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श्री हनुमान जयंती स्पेशलः तो क्या यहां हुआ था हनुमानजी का जन्म ? जानिए

धर्म एवं आस्था डैस्कः धार्मिक कथाओं में आपने श्री हनुमानजी के शौर्य, निर्भयता, बल, बुद्धि और विद्धा के बारे में खूब पढ़ा और सुना होगा। श्री हनुमान की प्रभू श्री राम के प्रति भक्ति भी भक्त और भगवान की सबसे बड़ी मिसाल है। श्री हनुमान को शिवावतार अथवा रुद्रावतार भी माना जाता है।  

यदि उनके जन्म की बात करें तो ज्योतिषीयों की गणना के अनुसार बजरंगबली जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में हुआ था। हनुमानजी के पिता सुमेरू पर्वत के वानरराज राजा केसरी थे और माता अंजनी थी। हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है और उनके पिता वायु देव भी माने जाते है। राजस्थान के सालासर व मेहंदीपुर धाम में इनके विशाल एवं भव्य मन्दिर है। वे एक सच्चे सेवक, राजदूत, नीतिज्ञ, विद्वान, रक्षक, वक्ता, गायक, नर्तक, जितने शक्तिशाली उतने ही बुद्धिमान भी हैं। उनके बारे में कही जाता है कि वे अजर अमर हैं, इसलिए आज भी दुनियां में विराजमान हैं।

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एक प्रचलित कथा के अनुसार माता अंजनी अपने पूर्व जन्म में पुंजिकस्थली नाम से देवराज इन्द्र की सभा में एक अप्सरा थीं। एक बार जब दुर्वासा ऋषि इन्द्र की सभा में उपस्थित थे, तब अप्सरा पुंजिकस्थली बार-बार अंदर-बाहर आ-जा रही थीं। इससे गुस्सा होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वानरी हो जाने का शाप दे दिया। पुंजिकस्थली ने क्षमा मांगी, तो ऋर्षि ने इच्छानुसार रूप धारण करने का वर भी दिया। कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठ विरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया। उनका नाम अंजनी रखा गया। विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से कर दिया। इस रूप में पुंजिकस्थली माता अंजनी कहलाईं।

हनुमान जी को सभी देवताओं का आर्शीवाद प्राप्त था। ये भी कहा जाता है कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने एक शिला पर लिखी थी जो कि हनुमन्नाटक के नाम से प्रसिद्ध है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी रामकथा इसके बाद लिखी गई। उनके जन्म के बारे में भी एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक दिन माता अंजनी, मानव रूप धारण कर पर्वत के शिखर पर जा रही थी। वे डूबते हुए सूरज की खूबसूरती को निहार रही थीं। अचानक तेज हवाएं चलने लगीं। और उनका वस्त्र कुछ उड़-सा गया। उन्होंने चारों तरफ देखा लेकिन आस-पास के पृक्षों के पत्ते तक नहीं हिल रहे थे। उन्होंने विचार किया कि कोई राक्षस अदृश्य होकर धृष्टता कर रहा। अत: वे जोर से बोलीं, ‘कौन दुष्ट मुझ पतिपरायण स्त्री का अपमान करने की चेष्टा करता है?’ तभी अचानक पवन देव प्रकट हो गए और बोले, ‘देवी, क्रोध न करें और मुझे क्षमा करें।

आपके पति को ऋषियों ने मेरे समान पराक्रमी पुत्र होने का वरदान दिया है। उन्हीं महात्माओं के वचनों से विवश होकर मैंने आपके शरीर का स्पर्श किया है। मेरे अंश से आपको एक महातेजस्वी बालक प्राप्त होगा। उन्होंने आगे कहा, ‘भगवान रुद्र मेरे स्पर्श द्वारा आप में प्रविष्ट हुए हैं। वही आपके पुत्र रूप में प्रकट होंगे। इस तरह श्रीरामदूत हनुमानजी ने वानरराज केसरी के यहां जन्म लिया, इस बारे में एक और कथा प्रचलित है कि महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त हवि अपनी रानियों में बांटी थी उसका एक भाग गरुड़ उठाकर ले गए और उसे उस स्थान पर गिरा दिया जहां अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थी। हवि खा लेने से माता अंजनी गर्भवती हो गई और उन्होंने हनुमान जी को जन्म दिया।

हनुमानजी को जन्म स्थान के बारे में कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। मध्यप्रदेश के आदिवासियों का कहना है कि श्री हनुमान जी का जन्म रांची जिले के गुमला परमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था। तो वहीं कर्नाटकवासियों का मानना है कि उनका जन्म कर्नाटक में हुआ था। पंपा और किष्किंधा के ध्वंसावशेष आज भी हाम्पी में देखे जा सकते हैं।

श्री हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर आप सबको हमारी तरफ से ढेरों बधाईयां व शुभकामनाएं।

 इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैंजिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।