानते हैं उन दोनों बहनों ने मुझे क्या जवाब दिया ?  उन दोनों ने एक साथ जवाब दिया कि हमारा जन्म किन हालातों में हुआ, हमारी परवरिश कैसे हुई, या किन कमियों का सामना हमें करना पड़ा ? इसका न ही तो हमें कोई मलाल है और न ही ऐसा सोचने का कोई मतलब, क्योंकि बचपन में हमारे जो भी हालात थे या जो भी परिस्थितियां थी उनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं था लेकिन आज हमारा लक्ष्य साफ है, हम अपनी दिशा तय करने और अपने हालातों को काबू कर पाने में सक्षम हैं चाहे कम ही मिले लेकिन हम संतुष्ट हैं। उनके ऐसे शब्द सुनते ही उस हॉल में तालियों की गूंज थी।

असल में ये किस्सा सिर्फ उन दो युवतियों का ही नहीं है, तंगहाली में जीता ऐसा बहुत सा हुनर किसी गली के नुकड़, गांव, कस्बे या शहर में ढेरों की तादाद में मिल सकता है लेकिन हम केवल उसी की बात कर पाते हैं जिस हुनर के बारे में हमें पता चल जाता है वरना ऐसा बहुत सा हुनर ऐसे ही गुमनाम ज़िंदगी जी रहा है लेकिन क्या आप जानते है हमारे और उनमें फर्क क्या है ?  फर्क सिर्फ इतना है उनके पास बहुत सी कमियां होते हुए भी वो हमसे कहीं अधिक सकारात्मक एवं संतुष्ट है।

आज बात यहां कमियों के साथ ज़िंदगी की जंग जीतने की हो रही है, हर हाल में खुश रहने की हो रही है, अपना रास्ता आप बनाने की हो रही है, जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण की हो रही है।

लेकिन हम और आप क्या कर रहे हैं, आहत बचपन को अपने आज के लिए ज़िम्मेदार ठहराते रहते हैं। ये क्यों नहीं सोचते कि आपका बचपन किन कमियों के साथ गुज़रा, इसमें न ही आपका कोई दोष था और न ही उन हालातों पर आपका नियंत्रण तो फिर दुख कैसा ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका बचपन कैसा था ? अगर आप आज भी उन कमियों से उबरने लायक नहीं हुए इससे बहुत फर्क पड़ता है। ज़िंदगी की शुरुआत कैसी भी मिली हो लेकिन आपमें हार न मानने का जज़्बा कितना था ये ज्यादा मायने रखता है ? इसलिए जीतने की आग को हमेशा ज़िंदा रखे, ज़िंदगी की खराब शुरुआत को जीत में बदलने का दम रखें, देखना सुकून मिलेगा।

(असल में तनाव और डिप्रेशन के बीच ज़िंदगी जीने के सौ बहाने ढूंढे जा सकते हैं, और ऐसे कितने ही अपने उन प्यारे दोस्तों को एक लेख के ज़रिए भी सहारा दिया जा सकता है जो तनाव और निराशा से बाहर नहीं आ पा रहे हैं, जिन्हें सचमुच प्रेरणा की ज़रूरत है। मेरी इसी छोटी सी कोशिश में आप सबसे गुज़ारिश है कि हमारी वेबसाइट को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब ज़रूर करें। मुझे यदि कोई सुझाव देना चाहें तो आप मुझे ईमेल कर सकते हैं, मेरी ईमेल आईडी हैः- [email protected] )

धन्यवाद, आपकी शुभचिंतक, मनुस्मृति लखोत्रा

Image courtesy- Pixabay