You are currently viewing धर्म एवं आस्थाः जब भगवान स्वयं प्रेरणा देते हैं तब होते हैं चमत्कार ! 1987 में आई रामानंद सागर की ‘रामायण’ भी क्या इश्वरीय प्रेरणा ही तो नहीं थी ?

धर्म एवं आस्थाः जब भगवान स्वयं प्रेरणा देते हैं तब होते हैं चमत्कार ! 1987 में आई रामानंद सागर की ‘रामायण’ भी क्या इश्वरीय प्रेरणा ही तो नहीं थी ?

आपने कई बार ये तो सुना होगा कि जब-जब दुनियां में पाप, अन्याय व अत्याचार बढ़ जाता है तब-तब भगवान खुद अन्याय खत्म करने स्वयं अवतार लेकर इस दुनियां में आते हैं, हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार श्री राम व श्री कृष्ण का जन्म इसका एक जीता जागता उदाहरण है। ऐसे ही जब-जब दुनियां लोभ, मोह, काम, क्रोध अहंकार में भगवान को भूलने लगती है तो भी भगवान किसी न किसी तरीके से अपना अस्तित्व याद करवा ही देते हैं। सन् 1987, एक ऐसा दौर था जब देश 1984 के दंगों के बाद से अपने कई हिस्सों में दंगों व सियासी हलचल की मार झेल रहा था, ये वो दौर था जब लोगों में एक अजीब सा खौफ और डर था, ऐसे में दूरदर्शन पर रविवार को एक धार्मिक टीवी सीरियल का प्रसारण शुरु हुआ जिसका नाम था ….”रामायण”….।

ramayan-ram-sita-1986-1472107442_835x547

जिसका निर्देशन पट-कथा लेखक व निर्देशक श्री रामानंद सागर ने किया था, मानों जैसे इस धारावाहिक का नर्माण करने की प्रेरणा उन्हें स्वयं भगवान श्री राम ने ही दी थी, जिसका आज भी कोई सानी नहीं, नहीं तो आज तक कितने ही रामायण से लेकर महाभारत तक धारावाहिक निर्देशित भी हो चुके हैं और प्रसारण भी, लेकिन जितनी लोकप्रियता और प्यार रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण को मिला उतना आज तक किसी अन्य धार्मिक टीवी सीरियल को नहीं मिला। एक वो रामायण थी जिसकी शुरुआत महान संगीतकार व गायक श्री रविन्द्र जैन की भक्तिमयी आवाज़ में एक चौपाई से होती थी…

Ramanand Sagar’s Ramayan Song 01 Ramayan Title Song

और जिसे सुनते ही हरेक का तन-मन भक्ति भाव से कुछ इस कदर भीग जाता था कि सबके हाथ खुद-ब-खुद टीवी के सामने जुड़ जाते थे और सिर नत-मस्तक हो जाता था। उन दिनों ऐसा भी सुनने में आता था कि सिर्फ रामायण देखने के लिए लोग अपने जरूरी काम तक स्थगित कर दिया करते थे, जिनके घरों में टीवी नहीं था वो लोग अपने आस-पड़ोस के घरों में जाकर रामायण देखा करते थे और कई श्रद्धालू-जन गरीब लोगों के देखने के लिए उस दिन गली-आंगन में टीवी भी लगा दिया करते थे, रामायण के प्रति लोगो में इस कदर श्रद्धा भाव था कि ट्रक ड्राइवर तक रास्ते में ट्रक रोक कर किसी भी ढाबे में जाकर रामायण देखने रुक जाया करते थे। घरों में बक़ायदा प्रसाद तक बनाया जाता था और एपीसोड खत्म होने पर सबमें बांटा जाता था।

11_56_590455819hero-ramayan2-ll

रामानंद की रामायण के किरदारों पर सच में दैविय रूप चढ़ आया हो जैसे, दिखने में कितने ही रूपवान, ओजस्वीं, और इतने सधें हुए दिखाई देते थे, जिनकी लाजवाब एक्टिंग, और दिल को छूने वाले प्रसंगों को निभाते हुए वे मानों असली रामायण के जीवंत पात्र प्रतीत होते थे। सबसे लोकप्रिय किरदार श्री राम का निभाने वाले कलाकार ‘अरुण गोविल’, जिन्होंने अपने किरदार को इतने खूबसूरत तरीके से निभाया कि मानों स्वयं श्री राम आकर उस किरदार में बस गए हों।

https://www.youtube.com/watch?v=NQsh3D_Pu8E   

sita viyog

रामायण में काम करते-करते उन्हें इतनी प्रसिद्धी मिली कि लोग उन्हें श्री राम ही कहकर पुकारने लगे। आज भी यदि आंखें बंद करके श्री राम को याद किया जाए तो उन्हीं का चेहरा आंखों के सामने आ जाता है। देवी सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका चिल्खिया पर तो जैसे स्वयं माता सीता की कृपा ही हो गई थी न केवल सीता-राम बल्कि रामानंद जी की रामायण के हर किरदार एकदम रामयुग की याद दिलाते नज़र आए। उनके अन्य पात्र भले ही महाराजा दशरथ हों या उनकी महारानियां, जनकराज, भरत, लक्ष्मण, क्षत्रुघन, हनुमान, सुमंत, रावण, कुंभकरण, मेघनाथ आदि सभी किरदार असली ही लगते थे। सिर्फ इतना ही नहीं बैकग्राउंड-म्यूजिक, शानदार डायलॉग व डायलॉग डिलीवरी, लोकेशन, सैट, कोस्ट्यूम आदि देखकर यही लगता था कि मानों उस वक्त रामानंद सागर जी को रामायण के निर्माण के लिए स्वयं श्री राम की प्रेरणा और आदेश से पूरी कायनात मदद करने लग गई थी, उनकी रामायण के कलाकारों का शानदार अभिनय ऐसा कि जब रामायण के किसी भी एपीसोड में किरदार हंसते तो उनके साथ दर्शक भी हंसते, जब वो किरदार किसी सीन में रोते तो दर्शक भी रोते….उस धारावाहिक पर और उनके कलाकारों पर भगवन की ऐसी कृपा हुई कि आज भी उन सभी को लोग भक्तिभाव की दृष्टि से ही देखते हैं और उनके चरण तक स्पर्श करते हैं।

mqdefault (1) hqdefault (1)

मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर जब धरती पर इंसानो को भेजता है न, तो उनमें से 100 में कुछ एक ऐसे लोगों को भी भेजता है जो उनके अपने सेवक ही होते हैं, जिन्हें वे कुछ खास गुण व प्रतिभा देकर भेजते है ताकि वो धरती पर जाकर उन गुणों एवं कलाओं द्वारा आम जनता का भला कर सकें, उन्हें प्रेरणा दे सकें, उनकी मदद कर सकें। ऐसा उन्हें भी नहीं पता होता कि उनके अंदर जो विशेषताएं हैं वो क्यों हैं ? लेकिन समय आने पर भगवान उन्हें खुद-ब-खुद उस ओर मोड़ देते हैं जिसके लिए उनका जन्म हुआ होता है। शायद रामानंद सांगर भी उन्हीं में से एक थे, और उनके द्वारा बनाए गए धार्मिक टीवी सीरियल्ज़ के कुछ खास किरदार भी, तभी तो वे रामायण, महाभारत, जय श्री कृष्णा जैसे महान धारावाहिकों में इतनी प्रसिद्धी पाने के बाद भी फिल्मों में सफल नहीं हो पाए। जनता में उनकी छवि इस कदर बस गई थी कि उनमें वो भगवान के दर्शन ही करने लगे, उस छवि के अलावा वो उन्हें किसी और छवि में देखना पसंद ही नहीं कर पाए। यदि वे कोई धार्मिक टीवी सीरियल, धार्मिक कार्य या अनुष्ठान में भाग लेते तो उन्हें वहां मान-सम्मान, दौलत-शोहरत व ईश्वरीय कृपा मिलती अन्यथा और कहीं नहीं। इसलिए ज्यादातर किरदारों की बाकी जिंदगी धार्मिक कार्यक्रमों व प्रवचनों में ही गुजरने लगी व कईयों ने टीवी व फिल्म लाइन से दूरी बना ली। मानो या न मानों ऐसा कुछ तो ज़रूर है !

maxresdefault (1)hqdefaultmaxresdefault (2)

क्या आपको भी ऐसा नहीं लगता कि भगवान ने स्वयं रामानंद सागर जी को उसी तरह इसे बनाने के लिए प्रेरित किया होगा जैसे कभी स्वयं ब्रह्मा जी ने महर्षि वाल्मीकि को रामायण लिखने के लिए प्रेरित किया था, जैसे स्वामी तुलसीदास जी को श्रीरामचरितमानस लिखने की प्रेरणा मिली होगी, जैसे उन्होंने रामचरितमानस को आम जनता की भाषा में लिखकर जन-जन के लिए सुलभ ग्रन्थ का निर्माण किया, ठीक वैसे ही रामानंद सागर जी ने भी रामायण को साधारण बोलचाल की भाषा में बनाकर इसे कालजयी धारावाहिक बना दिया। जिसका आलम ऐसा कि ये सीरियल आज भी जब टीवी में आता है देखने वालों में उतनी ही आस्था नज़र आती है। रामानंद सागर ने कुछ फिल्मों, कई टेलिविजन कार्यक्रमों और धारावाहिकों का निर्देशन और निर्माण किया। उनके द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध टीवी धारावाहिकों में विक्रम बेताल, दादा-दादी की कहानियां, रामायण, कृष्णा, अलिफ लैला और जय गंगा मैया, आदि जैसे बेहद लोकप्रिय धारावाहिक शामिल है।

मनुस्मृति लखोत्रा