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Way to spirituality: चल रे मन कहीं और चल जहां तुझे तेरे राम मिलेंगे…!

मन किसे ढूंढता है ? शायद उसे जो आपके भीतर संपूर्णता की अनुभूति करवा दे। ये संपूर्णता कैसी ?…शायद वैसी जो आपके भीतर सारी नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर परम शांति का अनुभव करवाए…ये कौन सी परम शांति जो हमें चाहिए ? शायद वैसी जो हमारे भीतर दिव्य ज्ञान की अलख जगा दे…।

सबके जीवन में अपनी ज़िंदगी को जीने के भिन्न-भिन्न मकसद हैं…..लेकिन मुझे अपनी ज़िंदगी में जो मकसद समझ आते हैं वो हैं अपने अंतर्मन को समझना….अपने भीतर विभिन्न शक्तियों को जानना और उनके दर्शन करना….आत्मा और ईश्वर से साक्षात्कार करना…अक्सर सोचती हूं कि ये क्षणभंगुर जीवन हमें मिला ही क्यों ?….हमें अपने ऊपर किस बात का गुरूर है…..हम अपने पैसे, धन-दौलत या खूबसूरती का घमंड क्यों करते हैं ? जबकि हमारी सांसों पर हमारा कोई अधिकार ही नहीं….इसकी डोर न जाने किस अद्वितीय शक्ति के हाथ में है !…वो जब चाहता है हमारे जीवन की डोर खींच लेता है…और हमारा सब कुछ यहीं धरा का धरा रह जाता है….यहां तक कि अपनी पूरी ज़िंदगी की कमायी सभी कीमती चीज़ें, जोड़ा हुआ बैंक-बैलेंस, प्रॉपर्टी के काग़ज़ात और भी बहुत सी ऐसी चीज़ें जो हमने अपने भविष्य व बच्चों के लिए जोड़ी थीं मृत्यु आने पर बता तक नहीं पाते….क्योंकि ये हमें नहीं पता कि हम कितने वर्ष तक जीयेंगे ? जीवन लीला इसे ही तो कहते हैं कि कब जीवन रूपी कच्चे धागे की डोर टूट जाएगी और हमारी सभी ख्वाहिशें यहीं की यहीं धरी रह जाएंगी….।

कई बार जीवन में आयी परिस्थितियां आपको वो सब नहीं करने देती जो आप करना चाहते हैं….ईश्वर का फैलाया माया-जाल ही इतना उलझा हुआ है कि आप न चाहते हुए भी उसमें से अपने आप को नहीं निकाल पाते…लेकिन ऐसे में फिर एक रास्ता हमेशा आपके सामने खुला होता है…जहां जब चाहे आप जा सकते हैं बशर्ते वहां जाने के लिए आपको अपने सभी सुखों का त्याग करना पड़ेगा…लेकिन वहां तक पहुंचने का जो सुकून है वो कहीं ओर नहीं…वो है अपने मन की सुनना….अपने मन को जानना….हमारा मन बड़ा ही खूबसूरत पर चंचल हैं…वो पलक झपकते ही दूसरी किसी बात की ओर भाग जाता है….लेकिन अगर उससे आप बात करेंगे….अपने मन की सारी व्यथा उसके सामने रख देंगे…तो वह स्वयं ही आपको आपके सारे प्रश्नों के उत्तर दे देगा। मन से बड़ा गुरू कोई और नहीं…मन में ही छुपी अनेक संभावनाएं हैं….मन ही ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र ज़रिया है…यहीं से होकर हे मन तुझे तेरे राम मिलेंगे…फिर देखना हे मेरे पवित्र मन तुम्हारी सभी इच्छाएं, इच्छाएं न रहकर तृप्ति में बदल जाएंगी और तुम्हारा अंतर्मन निराकार पारब्रह्म में लीन हो जाएगा…।

धन्यवाद, आपकी मनुस्मृति लखोत्रा