अध्यात्म डैस्कः- जिसने जन्म लिया है उसका मरना भी निश्चित है। लेकिन हम रोजाना की ज़िंदगी में जो कर्म कर रहे हैं उसके चलते हम ये भूल जाते हैं कि ये जीवन शाश्वत नहीं है। अक्सर हमारे मन में ये सवाल आता रहता है कि मरने के बाद हमारी आत्मा कहां जाती है ?
इस बारे में सबके अलग-लग विचार है लेकिन कोई भी इस सवाल का जवाब आज तक नहीं खोज पाया। इसी सवाल से जुड़ा एक सत्य जिसके बारे में महात्मा बुद्ध ने कुछ इस तरह बताया था।
पौराणिक इतिहास में बौद्ध धर्म में एक ऐसी घटना का वर्णन है जिसमें यह स्पष्ट रूप से पता चल जाता है कि मरने के बाद जब आत्मा शरीर छो़ड़ती है तो उसका क्या होता है। एक बार की बात है जब महात्मा बुद्ध के एक शिष्य ने उनसे पूछा कि मरने के बाद जब आत्मा शरीर छो़ड़ती है तो उसका क्या होता है।
तब बुद्ध ने पूछा “पहले तुम मुझे ये बताओ कि अगर कोई तीर सीधे आकर तुम्हारे हाथ पर लगता है तो तुम सबसे पहले उस तीर को अपने शरीर से निकालोगे या ये देखोगे कि वह तीर कहां से, किस दिशा से आया है”?
इस सवाल के जवाब में उनके शिष्य ने कहा “निश्चित रूप में मैं सबसे पहले उस तीर को निकालूंगा, नहीं तो वह मेरे पूरे शरीर में जहर भर देगा”।
फिर महात्मा बुद्ध ने कहा “बिल्कुल सही, मनुष्य को अपने मौजूदा जीवन की समस्याओं को सुलझाने में अपना समय और मेहनत झोंकनी चाहिए, ना कि ये सोचने में कि अगले जन्म में क्या होगा”।
इस बारे में एक कथा और प्रचलित है। बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध एक वृक्ष के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे थे। वह आम का वृक्ष था। कुछ ही देर वहां कुछ बच्चे खेलते-खेलते पहुंच गए और जिस पेड़ के नीचे महात्मा बुद्ध ध्यान मुद्रा में बैठे थे उस वृक्ष पर पत्थर बरसाने लगे। ताकि पेड़ से आम गिरने लगें।
आम तोड़ने के चक्कर में बच्चों द्वारा फेंका गया पत्थर महात्मा बुद्ध को जा लगा और उनके माथे से खून बहने लगा। अचानक से बुद्ध की आंखें खुल गई, यह देख बच्चे डर गए और उनसे हाथ जोड़कर मांफी मांगने लगे।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद महात्मा बुद्ध की प्रतिक्रिया कुछ हैरान कर देने वाली थी। महात्मा बुद्ध रोते हुए बच्चों से बोले कि जब तुमने इस वृक्ष को पत्थर मारा तो उसने तुम्हें फल दिया, लेकिन जब ये पत्थर मुझे लगा तो मैं तुम्हें डर और भय दिखाने के अलावा कुछ नहीं दे सकता।
Image courtesy- Pixabay