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चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है : नरेन्द्र चंचल

80 का वो दशक जब एक ऐसी शख्सियत ने अपनी आवाज़ से जगराता (जागरण) की दुनियां में अपना परचम लहराया था, जब उस दौर में (पंजाब या उत्तर भारत) घरों में जगराता दरी बिछाकर आसपास के कुछ लोगों को घर में ही बुलाकर कर दिया जाता था, यानिकी तब जागरण को स्टैंडर्ड के साथ जोड़कर नहीं देखा जाता था। लेकिन नरेंद्र चंचल ने जब जागरण की दुनियां में अपना कदम रखा तो उनकी आवाज़ में मां के जयकारे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गूंजने लगे। लोगों को अपने घरों में माता का जागरण करवाने का शौंक पैदा हुआ, या कह सकते हैं कि जागरण का एक ट्रैंड शुरू हो गया। ये वो दौर था जब हर कोई यही चाहता था कि उनके घर के जागरण में नरेंद्र चंचल आकर माता की भेंटे गायें और जब नरेंद्र चंचल अपनी आवाज़ में शेरोंवाली मां को आवाज़ लगाते तो वो आवाज़ इतनी ऊंची, तीखी और बुलंद होती मानों सीधा आसमान तक गूंजती हुई शेरोवाली मां तक पहुंच रही हैं। इतने कम समय में नरेंद्र चंचल ने जो मां की अपार कृपा, लोगों की उन पर श्रद्धा पाई शायद ही और किसी ने जागरण की दुनियां या भक्ति गीतों की दुनियां में पाई होगी। ये वही दशक था जब हर किसी की सुबह उनकी आवाज़ में गायी हुई आरती व भेंटों को सुनकर ही होती थी। वो जागरण इंडस्ट्री के बेताज बादशाह नरेंद्र चंचल ही थे।

जागरण को इंडस्ट्री बनाने वाला शख्स जिन पर मां की कृपा बरसते सबने अपनी आंखों से देखी। आज भी हर जागरण के शुरू होने से पहले नरेंद्र चंचल की आवाज़ में भेंटें ज़रूर गूंजती हैं। उनके द्वारा गायी हुई भेंटें हर जागरण में कोई न कोई भक्ति सिंगर ज़रूर गाने की कोशिश करता है। लोग पूरे नवरात्रों में हर मंदिर, हर सजे हुए बाज़ारों और घर-घर में उन्हीं की आवाज़ में भक्ति गीत सुनते हैं। आज भी जब कोई भी भक्त मां वैष्णों के दरबार में दर्शन करने जाता है तो खुद-ब-खुद नरेंद्र चंचल की गायी हुई ये भेंट ज़रूर गुनगुनाता है।

 भेंट-

चलो बुलावा आया है,
माता ने बुलाया है।
जय माता दी

चलो बुलावा आया है,
माता ने बुलाया है।
ऊंचे परबत पे रानी मां ने
दरबार लगाया है॥

चलो बुलावा आया है,
माता ने बुलाया है।
जय माता दी।

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बॉलीवुड से लेकर कई जाने-माने भक्ति गायकों ने भी भक्ति गीतों व जागरण की दुनियां में कई गीत गाये लेकिन जो नाम, इज़्जत, शोहरत नरेंद्र चंचल को मिली वो किसी ओर को नहीं मिली। वो कहते हैं न कि जब मां किसी पर अपनी कृपा कर देती है तो दिनों में उस इंसान को फर्श से सीधा अर्श तक पहुंचा देती हैं। नरेंद्र चंचल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, उन्होंने एक अख़बार को इंटरव्यू देते हुए बताया था कि उन्होंने बहुत ग़रीबी के दिन भी देखे जब उन्हें एक ड्राईक्लीनिंग की दुकान पर भी काम करना पड़ा और अपने पांवों को बिना चप्पल पहने चलते देखा।

भेंट-

तुने मुझे बुलाया, शेरावालिये
मैं आया, मैं आया, शेरावालिये
तुने मुझे बुलाया, शेरावालिये
मैं आया, मैं आया, शेरावालिये

ओ, ज्योतावालिये, पहाड़ावालिये,
ओ मेहरावालिये

तुने मुझे बुलाया, शेरावालिये
मैं आया, मैं आया, शेरावालिये

भजन गाने की प्रेरणा अपनी मां से मिली

नरेंद्र चंचल का जन्म 16 अक्टूबर 1940 को अमृतसर के नमकमंडी में हुआ था. उनकी मां का नाम कैलाशवती और पिता का चेतराम दोनों धार्मिक स्वभाव के थे जिस वजह से घर में भी भक्ति का माहौल रहता था। नरेंद्र बचपन में अपनी मां को मातारानी के भजन गाते सुनते व अपनी मां के साथ ही गुनगुनाने लग जाते वहीं से उनके अंदर भी मां भगवती के चरणों में ऐसा ध्यान लगा कि उन्होंने अपनी सारी ज़िंदगी मां के नाम ही समर्पित कर दी और मातारानी ने भी नरेंद्र चंचल पर अपनी इतनी कृपा बरसाई के उनकी आवाज़ का आज भी कोई सानी नहीं।

 भेंट-

दिल वाली पालकी च,
तैन्नू मैं बिठाना ए…

चल मेरे नाल तैन्नू,
घर लैके जाना ए…

दिल वाली पालकी-च,
तैन्नू मैं बिठाना ए…
चल मेरे नाल तैन्नू,
घर लायके जाना ए…

दिल वाली पालकी-च…

उनकी आवाज़ में एक अलग तीखापन, भजन गाने नया अंदाज़, नयी तरह के सुर ही उन्हें सबसे अलग बना गए। उनकी मां भक्ति गीतों में जहां उनकी पहली गुरु थी वहीं उनके दूसरे गुरु प्रेम त्रिखा थे। उन्होंने फिल्मों के लिए भी कई यादगार गीत व भक्ति गीत गाये लेकिन इस बीच काफी समय के लिए उनकी आवाज़ चली गई थी। जब फिर से आवाज़ लौटी तो उन्होंने फिर से गाना शुरु कर दिया। जागरण और भेंटों की दुनियां को ही अपनी ज़िंदगी बना लिया।

उनकी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन उन्होंने माता पर अपनी श्रद्धा व विश्वास कभी नहीं छोड़ा। कहते हैं नरेंद्र चंचल आज भी हर साल माता वैष्णों के दरबार माथा टेकने ज़रूर जाते हैं।

भेंट-

सावन की बरसे बदरीया

सावन की बरसे बदरीया, मां की भीगे चुनरीया,
भीगे चुनरीया मां की भीगे चुनरीया,
सावन की बरसे बदरीया, मां की भीगे चुनरीया,

लाल चोला मैया का चम चम चमके,
माथे की बिंदिया भी दम दम दमके,
हांथों में झलके मुंदरीया,
मां की भीगे चुनरीया,
सावन की बरसे बदरीया, मां की भीगे चुनरीया,