ऐ मेरे वतन के लोगो, ज़रा आंख में भर लो पानी….ये गीत आज भी उतना ही गहरा, उमदा और देश भक्ति की भावना से भीगा हुआ है जितना पहली बार सन् 1963 में गणतंत्र दिवस के सुनहरी अवसर पर लता मंगेशकर ने गाया था, कहते हैं ये गीत सुन कर पंडित ज्वाहरलाल नेहरू की आंखें भी भर आयी थी। कवि प्रदीप ने ये अमर गीत लिखा था लिहाज़ा ये गीत शहीदों के लिए श्रद्धांजलि के रूप में इतना लोकप्रिय हुआ कि कालजयी बन गया। इस गीत को संगीत दिया था सी.रामचंद्रा ने तो वहीं, सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने अपनी दिलकश आवाज़ से इस गीत को गाया था। पहली बार इस गीत को लता मंगेशकर ने 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गया था। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी उस कार्यक्रम में मौजूद थे।
ऐ मेरे वतन के लोगों
तुम ख़ूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गंवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो
जो लौट के घर न आये
ऐ मेरे वतन के लोगों …
उस वक्त इस गीत ने देश के जवानों और जनता को होसला और आत्मविश्वास देने का काम किया था , दरअसल 1962 में भारत को चीन से मिली हार के बाद देश का मनोबल गिर गया था, सैनिकों में भी निराशा का माहौल था, ऐसे में इस गीत ने जवानों को उनके त्याग, देशप्रेम, शहादत से रूबरू करवाया। इस गीत में 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों को याद किया गया है।
देखा जाए तो कितने ही यादगार देशभक्ति के गीत देकर हिंदी सिनेमा ने भी समय-समय पर देश के प्रति प्यार और जज़्बे को अभिव्यक्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सिर्फ इतना ही नहीं इन गीतों ने देश के जवानों और जनता के दिलों में भी देशभक्ति की भावना को और भी मजबूती दी….जब-जब लोगों का ध्यान देश के प्रति प्यार से भटका है तब-तब हिंदी सिनेमा एक नए देश भक्ती के गीत के साथ सोई हुई आत्मा को झकझोर कर फिर से शहीदों की कुर्बानी और सीमा पर तैनात बहादुर सिपाहियों की याद करवा देता है।
जब घायल हुआ हिमालय
ख़तरे में पड़ी आज़ादी
जब तक थी सांस लड़े वो
फिर अपनी लाश बिछा दी
संगीन पे धर कर माथा
सो गये अमर बलिदानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
जब देश में थी दीवाली
वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में
वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो आपने
थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
कोई सिख कोई जाट मराठा
कोई गुरखा कोई मदरासी
सरहद पर मरनेवाला
हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पवर्अत पर
वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
थी खून से लथ पथ काया
फिर बंदूक उठाके
दस दस को एक ने मारा
फिर गिर गये होश गंवा के
जब अन्त -समय आया तो
कह गये के अब मरते हैं
खुश रहना देश के प्यारों
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने
क्या लोग थे वो अभिमानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
तुम भूल न जाओ उनको
इस लिये कही ये कहानी
जो शहीद हुए हैं उनकी
ज़रा याद करो क़ुर्बानी
theworldofspiritual.com के सभी पाठकों को गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएं….जय हिंद…
मनुस्मृति लखोत्रा