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Happiness is Free: शतरंज का प्यादा बनने से अच्छा आइए अपने लिए नएं रास्ते खुद बनाएं

सबकी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव, सुख-दुख, प्यार-नफरत, मिलना-बिछड़ना जैसे अनुभव मौसम के मिजाज़ की तरह आते जाते रहते हैं, लेकिन ज़िंदगी यहीं खत्म नहीं होती, उसे निरंतर चलते रहना है। ऐसे में हमारी मानसिकता में बढ़ता स्वार्थ (selfishness), हमें अपने जीवन मुल्यों के प्रति निराशावान बना रही हैं। अगर आप किसी कंपनी या एमएनसी में जॉब कर रहे हैं तो आज एक बात अपने आप से यानि अपने अंतर्मन में सोचें कि रोज़ाना सुबह से लेकर रात तक मेरे ज़हन में क्या-क्या सवाल आते हैं ?

शायद यही कि आज किस-किस के साथ मिटिंग्स फिक्ड हैं, आज का एजेंडा क्या है, आज इतने प्रोजेक्ट्स कंपलीट करने हैं और आधे से ज्यादा तो इतनी जल्दी कंपलीट हो भी नहीं सकते।

फिर कुछ बातें नैगेटिव पक्ष की भी हमारे ज़हन में होती हैं, शायद कुछ ऐसी-

कोई नहीं अपनी बॉल किसी और के पाले में फेंक दूंगा फिर मैं तो फ्री हूं, जवाब तो उसे ही देना पड़ेगा, या मुझे कुछ भी करके अपने साथ वाले को आगे नहीं बढ़ने देना। मुझे अच्छा इनक्रीमेंट चाहिए लेकिन मेरे कलीग को मुझसे ज्यादा इनक्रीमेंट कैसे मिला ? मुझे कुछ भी करके अपने साथ वाले का प्रोजैक्ट कंपलीट ही नहीं होने देना है…बलां बलां….आदि।

ऐसी भावनाएं असल में आपकी नहीं हैं, जब भी हम किसी नईं जॉब में जाते हैं तो कुछ सपनें, कुछ हौसले, कुछ इरादे अपने साथ लेकर जाते हैं जहां आपको अपने आप को भी आज़माना होता है और अपने आपको प्रूव करके भी दिखाना होता है। नईं जगह, जईं जॉब, नईं पोज़ीशन, नयां शहर, नएं लोग, नयां माहौल, नएं कलीग्ज़, ऐसे में अपनी छवि को बनाना और कुछ कर दिखाना इतना आसान भी नहीं होता, लेकिन कॉरपोरेट पॉलिटिक्स के कुछ मंजे हुए खिलाड़ी आपको अपने प्यादे की तरह इस्तेमाल करके अपनी पोज़ीशन को स्ट्रोंग करने में लगे रहते हैं, और आप कॉरपोरेट पॉलिटिक्स के शिकंजे में कब जकड़े जाते हैं इसका अंदाज़ा आप भी नहीं लगा पाते, कुछ समय बाद आपको लगता है कि आपके ऊपर तो शतरंज के बादशाह का हाथ है, आप सेफ हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता।

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चाहे देश की राजनीति हो या कॉरपोरेट पॉलिटिक्स किसी की भी सत्ता ज्यादा देर तक नहीं चलती जब ऐसी इमारत झूठ के पुलिंदे पर खड़ी हो तो वैसे भी उसका बेस मजबूत भी कहां हो सकता है ?

ये कैसी दौड़ है जो हमारे जीवन मुल्यों और आत्म संतुष्टि को हाय-हाय की आपाधापी में कहीं गुम कर गई है। ऐसे में यक़ीन मानिए आने वाले कुछ सालों में हमारा खुद का भी सरवाइव करना मुश्किल हो जाएगा। आज अगर हम ऐसे लोगो की भीड़ में शामिल हैं जो कॉरपोरेट पॉलिटिक्स में दूसरों को अपना शिकार बनाकर राज कर रहें हैं। याद रखें एक दिन वो भी दूध में से मक्खी की तरह निकाल दियें जाएंगे। वो कहते हैं न आप जैसा बोते हैं प्रकृति भी आपको वैसा ही वापिस करती है। एक दिन आपके लिए भी अपने बच्चों को जीवन मुल्य सिखाना और सदगुणी बनाने की कामना करना मुश्किल हो जाएगा।

इसलिए हमेशा एक पेड़ की तरह बनें जो हर मौसम में चाहे गर्मी हो बरसात हो, तूफान आए या कड़कड़ाती ठंड हो वो सबका सामना भी करता है और अपनी जगह पर स्थिर और अडिग भी रहता है, अब आप सोच रहे होंगे कि पेड़ तो स्थिर ही रहेगा न, उसके कौन से पांव होते हैं, लेकिन ज़रा सोचिए मौसम के बदलते मिजाज़ का सामना करते हुए भी वो गिरता नहीं हैं जितने कई बार हम लोग अपनी ही नज़रों के सामने गिर जाते हैं। पतझड़, आंधी, तूफान में उसके पत्तें चाहे झड़ जाते हैं लेकिन वो फिर से सकारात्मकता के साथ अगली ऋतू का इंतज़ार करता है और नएं पत्तों, नईं कोपलों को पैदा करता है अपनी नई शाखाएं बनाता है जो उसका फिर से सहारा बनती हैं। ठीक वैसे ही हमें भी अपने स्वाभिमान के साथ सबको अपने साथ लेकर चलना है, नई पोज़ीशन पाने के लिए अपने जूनियर्स को खड़ा करना है ताकि आप कुछ और नया करके दिखा सकें। अपने जीवन मुल्यों को बचाकर आगे बढ़ना है न कि दूसरों को गिराकर। किसी के हाथ का प्यादा नहीं बनना है बल्कि अपनी मेहनत के दम पर नए रास्तें (नए प्रोजेक्ट्स) तैयार करके दिखाने होंगे, देखना फिर आपके ज्ञान व जावन मुल्यों को भी एक नईं दिशा मिल जाएगी।

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मनुस्मृति लखोत्रा