You are currently viewing धर्म एवं आस्थाः चार तरह के ऋण लेकर पैदा होता है हरेक इंसान, धरती पर रहते हुए इन ऋणों से होनी चाहिए मुक्ति, नहीं तो भुगतने पड़ते हैं कई परिणाम ! जानिए

धर्म एवं आस्थाः चार तरह के ऋण लेकर पैदा होता है हरेक इंसान, धरती पर रहते हुए इन ऋणों से होनी चाहिए मुक्ति, नहीं तो भुगतने पड़ते हैं कई परिणाम ! जानिए

धर्म डैस्कः हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी मनुष्य के पैदा होने के साथ ही उसके ऊपर तीन प्रकार के ऋण चढ़ जाते हैं और इन ऋणों को चुकाकर ही मनुष्य को पापों व कठिनाईयों से मुक्ति मिलती है। आज के समय में बहुत ही कम लोग हैं जो इन सब बातों पर विश्वास करते हैं, लेकिन शास्त्रों की मानें तो जो व्यक्ति अपने जीवन में इन ऋणों को नहीं चुकाता है वो फिर जन्म-म़त्यू के चक्र में फंसा रहता है और कई तरह के पापों का भागीदार बनता है। ये उसे जीवन के किसी न किसी मोड़ पर उतारने ही पड़ते हैं।

pitra-sukt

वैसे तो तीन ऋण होते हैं लेकिन चौथा ऋण ब्रह्मा का भी माना गया है।

  1. पितृ ऋण
  2. देव ऋण
  3. ऋणि ऋण
  4. ब्रह्म ऋण

पितृ ऋण से मुक्ति संतान को जन्म देकर होती है। देव ऋण से मुक्ति के लिए हमें यज्ञ पूजा हवन इत्यादि करने पड़ते हैं। ऋषि ऋण से मुक्ति के लिए हमें ऋषियों को तर्पण प्रदान करना चाहिए।

इन ऋणों की वजह से और पिछले जन्म के पापों से भी मनुष्य अपने इस जन्म में दुर्भाग्य सहता है। इन ऋणों को न चुकाने से मनुष्य त्रिविध तापों का भागी बनता है। त्रिविध ताप यानिकी सांसारिक दुख, देवी दुख और कर्म के दुख मिलते है। सांसारिक दुख जैसे- ऐसे इंसान को अपने जीवन में पिता, पत्नी या पुत्र के सुख से वंचित रहना पड़ता है या फिर जो इन ऋणों के प्रभाव से अधिक ग्रसित है उसे पागलखाने, जेलखाने या दवाखाने में अपना जीवन गुज़ारना पड़ता है। दैवी दुख अर्थात इंसान को ऊपरी शक्तियों द्वारा कष्ट मिलता है। कर्म के दुख वो होते हैं जिसमें पिछले जन्म के कर्म और इस जन्म के कर्म मिलकर आपका दुर्भाग्य बढ़ा देते हैं। इसलिए ऋणों का चुकाना जरूरी होता है।

  1. पितृ ऋण : पितृ ऋण यानि हमारे पूर्वजों का ऋण। इस ऋण के अंदर हमारे कर्म, आत्मा, भाई, पिता, बहन, मां, पत्नी, बेटी और बेटे का ऋण आते हैं। यदि किसी जातक पर इनमें से कोई ऋण होता है तो उसकी ज़िंदगी में बहुत परेशानियां आती हैं। घर की शांति हमेशा भंग रहती है। कामकाज, व्यापार कभी नहीं चल पाता, जीवन में सिर्फ संघर्ष ही होता है बदले में कोई लाभ नहीं मिल पाता। मातृ ऋण से कर्जा चढ़ जाता है और घर में कभी शांति नहीं मिल पाती। भाई के ऋण से सफलता मिलने के बाद भी अचानक सबकुछ तबाह हो जाता है। 28 से 36 वर्ष की आयु तक बहुत सी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। पितृपक्ष में तर्पण व श्राद्ध करना, कुल की परंपराओं का पालन करना, संतान उत्पन्न करना व उसमें अच्छे संस्कार डालना, हनुमान जी का प्रतिदिन चालीसा का पाठ भी इन बाधाओं से मुक्ति दिलाता है, भृकुटी पर जल का तिलक लगाना, तेरस, चौदस अमावस्या व पूर्णिमा के दिन व्रत, तप, दान व गुड़ घी की धूप देना, घर के वास्तु दोष को ठीक रखना व अपने शरीर को रोज़ाना स्व्च्छ रखना।
  1. देव ऋण- देव ऋण असल में भगवान विष्णु का माना जाता है। जो लोग अपने धर्म का अपमान करते हैं, लोगों में धर्म के प्रति भ्रम फैलाते हैं, वेदों का अपमान करते हैं वे देव ऋण के भागी होते हैं। उत्तम चरित्र रखते हुए, दान और यज्ञ करने से, रोज़ाना सुबह शाम भगवान विष्णु, श्री कृष्ण और श्री हनुमानजी के मंत्रों, चालीसा, पाठ या स्तोत्र का जाप करने से, सात्विक विचार रखने व सात्विक भोजन करने से ये ऋण चुकता होता है।
  2. ऋषि ऋण : असल में ये ऋण शंकर भगवान का होता है। जिस किसी पर भी ऋषि ऋण होता उसका जीवन घोर संकट में घिर जाता है। मृत्यु के बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिलती। वेद उपनिषद और गीता पढ़कर उसका ज्ञान औरों में बांटने से ये ऋण से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही सत्संग करना व सुनना चाहिए। तन, मन व घर को हमेशा साफ रखें। एकादशी, प्रदोष चतुर्थी, चतुर्मास के पूरे व्रत रखें। घी, केसर एवं चंदन का चिलक लगाएं।
  3. ब्रह्मा ऋणः ये ऋण भगवान ब्रह्मा का होता है। इस ऋण को पूर्वजों, कुल धर्म व वंश का भी माना जाता है। इसके साथ ही पृथ्वी ऋण भी इसे ही कहा जाता है। जो लोग अपने धर्म, जाति, मातृभूमि या कुल को छड़कर चले जाते हैं, उनके बाद यह दोष कई जन्मों तक उनका पीछा करता रहता है। यह ऋण उस व्यक्ति के कुल के अंत होने तक चलता रहता है। भगवान ब्रह्मा ने इस धरती पर हमें बिना किसी भेदभाव के पैदा किया लेकिन पृथ्वी पर जन्म लेते ही इंसान धर्म, जाति व कुल में विभाजित हो जाता है। इस ऋण से मुक्ति पाने के लिए हमें किसी से भी छूआछूत, जातिवाद या भेदभाव नहीं करना चाहिए बल्कि सबको ब्रह्मा की संतान समझना चाहिए।