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BLOG: वामपंथ एवं दक्षिणपंथ क्या हैं ?

राजनीति में तथाकथित “वामपंथ” होता हैं, और तंत्रसाधना में भी “वामपंथ” उपस्थित है…..इन दोनों में क्या समानता है और क्या विरोधाभास है? ….. वामपंथ / वामाचार  एवं दक्षिणपंथ -दक्षिणाचार क्या हैं ?

वामा स्त्री को कहते हैं. माँ को, प्रकृति को. …….. परम पुरुष के वाम में परमा प्रकृति हैं. Adam के बायीं अंग (left ribs) से ही Eve का जन्म हुआ.

Yashendra
लेखक- राय यशेन्द्र प्रसाद
संस्थापक, आर्यकृष्टि वैदिक साधना विहार
वैदिक संस्कृति के अन्वेषक, लेखक, फिल्मकार
भू.पू. सीनियर प्रोड्यूसर एवं निर्देशक, ज़ी नेटवर्क
भू.पू. व्याख्याता ( भूगोल एवं पर्यावरण), मुम्बई

जब परमतत्व को स्वयं को एक से बहु करने की इच्छा हुयी तो वह ही ‘आद्या शक्ति’ कहलाई. यह परमा प्रकृति ही माया हैं. इस माया के कारण ही जो वस्तुतः एक हैं वे बहुत दिखाई पड़ते हैं.

इसलिए पत्नी / अर्धांगिनी का स्थान वाम में होता है.

परमपुरुष के एक से बहु होने की इच्छा के जन्म को वामा ( माया) का जन्म कहते हैं. …इसलिए आप कह सकते हैं कि वाममार्ग का जन्म भी वही हुआ. इसी स्वरुप को ‘अर्धनारीश्वर’ कहते हैं जिसमें नारी वामा है यानि बाईं ओर…

इसीलिये जो परमपुरुष की इच्छा रखते हैं वे दक्षिणपंथी हुए एवं जो वामा ( प्रकृति, भौतिक जगत, मातृक जगत, विषयोपभोग से सम्बंधित ) वे वामाचारी हुए.

एक परमपुरुष को जो ‘परिमापित’ कर ‘बहु’ करती हैं इसीलिये उन्हें ‘माँ’ कहा जाता है. इस जगत को मातृक जगत भी इसीलिये कहा जाता है क्योंकि इसका रूप ‘माँ’ /माता /Mother ने ही दिया है.. ‘मातृक’ शब्द Latin में Maeter से English में Matter एवं Mother हुआ. इसलिए वैदिक आर्यों ने जिसे मातृक जगत कहा उसे ही लोग Motherial या Material World कहते हैं.

यानि Materialistic होने का अर्थ है मातृक जगत यानि त्रिगुण-मयी प्रकृति अर्थात माया से ग्रस्त रहना, माया में आबद्ध रहना या भौतिक दुनिया को ही सत्य मानकर उसमें ही लिप्त रहना.

चूँकि प्रकृति यानि माया को ही वामा कहते हैं इसलिए इसे वामाचार अथवा वामपंथ कहते हैं. सभी भौतिक वादी एवं माया को सत्य मानने वाले लोग असल में वामाचारी या वाम मार्गी ही हैं.

कम्युनिस्ट लोग ईश्वर या अध्यात्म से सरोकार नहीं रखते. वे भौतिकवादी हैं, इसलिए ही उन्हें वामपंथ कहा गया है.

वाम-मार्ग एवं दक्षिण मार्ग इस प्रकृति /सृष्टि में ही है. जब साधक ध्यान/ समाधि में इस दृश्यमान जगत से सूक्ष्म स्तरों एवं लोकों का दर्शन करना शुरू करता है; जब उसे सूक्ष्म नाद, ध्वनि, दृश्य, गंध अनुभव होने लगते हैं ; पञ्च-महाभूत, तन्मात्राओं एवं एक-एक कर के सप्त लोकों एवं उच्चतर लोकों को भेदकर चलने लगता है तो उसे सदैव एक बात का ध्यान रखना पड़ता है…….वह यह कि बाईं ओर से आते हुए सुन्दर एवं आकर्षक चीज़ों की ओर वह ध्यान न दे ! उधर ध्यान देने का अर्थ है उसमें फँस जाना. उनमें फँसते ही प्रगति रूक जाति है. व्यक्ति उसी स्थिति को परम समझने की भूल कर उसी में लम्बे काल तक रूका रह सकता है. ………………… साधक को हमेशा अपने दक्षिण से ( ठीक दक्षिण नहीं, थोड़ा कोना-कोनी ) आते हुए दर्शन पर केन्द्रित रहना चाहिए. ……………….. इसीलिये इसमें जीवन्त गुरु की जरूरत पड़ती हैं. उनमें सक्रिय अनुरक्ति एवं आत्म-समर्पण ही वाम-लोक से बचाए रखता है.

वामपंथ, वामाचार आदि नामों के पीछे सृष्टि के कुछ ऐसे ही रहस्य छिपे हैं.

इस प्रकार, वामाचार, वामपंथ, भौतिकवादी आधुनिक विज्ञान, भौतिकवादी ( materialistic) जीवन प्रणाली, नारि (वामा) के चंगुल में फँसा पुरुष ( जैसा फिल्मों में दिखाते हैं ! ) — इन सभी में मूलतः कोई भेद नहीं है. सभी वामा ( माया ) में आबद्ध हैं ! हाँ, भेद सिर्फ स्तरों का है, काबिलियत का है. अपनी अपनी काबिलियत से ये सभी वामा ( प्रकृति) के भोग में लिप्त हैं. पर यह नहीं जानते कि असल में ये स्वयं ही वामा/ माया के द्वारा भोग किए जा रहे हैं !

” माया ( वामा) महा ठगिनी हम जानि ” !

परमपुरुष के विपरीत ही वामा है और उसका मार्ग– वाम.

राजनीति में जो दक्षिणपंथी हैं वे धर्मीय/ आध्यात्मिक मूल्यों से जुड़े हुए हैं. जो ईश्वर/परमपुरुष को अस्वीकार करते हैं वे वामपंथी हुए.

यह अंतर्राष्ट्रीय परिभाषा है. Right Wing और Left Wing/ Leftist कहा जाता है. यह एक रोचक बात है कि कहते हैं कि Adam के बाएँ अंग से Eve की उत्पत्ति हुयी.