“श्री कृष्ण” ये नाम व व्यक्तित्व अपने आप में ही संपूर्णता का प्रतीक है…जिनके प्रति जनमानस की अथाह श्रद्धा, प्रेम, समर्पण, भक्ति व अन्य जितने भी भाव हम अपने अंतर्मन में उनके लिए महसूस करते हैं ऐसे ही नहीं हैं….वो 16 कलाओं से परिपूर्ण थे… उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया वो जनमानस के लिए जीवनसंदेश है….वो उस समय के युग प्रवर्तक थे जिनसे हम आज भी प्रेरणा लेते हैं……यहां तक कि मानव जीवन के जितने भी आयाम है वो कृष्णावतार में है अन्य किसी अवतार में नहीं।

ऐसी कौन सी कला है जो उनमें नहीं……उन्हें चितचोर ऐसे ही नहीं कहा जाता….जिस किसी रूप में भी हम श्री कृष्ण की आराधना करते हैं, उनसे प्रेम करते हैं, उन्हें याद करते हैं…..वो उसी रूप में ही हमें नज़र आते हैं व हमारा दिशानिर्देश करते हैं……क्योंकि उनकी छवि और व्यक्तित्व ही ऐसा है जिन्हें ढूंढने हमारा मन एकाएक वृंदावन और मथुरा की गलियों में उनकी निशानियां और यादें खोजने चला जाता है, जहां कभी श्री कृष्ण ने बाल-लीलाएं की थी, जहां वो गाय चराने जाया करते थे, जहां उनकी बांसुरी की धुन में सारा वातावरण कृष्णमयी हो जाया करता था….जहां गोपियां बेसुध होकर कान्हा, कान्हां पुकारती दौड़ती आती थी….जहां श्री कृष्ण राधा संग वक्त बिताया करते थे….जहां मां यशोधा श्रीकृष्ण की नटखट लीलाओं से बलीहारी जाती थी….जहां श्रीकृष्ण ने गोपियों संग रास लीला रचायी थी…..ये सोचकर श्रीकृष्ण को देखने, जानने और महसूस करने की भावनाएं और भी अधिक तीव्र हो जाती हैं।

नीधिवन, द्वारका, मथुरा और वृंदावन से श्रीकृष्ण काल की मिली निशानियां, उस वक्त के पत्थर, पहाड़, पेड़, यमुना के घाट, जहां-जहां श्री कृष्ण के पद्चिह्न पड़े वो रास्ते और आसमान से निहारते चांद, सूरज तारे… मानों ऐसा लगता है जैसे मानवीय रूप में हों और उनकी खुशकिस्मती तो देखिए उन्होंने श्री कृष्ण को देखा होगा, उनके स्पर्श को महसूस किया होगा…जिनके पास से श्री कृष्ण गुज़रे होंगे…जिन्होंने उनकी आवाज़ सुनी होगी….जो उस वक्त उनकी बांसुरी की धुन से मंत्रमुग्ध हो जाया करते होंगे….आज भी इस बात के साक्षी हैं कि उन्होंने कभी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के अमृतरस का पान किया था…..उन्हें देखा था….ऐसा सोचकर श्रीकृष्ण को अपने अंदर तक अनुभव करने का जो आनंद है उसका अपने मुख से बखान कर पाना मुमकिन नहीं।
उनके जीवन की हरेक लीला और उनके मुख से निकला हरेक संदेश आज भी प्रेरणा बन हमारे जीवन में संचार करता है। उनकी हरेक लीला के पीछे छुपा रहस्य यदि हम जान लें तो उसके बाद कुछ और जानने की ज़रूरत नहीं….ये आप गीता सार को पढ़कर भी आत्मसात कर सकते हैं।
देखा जाए तो श्री कृष्ण का जीवन हर उस बात का विरोध करता है जो उस वक्त जनमानस के लिए सही नहीं था….जब वह पैदा हुए तो देवकी के गर्भ से, लेकिन उनका पालन-पोषण हुआ यशोदा के पास…यानि जन्में क्षत्रिय कुल में और पालन-पोषण हुआ अहीर कुल में….जिससे जात-पात की भावना खत्म करने का संदेश मिलता है…।
उसके बाद बचपन से ही कितनी ही विध्न-बाधाओं को पार करते हुए कंस का वध करते हैं, जबकि कंस उनका सगा मामा है, लेकिन इससे हमें क्या संदेश मिलता है कि अत्याचारी व्यक्ति भले ही आपका सगा ही क्यों न हो पर यदि वह अत्याचारी और अन्यायी है तो उसका विरोध करना चाहिए।
श्री कृष्ण ने अपने समय के अत्याचारी शासकों का ही विरोध नहीं किया बल्कि उन्होंने देवताओं के राजा इंद्र का भी विरोध किया…कहा जाता है कि एकबार इंद्र ने कुपित होकर ब्रज में घनघोर वर्षा की लेकिन श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की…..क्योंकि उस समय इंद्र की पूजा होती थी…हर कोई इंद्र के कोप से डरता था…..लेकिन श्रीकृष्ण का मानना था कि इंद्र वैदिक देवता हैं और गोवर्धन गोचारण और कृषि सभ्यता के देव हैं। जो कि प्रकृति से प्रेम करना सिखाता है। इस तरह श्री कृष्ण वैदिक और लौकिक दोनों अन्यायी शक्तियों का विरोध करते हैं और जनमानस की रक्षा करते हैं।
श्री कृष्ण के सखा बाल-गोपाल हैं….उनमें गहरी दोस्ती है….वे बचपन में सभी नटखट क्रीडाएं एक साथ करते हैं….उन्हीं की मदद से कृष्ण कालिया नाग और अन्यायी राजा कंस का वध करते हैं…..उनसे सच्ची मित्रता और समर्पण की प्रेरणा मिलती है।

यदि प्रेम की हम बात करें तो….प्रेम का दूसरा नाम कृष्ण ही है…..श्री कृष्ण और राधा के प्रेम से स्वच्छंद प्रेम की भावना सीखी जा सकती है….उनके प्रेम में कोई दुर्भावना नहीं थी….वो प्रेम की वो चरम सीमा थी जहां सारी दुर्भावनाएं समाप्त हो जाती हैं और वो प्रेम भक्तिरस का रूप ले लेता है….।
कहते हैं कभी-कभी गलत परंपराओं से चिपके रहना अमानविय भी हो जाता है इसलिए वे उस वक्त की धर्म संबंधी कट्टर परंपराओं को तोड़ना चाहते थे….कृष्ण महाभारत के युद्ध के प्रणेता थे….वे कौरव व पांडव दोनों का ही हित चाहते थे…..लेकिन अन्याय के खिलाफ थे….उनके अनुसार यदि अन्याय करना पाप है तो अन्याय सहना भी पाप है।
इसलिए जिसने अपने जीवन में श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए जीवन संदेशों को अपने जीवन में आत्मसात कर लिया फिर उसे कुछ और सोचने की आवश्यकता नहीं…।
धन्यवादः आपकी दोस्त मनुस्मृति लखोत्रा