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Religion & Faith: द्वापर युग के दर्शन करवाता त्योहार, राधा-कृष्ण की हंसी-ठिठोली की याद दिलाता त्योहारः ‘होली’| Happy Holi 2020


होली….सिर्फ रंगों का ही त्यौहार नहीं बल्कि जीवन के प्रति उल्लास, उत्सव, उमंग, प्रेम और सकारात्मकता का नया दृष्टिकोण पैदा करता त्योहार है…..। अपनों पर रंग-धार की बौछार   अबीर, गुलाल का कोमल स्पर्श मन से दूरियों को कम करके स्नेह पैदा करता है….निराशा से आशा की किरण की ओर अग्रसर करता ये रंगों का त्यौहार जीवन में नवीनीकरण की प्रक्रिया है…..धर्म व आस्था से जोड़ने वाला त्योहार…हंसी, खुशी, शरारत व ठिठोली करने वाला त्यौहार….राधा-कृष्ण को अंग-संग महसूस कराने वाला त्यौहार…इन दिनों एक ओर जहां प्रकृति मीठी-मीठी गुलाबी ठंड लिए मस्ती में झूमती नज़र आती हैं…तो वहीं होली के रंगों में सराबोर सारा वातावरण राधे-राधे पुकारता हुआ कृष्णमय हो जाता है….
भारतीय संस्कृति, परंपराओं व त्यौहारों के प्रति हमारी आस्था इसीलिए ही प्रबल है…क्योंकि हरेक त्योहार कहीं न कहीं हमें सतयुग, त्रेतायुग व द्वापर युग में ले जाता है….ठीक होली में भी हमे द्वापर युग के दर्शन होते हैं….जब होली गीतों की धुन कानों में पड़ती है और दिल खुशी से झूम जाता है….
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आज भी बरसाने, वृंदावन व मथुरा की होली ठीक वैसे ही मनायी जाती है जब स्वयं श्री कृष्ण राधा संग होली खेला करते थे….। ये माना जाता है कि होली खेलने की परंपरा की शुरुआत द्वापर युग में श्रीकृष्ण के समय में हुई थी, इस बारे में कई तरह की जनश्रुतियां हैं। एक जनश्रुति के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण सांवले थे, लेकिन राधारानी गौरवर्ण की थी, इसलिए बालकृष्ण को प्रकृति के इस अन्याय से बेहद शिकायत थी कि “राधा क्यों गौरी और मैं क्यों काला” जिसकी शिकायत वो यशोधा मईया से किया करते थे और उनसे इस फर्क का कारण पूछते, इसपर एक दिन यशोधा मईया ने श्री कृष्ण को ये सुझाव दिया कि वे राधा के मुख पर वही रंग लगा दें, जिसकी उन्हें इच्छा हो, अब श्री कृष्ण नटखट तो थे ही, सो वे राधा को रंग लगाने चल पड़े। उन्होंने राधा और गोपियों पर रंग डाला, उनकी यही प्रेममयी शरारत लोगों में प्रचलित हो गई और होली की परंपरा के रूप में स्थापित हो गई।
आप सबको हमारी ओर से होली की ढेर सारी शुभकामनाए…

Editor – Manusmriti Lakhotra

This Post Has One Comment

  1. Dipti Saddar

    Good..

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